शिक्षा से लेकर टूरिज्म तक...370 हटने के बाद बदला कश्मीर, लोकतंत्र और शांति की नई इबारत
5 अगस्त 2019 को जब अनुच्छेद 370 हटाया गया, तो जम्मू-कश्मीर में सिर्फ संविधान का नहीं, बल्कि सोच का भी नया अध्याय शुरू हुआ. जिस घाटी को कभी आतंकवाद और अलगाववाद के अंधेरे में ढकेल दिया गया था, अब वहां शिक्षा, पर्यटन और विकास की रौशनी फैल रही है.

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के छह साल पूरे हो गए हैं. इन वर्षों में इस क्षेत्र ने शासन प्रणाली, बुनियादी ढांचे, नागरिक भागीदारी और निवेश के स्तर पर उल्लेखनीय बदलाव देखा है. केंद्र सरकार का दावा है कि इस संवैधानिक परिवर्तन ने जम्मू-कश्मीर को समावेशी विकास, लोकतांत्रिक मजबूती और दीर्घकालिक शांति की दिशा में अग्रसर किया है.
जहां एक ओर राजनीतिक बहसें राज्य के दर्जे की बहाली को लेकर जारी हैं, वहीं सरकार का ध्यान जन कल्याण, आर्थिक पुनरुद्धार और स्थायी लोकतांत्रिक संस्थानों की स्थापना पर केंद्रित रहा है. अनुच्छेद 370 हटने के बाद केंद्र शासित प्रदेश के रूप में जम्मू-कश्मीर ने न केवल बुनियादी ढांचे में बल्कि सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में भी नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं.
लोकतांत्रिक भागीदारी में ऐतिहासिक वृद्धि
केंद्र सरकार के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में सबसे बड़ा परिवर्तन लोकतांत्रिक भागीदारी के स्तर पर हुआ है. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की "इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत" की नीति से प्रेरित होकर पंचायत चुनावों में 70% तक मतदान दर दर्ज की गई. 2020 में जिला विकास परिषद (DDC) चुनावों के जरिए पहली बार ज़मीनी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को गति मिली. इसके बाद नगरपालिका और पंचायत चुनावों ने लोकतंत्र की जड़ों को और मजबूत किया. 2024 में हुए विधानसभा चुनावों में युवाओं, महिलाओं और विशेषकर दक्षिण कश्मीर के सरपंचों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया.
शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में व्यापक सुधार
शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी बड़ा निवेश हुआ है. जम्मू में IIT की स्थापना और विजयपुर में एम्स का संचालन शुरू हो चुका है. अवंतीपोरा स्थित दूसरा एम्स 2025 के अंत तक कार्यरत होने की संभावना है. रियासी में भी एक नया मेडिकल कॉलेज खोला गया है. यहां के छात्र अब UPSC जैसी प्रतिष्ठित परीक्षाओं में सफल हो रहे हैं. रोजगार मेलों और स्टार्टअप योजनाओं के जरिए युवाओं को स्वरोजगार के अवसर मिल रहे हैं, जिनमें कई महिलाओं की उल्लेखनीय भागीदारी रही है.
80,000 करोड़ रुपये का निवेश
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2019 के बाद जम्मू-कश्मीर में 80,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश हुआ है. इस निवेश का फोकस रोजगार, उद्यमिता और बुनियादी ढांचे पर रहा है. उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेल लिंक अब पूरी तरह चालू है, जिससे कनेक्टिविटी बेहतर हुई है. ज़ोजिला टनल, ज़ेड मोड़ टनल और बनिहाल-काज़ीगुंड सुरंग जैसी मेगा परियोजनाएं क्षेत्रीय गतिशीलता को बढ़ा रही हैं
टूरिज्म को मिला बढ़ावा
भारतनेट परियोजना के तहत मार्च 2025 तक 9789 फाइबर-टू-होम कनेक्शन सक्रिय किए गए हैं, जिससे डिजिटल समावेशन को बल मिला है. पर्यटन के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है. श्रीनगर को UNESCO द्वारा "विश्व शिल्प नगरी" का दर्जा मिला है. 2019 में जहां श्रीनगर से 35 दैनिक उड़ानें थीं, वहीं 2024 में इनकी संख्या बढ़कर 125 हो गई है. इको-टूरिज्म, हेरिटेज होमस्टे और स्थानीय कारीगरों द्वारा संचालित अनुभवों ने पर्यटन क्षेत्र को नई दिशा दी है और स्थानीय आजीविका में वृद्धि की है.
सरकार का दावा
हालांकि राजनीतिक बहसें और आलोचनाएं बनी हुई हैं, लेकिन केंद्र सरकार का मानना है कि अनुच्छेद 370 के हटने से जम्मू-कश्मीर में संविधान के पूर्ण अधिकार, आर्थिक समानता और स्थायी लोकतंत्र का मार्ग प्रशस्त हुआ है. सरकार का दावा है कि इस संवैधानिक परिवर्तन से “शांति और समावेशी विकास की नई इबारत” लिखी जा रही है.


