ॐलोक आश्रम: 75 साल के बाद भी भारत इतना पीछे क्यों है? भाग-1

हम अगर भारत का मूल्यांकन करें कि हमें आजाद हुए 75 साल हो गए हैं और हम विश्व में कहां खड़े हैं तो हमें इसके पहले की बहुत सारी परिस्थितियों को देखना पड़ेगा। 75 साल के पहले क्या स्थिति थी। 75 साल के पहले लगभग 100 साल तक अंग्रेजों ने हम पर राज किया।

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

हम अगर भारत का मूल्यांकन करें कि हमें आजाद हुए 75 साल हो गए हैं और हम विश्व में कहां खड़े हैं तो हमें इसके पहले की बहुत सारी परिस्थितियों को देखना पड़ेगा। 75 साल के पहले क्या स्थिति थी। 75 साल के पहले लगभग 100 साल तक अंग्रेजों ने हम पर राज किया। अंग्रेजों का राज ऐसा था कि वो हमारे यहां कि धन-संपदा को ब्रिटेन ले गए। एक तंत्र था जो यहां के धन-दौलत को, पैसों को ब्रिटेन ले जाता था। जो उन्होंने नीतियां लागू कीं, आर्थिक नीतियां लागू कीं और इसके साथ ही उनके जिस तरह से भू-राजस्व नियम रहे। उसके बाद भी आज 75 साल में भारत दुनिया की छठी अर्थव्यवस्था है तो उस दृष्टि से तो हमने काफी प्रगति की है।

ब्रिटिश से पहले की भी बात करें तो हम देखेंगे कि हमारे यहां पश्चिम से आक्रमण होते रहे। बड़े-बड़े आक्रमणकारी ऐसे रहे जो सैकड़ों-हजारों घोड़ों और ऊंटों पर सोना लादकर भारत से ले गए थे। उसके बाद भी भारत इस व्यवस्था में रहा ऐसी अवस्था में रहा। सोने की चिड़िया बना रहा। हम आज भी संघर्षशील हैं। ये बात और है कि हम इससे भी अधिक प्रगति कर सकते थे। हम इससे भी आगे जा सकते थे। हमारा पड़ोसी देश चीन है जो कि कभी हमारे बराबर या हमसे नीचे अब वो हमसे बहुत आगे है। इसके लिए हमें अंदर देखना होगा। अपने अंदर झांकना होगा कि क्या कारण इसके लिए हो सकते हैं।

इसके लिए प्रमुख रूप से यदि हम देखें तो भारत का हर व्यक्ति यदि अपने आप को भारतवासी मानेगा।  यहां लोग जातियों में और धर्म में बंटे हुए हैं। ऐसे मुद्दे व्यक्ति की ऊर्जा को अनावश्यक दिशा में फैला देते हैं। वो अनावश्यक की बातों में उलझा रहता है। अपनी पूरा ऊर्जा उसी में लगा देता है और व्यक्ति अपना सौ फीसदी दे नहीं पाता है। दूसरी बात अगर हमारी सभ्यता में भारतीय मूल्यों को रखा गया होता और भारतीय मूल्यों को लेकर हम आगे बढ़े होते तो हम रिसर्च के फील्ड में, नए इनोवेशन के फील्ड में काफी आगे होते लेकिन जो अंग्रेजों की शिक्षा पद्धति थी उस शिक्षा पद्धति का मुख्य उद्देश्य था कि हमें काम करने के लिए अच्छे श्रमिक मिलते रहें। यही शिक्षा पद्धति 70 सालों तक चली आई। इसके बाद हमारी शिक्षा पद्धति का एक उद्देश्य हो गया कि हमें नौकरी चाहिए।

लोग पढ़ने लिखने के बाद यहीं चाहने लगे कि इन्हें 5-10 हजार से 25-50 हजार तक की कोई नौकरी मिल जाए। जिससे उनका जीवनयापन हो सके।  दो वक्त की रोटी मिल सके। परिवार सुखी रह सके। इससे ज्यादा कुछ नहीं चाहता था। इससे व्यक्ति शॉर्टकट अपनाता है। वह एक ऐसी मानसिकता को लेकर चलता है कि कुछ थोड़ा सा रट लिया जाए, कुछ जानकारी हासिल कर ली जाए और उसके बदौलत उसे कहीं दो पैसे का उसको रोजगार मिल जाए। ऐसी मानसिकता जिस देश की बहुसंख्यक जनसंख्या रखती हो, बहुत सारी जनता रखती हो। वो देश दुनिया में नंबर वन नहीं बनता और बहुत आगे नहीं बढ़ सकता है। आपको अगर दुनिया में नंबर वन बनना है तो आपको रिसर्च करनी पड़ेगी। आपको वैचारिक स्तर पर दुनिया में सबसे आगे रहना पड़ेगा। वैचारिक स्तर पर आप तब आगे रह सकते हो जब आप छोटी चीजों में नहीं पड़ोगे। कोई व्यक्ति है अगर वो यह सोचता है कि मेरा बच्चा 15 साल का है 20 साल का है वह दो पैसे कमाकर लाए तो उसका बच्चा उस समय निश्चित ही 5 हजार, 10 हजार रुपये कमाकर ले आएगा लेकिन वह अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा योगदान नहीं दे पाएगा।

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02 December 2022, 05:54 PM IST

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