इंदौर: बैसाखी की जगह पतवार को बनाया सहारा, आज राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु करेंगी सम्मान
ये कहानी एक बच्ची की है जिसने जब पैरों पर ठीक से खड़ा होना भी नहीं सीखा था तब प्रकृति ने उससे उसके पैर छीन लिए। जब थोड़ी बड़ी हुई तो भाई को खेलते हुए देखा, लेकिन खेल मैदान की दुर्घटना में सिर से भाई का भी साया उठ गया।
इंदौर, मध्यप्रदेश। ये कहानी एक बच्ची की है जिसने जब पैरों पर ठीक से खड़ा होना भी नहीं सीखा था तब प्रकृति ने उससे उसके पैर छीन लिए। जब थोड़ी बड़ी हुई तो भाई को खेलते हुए देखा, लेकिन खेल मैदान की दुर्घटना में सिर से भाई का भी साया उठ गया।
तब उसने सोचा सोचा कि खेलों में जो नाम कमाने की इच्छा भाई की थी, उसे मैं पूरा करूंगी। उसके पास सिर्फ हिम्मत साथ थी और उसी हिम्मत के सहारे यह लड़की 'तालाब के गहरे पानी' में उतर गई। अब तालाब से यह पदक निकालकर न सिर्फ अपने भाई का सपना पूरा कर रही है बल्कि पूरे देश का भी नाम रोशन कर रही है।
हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के भिंड इलाके में रहने वाली दिव्यांग कैनोइंग खिलाड़ी पूजा ओझा की। आपको बता दें पूजा ने कनाडा में संपन्न विश्व चैंपियनशिप में रजत जीता है और केनो स्प्रिंट की विश्व चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली देश की पहली खिलाड़ी बनी हैं। इसके लिए पूजा को राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुना गया है।
पूजा को तीन दिसंबर को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू सम्मानित करेंगीं। कभी मध्य प्रदेश का यह इलाका बागियों की बंदूकों की आवाज के लिए कुख्यात था। लेकिन अब इस क्षेत्र में पूजा विख्यात है। भिंड की झुग्गी बस्ती पर एक छोटा सा घर है और पिता मजदूर हैं। वहीं क्षेत्र में रूढ़िवादी सोच अब भी है।
पूजा ने जब खेल में आगे बढ़ने का फैसला किया तो रिश्तेदारों और परिचितों ने माता-पिता को रोका भी और टोका भी। समाज में कई तरह की बातें भी हुईं, परंतु न इस लड़की के हौसले कमजोर थे और न ही उसके माता-पिता के। पूजा ने बताया कि, 'जब मैं सिर्फ 10 महीने की थी तब पोलियो के कारण मेरे पैर खराब हो गए, मैं 80 फीसदी दिव्यांग हूं।
आप जब ठीक से चल नहीं सकते तो खेल के बारे में सोचना तो बहुत दूर की बात है।' वहीं आगे की कहानी सुनाते हुए पूजा की आवाज थोड़ी भारी और संवाद भावुक हो जाते हैं। पूजा कहती हैं, 'मेरे बड़े भाई खेलों में बहुत अच्छे थे और वे सभी खेल खेलते थे खासकर क्रिकेट और कबड्डी में महारथ था।
मगर कबड्डी स्पर्धा के दौरान ही एक घटना में उनका निधन हो गया। उन्होंने कहा कि मैं भाई के कारण ही खेलों की तरफ आकर्षित हुई थी। भाई के निधन के बाद सोचा कि उनका सपना मुझे पूरा करना है और खेलों में नाम कमाना है।
घर से दूर रहकर की तैयारी -
जानकारी के मुताबिक मध्य प्रदेश का खेल विभाग वाटर स्पोर्ट्स सहित कई खेलों की अकादमियां संचालित करता है। वहीं भोपाल में वाटर स्पोर्ट्स की अकादमी है, परंतु उसमें अब तक पूजा को प्रवेश नहीं मिल सका। इस बारे में पूछने पर पूजा कहती हैं, 'चयन मेरे हाथ में नहीं है।
मैं खुद नहीं समझ पा रही कि आखिर क्यों मुझे अकादमी में शामिल नहीं किया जाता। जबकि मैंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पदक भी जीते हैं, 2017 में राष्ट्रीय पदक भी जीत चुकी हूं और इसी साल थाइलैंड में संपन्न् एशियन चैंपियनशिप में रजत पदक भी जीता था।
हाल ही में हुए कनाडा में संपन्न विश्व चैंपियनशिप में मैंने रजत पदक जीता है। मैंने इसके अलावा भी और कई प्रतिष्ठित स्पर्धाओं में पदकीय सफलता हासिल की है। पूजा ने कहा कि मैं अपनी मेहनत पर यकीन करती हूं, और जो भाग्य में होगा वह जरूर मिलेगा।
तमाम सफलताएं हैं, लेकिन अब भी बेरोजगार -
आपको बता दें पूजा ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तमाम सफलताएं हासिल की हैं, मगर अब तक वो बेरोजगार हैं। पूजा ने कहा- मेरे पास कोई नौकरी नहीं है। मैं अब भी अपने माता-पिता पर ही आश्रित हूं। मेरे पिता महेश ओझा छोटे किसान हैं।
भोपाल में हम कुछ दिव्यांग खिलाड़ी रहते हैं, मिलकर रहने से खर्चा बंट जाता है। हम काम भी बांट लेते हैं। अभ्यास करने के बाद खुद ही खाना बनाते हैं और बर्तन भी धोते हैं। किसी को भी ये सुनकर हैरानी हो सकती है लेकिन देश के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पदक जीतने वाले खिलाड़ी का यही हाल है।