UP में धर्मांतरित व्यक्तियों की अनुसूचित जाति स्थिति जांचेगा राज्य, HC ने दिया आदेश
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यूपी के सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे उन मामलों की जांच करें जिनमें हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म छोड़कर किसी अन्य धर्म को अपनाने वाले लोग अभी भी अनुसूचित जाति के लाभ का दावा कर रहे हैं.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे उन मामलों की जांच करें जिनमें हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म छोड़कर किसी अन्य धर्म को अपनाने वाले लोग अभी भी अनुसूचित जाति (एससी) के लाभ का दावा कर रहे हैं.
क्यों आया ये आदेश?
न्यायालय ने कहा कि यह प्रथा संविधान के साथ धोखाधड़ी के समान है और धर्म परिवर्तन के बाद जाति की स्थिति से जुड़े कानून को सही अर्थों में लागू करना जरूरी है. यह आदेश गोरखपुर के महाराजगंज जिले के निवासी जितेंद्र साहनी की याचिका पर सुनवाई के दौरान आया.
साहनी ने दावा किया था कि ईसाई प्रार्थना सभाओं में हिंदू देवी-देवताओं के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी की गई और धर्मांतरण को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके चलते उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही चल रही थी. साहनी ने इस कार्यवाही को रद्द करने के लिए उच्च न्यायालय में धारा 482 के तहत याचिका दायर की थी.
हालांकि न्यायालय ने आपराधिक मामले में हस्तक्षेप नहीं किया, लेकिन इस अवसर का उपयोग धर्मांतरित व्यक्तियों द्वारा अनुसूचित जाति के झूठे दावों की समस्या को स्पष्ट करने के लिए किया. सुनवाई के दौरान पता चला कि साहनी मूलतः हिंदू थे, लेकिन उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया और पुजारी के रूप में कार्यरत थे. बावजूद इसके, उन्होंने हलफनामे में स्वयं को अभी भी हिंदू बताया.
अदालत ने संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 का हवाला दिया और स्पष्ट किया कि हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म के अलावा किसी अन्य धर्म का पालन करने वाला व्यक्ति अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं रख सकता. न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का भी उल्लेख किया, जिनमें धर्म परिवर्तन के बाद अनुसूचित जाति के लाभ लेने को उचित नहीं माना गया है. अदालत ने कहा कि अनुसूचित जाति की पहचान ऐतिहासिक जाति-आधारित भेदभाव से जुड़ी है, जो अन्य धर्मों में मान्य नहीं है. ऐसे दावे केवल आरक्षण पाने के उद्देश्य से किए जाते हैं और अनुमति नहीं दी जा सकती.
चार महीने के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश
न्यायालय ने निर्देश दिया कि महाराजगंज के जिला मजिस्ट्रेट तीन महीने के भीतर साहनी की वास्तविक धार्मिक स्थिति की पुष्टि करें और यदि हलफनामा झूठा पाया गया तो कड़ी कार्रवाई करें. साथ ही, कैबिनेट सचिव, मुख्य सचिव और समाज कल्याण एवं अल्पसंख्यक कल्याण विभागों को राज्यभर में ऐसी जाँच कराने और चार महीने के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया गया है.
इस निर्णय का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अनुसूचित जाति के लाभ केवल उन लोगों तक सीमित रहें जो कानूनी रूप से इसके पात्र हैं और किसी भी तरह का धर्मांतरण इसका दुरुपयोग न कर सके.


