Baisakhi 2025: बैसाखी आज... क्यों मनाया जाता है ये पर्व और क्या है इसका इतिहास और महत्व, जानिए
बैसाखी पर्व ना केवल सिख धर्म का नववर्ष है, बल्कि किसानों के लिए फसल की खुशी का प्रतीक भी है. इस दिन 1699 में गुरु गोबिंद सिंह जी ने आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की थी. देशभर के गुरुद्वारों में कीर्तन, लंगर और उत्सव के साथ बैसाखी को श्रद्धा व उल्लास से मनाया जाता है.

आज 13 अप्रैल को पूरे भारत में विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा और उत्तर भारत के हिस्सों में बैसाखी का पर्व हर्षोल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है. ये पर्व न केवल सिख धर्म का नववर्ष है, बल्कि किसानों के लिए भी एक विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इसी समय रबी की फसल पककर तैयार होती है.
बैसाखी का दिन सिख धर्म के इतिहास में भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. मान्यता है कि इसी दिन वर्ष 1699 में सिखों के दसवें और अंतिम गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी. इस ऐतिहासिक निर्णय ने सिख समुदाय की एक नई पहचान गढ़ी और उन्हें धार्मिक तथा सामाजिक रूप से संगठित किया.
बैसाखी का पर्व क्यों है खास?
बैसाखी का पर्व विशेष रूप से कृषक समुदाय के लिए बहुत ही खास होता है. इस दिन तक रबी की फसलें खेतों में पूरी तरह पक जाती हैं और किसान अपनी मेहनत के फल को देखकर उत्सव मनाते हैं. खेतों में हरियाली, घरों में पकवान और गांवों में उमंग का माहौल दिखाई देता है.
सिख धर्म में बैसाखी का ऐतिहासिक महत्व
बैसाखी केवल एक सांस्कृतिक पर्व नहीं, बल्कि सिख धर्म के लिए आत्मबल और पराक्रम का प्रतीक है. साल 1699 में इसी दिन आनंदपुर साहिब की भूमि पर गुरु गोबिंद सिंह जी ने हजारों संगत के समक्ष खालसा पंथ की स्थापना की थी. उन्होंने मानवता का संदेश देते हुए जाति-पांति के भेदभाव को समाप्त करने का आह्वान किया.
जब गुरु गोबिंद सिंह जी ने मांगा बलिदान
बैसाखी के दिन गुरु गोबिंद सिंह जी ने संगत के बीच पूछा कि क्या कोई धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए अपना शीश देने को तैयार है. उनके इस आह्वान पर 5 लोग सामने आए, जिन्हें बाद में ‘पंज प्यारे’ के रूप में खालसा पंथ की नींव दी गई. ये घटना आज भी सिख इतिहास की सबसे प्रेरणादायक कहानियों में गिनी जाती है.
पंज प्यारे और खालसा की पहचान
गुरु गोबिंद सिंह जी ने उन पाँचों को ‘पंज प्यारे’ का दर्जा देते हुए खालसा का पहला स्वरूप प्रदान किया. उन्होंने सिख पुरुषों को अपने नाम के साथ ‘सिंह’ और महिलाओं को ‘कौर’ लगाने का आदेश दिया. साथ ही, खालसा को ‘पंज ककार’ – केश, कंघा, कड़ा, कछहरा और कृपाण धारण करने के निर्देश दिए, जो आज भी खालसा की पहचान बने हुए हैं.
बैसाखी पर गुरुद्वारों में रौनक
बैसाखी के मौके पर देशभर के गुरुद्वारों को भव्य रूप से सजाया जाता है. सुबह से ही कीर्तन, गुरुवाणी, लंगर सेवा और धार्मिक जुलूस का आयोजन होता है. सिख समुदाय के लोग पारंपरिक वेशभूषा में ढोल-नगाड़ों पर भांगड़ा और गिद्दा करते हुए पर्व की खुशियां बांटते हैं. बैसाखी पर हर घर में विशेष पारंपरिक पकवान बनाए जाते हैं, जिनमें कढ़ी-चावल, सरसों का साग, मक्के की रोटी और मिठाइयों में गुड़ के लड्डू, रसगुल्ले और खीर प्रमुख होते हैं. ये दिन स्वाद, श्रद्धा और संकल्प का संगम होता है.
(Disclaimer: इस आर्टिकल में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. Jbt.com इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है)


