ॐलोक आश्रम: भगवान कृष्ण ने महाभारत युद्ध क्यों होने दिया? भाग-3
वर्तमान में रहने के लिए आपको मेहनत करनी पड़ती है और हमारी बुद्धि ऐसी है, हमारी वासनाएं ऐसी हैं कि या तो हमें ये पुराने जीवन में ले जाती हैं हमें पुरानी स्मृतियों के जंगल में घुमा देती हैं या हमें भविष्य की कल्पनाओं में उलझा देती हैं और दोनों ही परिस्थतियों में ऐसा होता है कि या तो हम अतिउत्साहित हो जाते हैं या फिर हम अवसाद की स्थिति में चले जाते हैं।
वर्तमान में रहने के लिए आपको मेहनत करनी पड़ती है और हमारी बुद्धि ऐसी है, हमारी वासनाएं ऐसी हैं कि या तो हमें ये पुराने जीवन में ले जाती हैं हमें पुरानी स्मृतियों के जंगल में घुमा देती हैं या हमें भविष्य की कल्पनाओं में उलझा देती हैं और दोनों ही परिस्थतियों में ऐसा होता है कि या तो हम अतिउत्साहित हो जाते हैं या फिर हम अवसाद की स्थिति में चले जाते हैं। हमारे लिए जरूरी है वर्तमान में रहना। जिस व्यक्ति ने वर्तमान में रहना सीख लिया वह व्यक्ति इन्द्रजीत हो जाता है, वह व्यक्ति अपने समस्त लक्ष्यों को प्राप्त कर लेता है। भगवान बुद्ध ने भी जीवन में यही बतलाया कि आप वर्तमान में रहो जो काम कर रहे हो उसे अच्छे से करो और इसमें सौ फीसदी तभी दे पाओगे जब आप वर्तमान में रहोगे। आपको कुछ नहीं सोचना है।
एक दार्शनिक सिजविक ने कहा है कि सुखों में बड़ा विरोधाभास है अगर आप सुखों के बारे में सोचते रहोगे तो सुख आपको कभी नहीं मिलेगा। सुख घटना का आफ्टर प्रोडक्ट है। एक बच्चा है वो परीक्षा दे रहा होता है और तन्मयता से लिख रहा होता है उसे जो आ रहा है वह लिख रहा होता है। उस समय वह कुछ नहीं सोचता है वह सिर्फ परीक्षा दे रहा होता है। जब बाहर निकलता है तो उसे लगता है कि पेपर बड़ा अच्छा गया और उसपर वो सुख महसूस करता है। क्रिकेटर है वो खेल रहा है उस समय वो खेल मे तन्मय है। अगर वह सुखों के बारे में सोचने लगेगा तो वह आउट हो जाएगा। सुख मिलेगा ही नहीं। आप सुख को केवल भूतकाल में जाकर सोचते हो कि मैं कितना सुखी था कितना मजा आ गया जब मजा आ रहा होता है तो उस समय आप खो जाते हो। आप समय के साथ एकाकार हो जाते हो आपको समय का पता ही नहीं चलता है। जब आप खुश होते हो तो समय आपका यूं निकल जाता है। जब आप दुखी होते हो तो समय बहुत मुश्किल से निकलता है। आपको इस अवस्था में रहना है ताकि आप अपने मस्तिष्क का सर्वाधिक उपयोग कर सको।
भगवान कृष्ण ने गीता में यही बतलाया है कि जो बीत गया है उसको छोड़ दो, जो होने वाला है उसको भी छोड़ दो और वर्तमान में रहो, वर्तमान में जीना सीखो, वर्तमान में जब जिओगे तो आप अपना सौ फीसदी दोगे और अगर आपने अपना सौ फीसदी दे दिया तो परिणाम आपको वो मिलेगा जिसके आप अधिकारी हो। परिणाम के बारे में सोचना भविष्य में सोचना है। परिणाम के बारे में सोचना ही नहीं है आपको वर्तमान में रहना है और अपना कर्म किए जाना है। हमारा कर्म ही ऐसा है जो अपने आप परिणाम को उत्पन्न करता है। इसी तरह से हम जीवन में कर्म करें और आगे बढ़ते रहें। भगवान कृष्ण गीता में यही कहते हैं।