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देवउठनी एकादशी...चार महीने बाद जागेंगे भगवान विष्णु, शुभ कार्य होंगे शुरू, जानें पूजा और अनुष्ठान विधि

देवउठनी एकादशी 1 नवंबर 2025 को मनाई जाएगी, जब भगवान विष्णु चातुर्मास की योगनिद्रा से जागते हैं. इस दिन से विवाह और अन्य शुभ कार्य पुनः आरंभ होते हैं. व्रत रखने और पूजा करने से जीवन में सुख, समृद्धि और नए आरंभ की ऊर्जा प्राप्त होती है.

Yaspal Singh
Edited By: Yaspal Singh

हिंदू धर्म में देवउठनी एकादशी अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व माना जाता है. यह वह दिन है जब भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा (चातुर्मास) के बाद जागते हैं. इन चार महीनों के दौरान विवाह, गृहप्रवेश और अन्य मांगलिक कार्य रोक दिए जाते हैं. देवउठनी एकादशी से यह सभी शुभ कार्य पुनः आरंभ हो जाते हैं.

क्या है देवउठनी एकादशी का धार्मिक महत्व?

शास्त्रों के अनुसार, चातुर्मास की अवधि में भगवान विष्णु पाताल लोक में शेषनाग पर योगनिद्रा में रहते हैं. जब कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी आती है, तो वे जागते हैं और ब्रह्मांड में पुनः शुभता और सकारात्मकता का संचार होता है. इसलिए इस दिन को देवोत्थान या देवउठनी एकादशी कहा जाता है.

यह दिन न केवल भगवान विष्णु की पूजा के लिए पवित्र माना जाता है, बल्कि इसे नए आरंभ, आध्यात्मिक जागरण और जीवन में शुभता लाने वाला दिन भी कहा जाता है.

देवउठनी एकादशी 2025 तिथि

तिथि आरंभ: 1 नवंबर 2025 (शनिवार) सुबह से

तिथि समाप्त: 2 नवंबर 2025 (रविवार) सुबह तक

व्रत पारण (व्रत खोलने) का समय: 2 नवंबर को दोपहर 1:11 बजे से 3:23 बजे तक

इसके बाद, उत्पन्ना एकादशी 15 नवंबर 2025 (शनिवार) को मनाई जाएगी, जिसकी तिथि रात 12:49 बजे से प्रारंभ होकर 16 नवंबर तक रहेगी.

देवउठनी और उत्पन्ना एकादशी का महत्व

देवउठनी एकादशी के साथ चातुर्मास का अंत होता है. इस दिन से विवाह, गृहप्रवेश, नामकरण जैसे सभी शुभ कार्य पुनः शुरू किए जाते हैं. शास्त्रों में कहा गया है कि इस व्रत का फल हजारों यज्ञों के बराबर है. यह व्रत न केवल पुण्यदायी है बल्कि व्यक्ति के जीवन में सौभाग्य और समृद्धि लाने वाला भी माना जाता है.

दूसरी ओर उत्पन्ना एकादशी का अर्थ होता है 'उदय होना' या 'नया आरंभ'. यह आध्यात्मिक रूप से नए संकल्पों और आत्मविकास की शुरुआत के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है.

देवउठनी एकादशी व्रत विधि

  • सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें.
  • पूजा स्थान को साफ कर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें.
  • तुलसी के पत्ते, पीले फूल, फल और दीप अर्पित करें.
  • ॐ नमो भगवते वासुदेवाय या विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें.
  • पूरे दिन उपवास या आंशिक व्रत रखें; केवल फलाहार लें.

अगले दिन द्वादशी तिथि पर निर्धारित समय में व्रत पारण करें और जरूरतमंदों को भोजन कराएं. व्रत के दौरान मन को शांत और सकारात्मक रखें, वाणी में संयम रखें और किसी से कटु वचन न कहें.

उत्पन्ना एकादशी व्रत का पालन

उत्पन्ना एकादशी भी लगभग समान विधि से मनाई जाती है. इस दिन श्रद्धालु भगवान विष्णु की आराधना करते हैं और नए आध्यात्मिक लक्ष्यों का संकल्प लेते हैं. यह दिन आत्म-उत्थान और नई दिशा की शुरुआत का प्रतीक माना गया है.

आधुनिक जीवन में पालन के सुझाव

यदि पूर्ण उपवास संभव न हो, तो हल्का सात्विक भोजन कर सकते हैं.

देवउठनी का सार केवल उपवास में नहीं, बल्कि भक्ति, दया और सद्भाव में निहित है.

इस दिन जरूरतमंदों की सहायता करें, अन्नदान या वस्त्रदान करें.

देवउठनी एकादशी: नए आरंभ की शुरुआत

देवउठनी एकादशी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि जीवन के नवीनीकरण का प्रतीक है.

भगवान विष्णु के जागरण के साथ ही जीवन में नई ऊर्जा, शुभता और समृद्धि का संचार होता है.

इसीलिए कहा गया है- देव उठे तो शुभ कार्य उठे.

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01 November 2025, 08:02 AM IST

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