नीतीश की राहुल गांधी के साथ मुलाकात के मायने
पिछले लगभग एक बरस से विपक्षी एकता के लिएRahul कई राजनीतिक दल प्रयास में लगे हुए हैं। लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई ठोस सफलता नहीं मिली। बुधवार को इस दिशा में एक और प्रयास किया गया।
हाइलाइट
- नीतीश की राहुल गांधी के साथ मुलाकात के मायने
आशुतोष मिश्र
पिछले लगभग एक बरस से विपक्षी एकता के लिए कई राजनीतिक दल प्रयास में लगे हुए हैं। लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई ठोस सफलता नहीं मिली। बुधवार को इस दिशा में एक और प्रयास किया गया। ताजा घटनाक्रम में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के साथ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी से मुलाकात की। यह मुलाकात इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है कि इस बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे भी मौजूद थे। करीब घंटे भर चली बैठक के कोई बाद स्पष्ट नतीजा तो सामने नहीं आया है लेकिन यह बात तय है कि आने वाले 2024 के लोकसभा चुनाव में कुछ दल कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के इच्छुक दिखाई दे रहे हैं। इसका ताजा नमूना नीतीश और राहुल गांधी की मुलाकात है।
इस बैठक में किन मुद्दों पर चर्चा हुई यह खुलकर तो सामने नहीं आया लेकिन सूत्रों के हवाले से यह बात सामने निकल कर आई लोकसभा चुनाव में नीतीश को उत्तर प्रदेश में चुनाव का संयोजक बनाया जा सकता है।
एक दर्जन से अधिक विपक्षी दलों को एक मंच पर आने की बात लगातार पिछले एक वर्षों से चल रही है। इसमें कई दलों के वरिष्ठ नेताओं की आपस में मुलाकात होती भी रही है। पिछले 6 महीने की राजनीतिक घटनाओ पर अगर गौर करें तो इसमें तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एवं पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान सहित कई नेताओं की आपस में मुलाकात और बैठक हो चुकी है। हालाँकि इन मुलाकातों का अभी तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। बावजूद इसके इस तरह के प्रयास लगातार किए जा रहे हैं। सभी विपक्षी दलों का मानना है कि वह मिलकर चुनाव लड़े लेकिन इसकी अगुवाई कौन करेगा इस बात को लेकर सभी डालो में एकता नहीं है। हालांकि कुछ सुलझे हुए और वरिष्ठ नेता इस बात का हवाला देकर इस विवाद को शांत कर देते हैं कि लोकसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद नेतृत्व और प्रधानमंत्री पर चर्चा होगी। लेकिन गाहे-बगाहे भारतीय जनता पार्टी के नेताओ द्वारा लगातार विपक्षी एकता को चुनौती दी जाती है।
भाजपा के वरिष्ठ नेता इस बात की चुटकी लेने से बाज नहीं आते कि भले ही विपक्षी दल एकता की बात करें लेकिन अगुवाई को लेकर उसमें विवाद हो सकता है। पिछले अनुभव को देखते हुए इस बात से इनकार भी नहीं किया जा सकता है। जब यह देखा गया कि विपक्षी दल एक मंच पर आने से पहले ही अपनी अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को सार्वजनिक कर देते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि विपक्षी दल अभी तक भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ एकजुट नहीं हो पाए हैं। इसका नतीजा चुनाव में साफ दिखता है पिछले कई चुनावों में भी इस बात को देखा गया है। चाहे वह गुजरात का चुनाव हो हिमाचल का चुनाव हो या पूर्वोत्तर में 2 राज्यों में होने वाले चुनाव हो। सभी विपक्षी राजनीतिक दलों ने अलग अलग होकर चुनाव लड़ा और इसका सीधा फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिला। परिणाम स्वरूप भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात के साथ पूर्वोत्तर के 2 राज्यों में सरकार बनाई।
ताजा घटनाक्रम में विपक्षी दल एकजुट होकर 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं जिससे वह भारतीय जनता पार्टी को चुनौती दे सकें। इसी कवायद में बिहार के मुख्यमंत्री कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और वरिष्ठ नेता राहुल गांधी के साथ बैठकर चर्चा की। अगर इस बैठक का कोई सार्थक परिणाम दिखाई देता है तो यह कहा जा सकता है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस के साथ अन्य कई विपक्षी दल एकजुट होकर चुनाव लड़ने को तैयार हैं। लेकिन यह कहना जल्दबाजी होगी अभी लोकसभा चुनाव में एक वर्ष का समय बाकी है इसमें राजनीतिक दलों में तमाम तरह के उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकते हैं।