ॐलोक आश्रम: धर्म को किस तरह का कार्य करना चाहिए? भाग-2

आप शायद एक ही हिरण का मारना चाहें लेकिन बहुत सारे हिरण मर जाते हैं। बहुत परेशान हो जाते हैं। डर का पूरा माहौल बन जाता है।

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

आप शायद एक ही हिरण का मारना चाहें लेकिन बहुत सारे हिरण मर जाते हैं। बहुत परेशान हो जाते हैं। डर का पूरा माहौल बन जाता है। हम ऐसा करते हैं कि हम हिरणों का झुंड यानी कि हम सारे हिरण आपके अभयवन में रह लेते हैं। एक वन आप सुनिश्चित कर दीजिए जहां सारे मृग रह सकें और वहां से रोज एक-एक हिरण आपके लिए भेज दिया जाएगा। आप एक हिरण का भोजन कर लिया कीजिएगा। राजा ने कहा कि यह आइडिया तो बहुत बढ़िया है और उन्होंने स्वर्ण मृग की बात पर हामी भर दी। उन दोनों स्वर्ण मृगों की देख रेख में ये सारा काम संपन्न हुआ। सभी मृग राजा के आदेशानुसार अभयवन में रहने लगे। सभी हिरणों की बारी आती थी। एक के बाद एक, एक के बाद एक उनके जाने की बारी आती थी। एक दिन एक हिरणी की बारी आई जो कि गर्भवती थी। वह स्वर्ण मृग के पास गई उस स्वर्ण मृग का नाम था साखामृग। साखामृग ने कहा कि ये एक व्यवस्था है, तुम गर्भिणी हो लेकिन अगर तुम्हें हम छूट देंगे तो इससे व्यवस्था बिगड़ जाएगी।

आज तुम इस आधार पर छूट मांग रही हो, कल कोई दूसरे आधार पर छूट मांगेगा और परसों कोई और आधार पर छूट मांगेगा। नियम तो नियम होते हैं नियम सबके लिए एक जैसे होने चाहिए। इसमें कोई छूट नहीं मिल सकती। ये बात दूसरे स्वर्ण मृग को पता चली। जिसके बारे में कहा जाता है कि भगवान बुद्ध पिछले जन्म में उस मृग के रूप में थे। उस दूसरे स्वर्ण मृग ने गर्भवती हिऱणी की बात सुनी तो उसने अपने आप को राजा के सामने पेश कर दिया। राजा के सैनिकों ने बताया कि आज तो स्वर्ण मृग आया हुआ है खुद ही तो राजा ने उस स्वर्ण मृग को बुलवाया। स्वर्ण मृग कहा कि मैंने तो तुम्हें अभयदान दिया हुआ है और इस अभयदान के बावजूद तुम यहां क्यों आए हो। अपनी जान देने के लिए क्यों आए हो। स्वर्ण मृग ने बताया कि मै एक गर्भवती हिरणी के बदले आया हुआ हूं।

मैं तो एक ही जान हूं उसके अंदर एक और जान पल रही है। अगर उसकी हत्या की जाएगी तो दो जानों का नुकसान होगा दो जीवों का नुकसान होगा। इसलिए दो जीवों को बचाने के लिए मै खुद ही आ जाऊं। अगर दो जीवों में किसी एक को चुनना है तो दूसरों को चुनने के बदले मैं खुद को ही चुन लूं। क्योंकि उसकी जगह किसी दूसरे को भेजना है तो किसी दूसरे को मैं क्यों भेंजू। अगर खुद के होते हुए मैं किसी दूसरे को भेंजूं तो इससे बड़ी शर्म की बात मेरे लिए क्या होगी। राजा ने सोचा कि एक मृग होकर इतना बड़ा चिंतन और मैं केवल अपने स्वाद के लिए जीवों को मारता रहता हूं उनकी हत्या करता हूं। राजा को बड़ी ग्लानि हुई। राजा ने उस स्वर्ण मृग से कहा कि मैंने तुम्हें माफ कर दिया मैं तुम्हें नहीं खाऊंगा। आज से मैं मृग नहीं खाऊंगा मुझे दुख लग गया।

मृग ने कहा कि आप नहीं खाओगे लेकिन बाकी के लोग तो खाएंगे। राजा ने उत्तर दिया कि मैं राज्य में ये घोषणा करवा देता हूं कि पूरे राज्य में कोई भी मृगों का शिकार कर उनका मांस नहीं खाएगा। स्वर्ण मृग ने कहा कि लोग मृगों का शिकार नहीं करेंगे तो दूसरे किसी का शिकार करेंगे और जीव मारे ही जाएंगे। राजा ने कहा कि मैं घोषणा करा देता हूं कि किसी भी जीव की हत्या नहीं की जाएगी लोग शाकाहार से अपना जीवन जीएं। सभी बड़े प्रसन्न हुए। कहने का तात्पर्य है कि धर्म अपने आप को इस तरह से प्रतिष्ठित करता है। धर्म का उद्देश्य है आत्म बलिदान। वह स्वर्ण मृग जिसने आत्म बलिदान का लक्ष्य स्थापित किया। वही धर्म का वास्तविक लक्ष्य है। कभी यह लक्ष्य दूसरे पंथों में भी स्थापित किया गया था लेकिन आत्म बलिदान की जगह बकरे को उठाकर उसका बलिदान चालू कर दिया।

calender
23 December 2022, 05:08 PM IST

जरुरी ख़बरें

ट्रेंडिंग गैलरी

ट्रेंडिंग वीडियो