अक्षय तृतीया पर ही क्यों होते हैं बांके बिहारी जी के चरण दर्शन? जानें परंपरा का रहस्य

Akshaya Tritiya: अक्षय तृतीया के दिन वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में विशेष रूप से भगवान के चरणों के दर्शन कराए जाते हैं, जो साल में केवल एक बार होते हैं. इसके पीछे मान्यता है कि एक बार स्वामी हरिदास को प्रभु के चरणों से स्वर्ण मुद्रा मिली थी, जिससे सेवा की जाती थी.

Deeksha Parmar
Edited By: Deeksha Parmar

Akshaya Tritiya: अक्षय तृतीया का पर्व सनातन धर्म में विशेष फलदायी और पुण्यकारी माना जाता है. इस बार यह शुभ तिथि 30 अप्रैल 2025 को पड़ रही है. यह दिन न केवल नए कार्यों की शुरुआत और स्वर्ण खरीदारी के लिए शुभ माना जाता है, बल्कि वृंदावन स्थित प्रसिद्ध बांके बिहारी जी मंदिर में इस दिन एक दुर्लभ और चमत्कारी दृश्य भी देखने को मिलता है. जिसका इंतजार श्रद्धालु सालभर करते हैं.

हर साल केवल अक्षय तृतीया के दिन ही बांके बिहारी जी के चरणों के दर्शन होते हैं. बाकी सभी दिनों में ठाकुर जी के चरण वस्त्रों से ढके रहते हैं. इस परंपरा के पीछे एक आध्यात्मिक कथा जुड़ी हुई है, जो भक्तों के मन में इस दिन को लेकर और भी आस्था भर देती है.

साल में सिर्फ एक दिन क्यों होते हैं चरण दर्शन?

वृंदावन के ठाकुर श्री बांके बिहारी जी के मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ अक्षय तृतीया के दिन उमड़ती है. कारण साफ है. इस दिन ठाकुर जी के चरण दर्शन का दुर्लभ सौभाग्य प्राप्त होता है. बाकी दिन उनके चरण पोशाक से पूर्ण रूप से ढके रहते हैं.

स्वामी हरिदास जी की भक्ति से जुड़ा है रहस्य

इस परंपरा की शुरुआत एक अद्भुत अनुभव से हुई. मान्यता है कि ठाकुर जी के परम भक्त स्वामी हरिदास जी को एक बार सेवा के लिए धन की आवश्यकता पड़ी. उन्होंने अपने आराध्य से प्रार्थना की और उसी रात उन्हें प्रभु के चरणों के पास एक स्वर्ण मुद्रा प्राप्त हुई.

उस दिन के बाद जब भी स्वामी जी को सेवा या भोग के लिए धन की आवश्यकता होती, ठाकुर जी के चरणों से उन्हें स्वर्ण मुद्रा प्राप्त होती थी. यही कारण है कि चरण दर्शन की परंपरा को इतना विशेष माना जाता है और यह केवल अक्षय तृतीया के दिन ही होता है, जो ‘अक्षय फल’ देने वाली तिथि मानी जाती है.

अक्षय तृतीया का आध्यात्मिक महत्व

अक्षय तृतीया को किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत के लिए अत्यंत उत्तम माना जाता है. यह तिथि त्रेता युग की शुरुआत, परशुराम जयंती, गंगा अवतरण और अन्नदान जैसे पुण्य कार्यों से जुड़ी हुई है. इसी दिन किसी भी धार्मिक या दान-पुण्य के कार्य का फल ‘अक्षय’ यानी कभी न समाप्त होने वाला माना जाता है.

भक्तों के लिए अनमोल अवसर

श्रद्धालुओं के लिए ठाकुर जी के चरण दर्शन किसी स्वप्न पूर्ति से कम नहीं होते. भक्तों का मानना है कि इस दिन जो भी सच्चे मन से बांके बिहारी जी के चरणों का दर्शन करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. यही कारण है कि लाखों की संख्या में श्रद्धालु इस एक दिन के लिए वृंदावन का रुख करते हैं.

परंपरा, आस्था और चमत्कार का मिलन

अक्षय तृतीया केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आस्था और भक्ति की गहराइयों में डूबी परंपरा है. बांके बिहारी जी के चरणों के दर्शन का यह एक दिन, भक्तों के जीवन में दिव्यता और विश्वास का प्रकाश भर देता है. स्वामी हरिदास जी की भक्ति से उपजी यह परंपरा आज भी उतनी ही जीवंत है, जितनी तब थी.

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18 April 2025, 11:57 AM IST

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