जम्मू-कश्मीर में तीन सरकारी कर्मचारी बर्खास्त, जानिए पूरा मामला
जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने लश्कर और हिजबुल से कथित संबंधों के चलते तीन सरकारी कर्मियों को सेवा से बर्खास्त किया. इनमें एक पुलिस कांस्टेबल, एक शिक्षक और एक मेडिकल कॉलेज का कनिष्ठ सहायक शामिल हैं.

जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने आतंकवाद से जुड़ी गतिविधियों में संलिप्त पाए गए तीन सरकारी कर्मचारियों को सेवा से निष्कासित करने का आदेश दिया है. यह कार्रवाई संविधान के अनुच्छेद 311(2)(सी) के अंतर्गत की गई, जो राज्य के भीतर चल रहे आतंकरोधी अभियान का हिस्सा है.
तीनों जेल में
बर्खास्त किए गए कर्मचारियों में पुलिस कांस्टेबल मलिक इश्फाक नसीर, शिक्षा विभाग में शिक्षक एजाज अहमद और श्रीनगर मेडिकल कॉलेज के जूनियर असिस्टेंट वसीम अहमद खान शामिल हैं. तीनों फिलहाल जेल में हैं और उन पर आतंकियों को सहयोग देने के गंभीर आरोप हैं.
कांस्टेबल नसीर को लश्कर-ए-तैयबा के लिए काम करते हुए पाया गया. जांच में सामने आया कि उसने हथियारों की तस्करी और आतंकियों तक विस्फोटक पहुंचाने में सक्रिय भूमिका निभाई. उसका भाई, जो पाकिस्तान में लश्कर से प्रशिक्षित था, 2018 में मारा गया था. नसीर पर आतंकी संगठनों को सुरक्षित हथियार आपूर्ति ज़ोन की पहचान कराने का भी आरोप है.
हथियार सप्लाई करता था एजाज अहमद
दूसरी ओर, शिक्षक एजाज अहमद को पुंछ में हिजबुल मुजाहिदीन के लिए काम करते हुए पकड़ा गया. नवंबर 2023 में पुलिस जांच के दौरान उसकी गाड़ी से हथियार, गोला-बारूद और आतंकी पोस्टर बरामद हुए. वह पीओजेके में मौजूद एक हिजबुल आतंकी के निर्देश पर काम कर रहा था और लगातार हथियार सप्लाई करता था.
वसीम अहमद खान, जो मेडिकल कॉलेज में 2007 से कार्यरत था उसको पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या में संदिग्ध भूमिका के चलते बर्खास्त किया गया. जांच में पता चला कि उसने आतंकियों को हमले के बाद भागने में मदद की थी और सुरक्षा बलों के खिलाफ हमलों के लिए लॉजिस्टिक सपोर्ट उपलब्ध कराया था.
आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई तेज़
उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के नेतृत्व में आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई को और तेज़ किया गया है. 2020 से अब तक 75 से अधिक कर्मचारियों को इसी प्रावधान के तहत हटाया जा चुका है. प्रशासन अब नियुक्तियों से पहले सख्त पुलिस सत्यापन अनिवार्य कर चुका है. अधिकारियों का मानना है कि इससे आतंकी नेटवर्कों पर गहरा असर पड़ा है और आतंकी गतिविधियों को संस्थागत समर्थन मिलने की संभावना कम हुई है.


