रामभद्राचार्य के आपत्तिजनक वीडियो हटाएं... इलाहाबाद हाई कोर्ट का सख्त फरमान, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को भेजा नोटिस
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जगतगुरु स्वामी रामभद्राचार्य से जुड़े आपत्तिजनक वीडियो सोशल मीडिया से हटाने का आदेश दिया है. कोर्ट ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर और यूट्यूब को नोटिस जारी करते हुए एक हफ्ते के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया है. यह आदेश एक याचिका पर सुनवाई के बाद आया.

Ramabhadracharya Video Controversy: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने जगतगुरु स्वामी रामभद्राचार्य से जुड़े आपत्तिजनक वीडियो सोशल मीडिया से हटाने का आदेश जारी किया है. कोर्ट ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर और यूट्यूब जैसी प्रमुख प्लेटफॉर्म्स को नोटिस भेजते हुए एक हफ्ते के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया है. यह आदेश शरद चंद्र नाम के याचिकाकर्ता की याचिका पर सुनवाई के बाद दिया गया.
याचिकाकर्ता का दावा है कि सोशल मीडिया पर स्वामी रामभद्राचार्य के पुराने मामले को तूल देकर उनके खिलाफ आपत्तिजनक कंटेंट फैलाया जा रहा है. याचिकाकर्ता ने वीडियो में उनके दिव्यांग होने के कारण अपमान का हवाला देते हुए इसे हटाने की मांग की थी.
हाई कोर्ट का आदेश, तुरंत हटाएं वीडियो
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने 19 सितंबर 2025 को आदेश दिया कि स्वामी रामभद्राचार्य के खिलाफ सोशल मीडिया पर चल रहे आपत्तिजनक वीडियो तत्काल हटाए जाएं. न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा और न्यायमूर्ति बृजराज सिंह की खंडपीठ ने इस आदेश को मंजूरी दी.
कोर्ट ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, गूगल और यूट्यूब के शिकायत निवारण अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे आपत्तिजनक वीडियो को तुरंत हटा दें. इसके अलावा, यूट्यूबर शशांक शेखर के खिलाफ दिव्यांगों के अधिकारों के लिए कार्यरत स्टेट कमिश्नर को कार्रवाई करने का आदेश भी दिया गया.
याचिकाकर्ता की दलील
याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि शशांक शेखर ने स्वामी रामभद्राचार्य के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां करते हुए वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट किए. उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार से सोशल मीडिया पर नियंत्रण के लिए सख्त नियम बनाने की भी मांग की. कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 8 अक्टूबर 2025 तक स्थगित की है.
कौन हैं स्वामी रामभद्राचार्य?
स्वामी रामभद्राचार्य चित्रकूट में रहते हैं और जगतगुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के आजीवन कुलाधिपति हैं. उन्होंने चित्रकूट में तुलसी पीठ की स्थापना भी की और संस्कृत व हिंदी में कुल चार महाकाव्य रचे हैं. उन्हें भारत में तुलसीदास के सबसे बड़े जानकारों में से एक माना जाता है. साल 2015 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया था.


