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UMEED पोर्टल पर अपलोड करें वक्फ संपत्ति का ब्यौरा...SC ने डेडलाइन बढ़ाने से किया इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संपत्तियों को ‘UMEED’ पोर्टल पर अपलोड करने की समय सीमा बढ़ाने से इनकार कर दिया और कहा कि राहत चाहने वाले मुतवल्ली या संस्थाएं ट्राइब्यूनल से संपर्क करें. AIMPLB और असदुद्दीन ओवैसी की याचिकाएँ भी खारिज कर दी गईं.

Utsav Singh
Edited By: Utsav Singh

नई दिल्ली : वक्फ संपत्तियों का डिजिटल रिकॉर्ड तैयार करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा शुरू किए गए ‘UMEED’ पोर्टल पर विवरण अपलोड करने की अंतिम तिथि बढ़ाने से सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट इनकार कर दिया है. अदालत ने कहा कि वक्फ अधिनियम में पहले से मौजूद वैधानिक उपायों को देखते हुए अदालत किसी भी तरह की समय सीमा में हस्तक्षेप नहीं कर सकती. अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इस मुद्दे पर राहत चाहने वाले याचिकाकर्ता सीधे संबंधित वक्फ ट्राइब्यूनल में जाकर अपनी स्थिति रख सकते हैं.

AIMPLB और असदुद्दीन ओवैसी की याचिका भी खारिज

समय सीमा बढ़ाने की मांग करने वालों में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) और AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी शामिल थे, जिन्होंने अदालत से 5 दिसंबर की तय समय सीमा को आगे बढ़ाने की अपील की थी. उनका कहना था कि देशभर में बड़ी संख्या में वक्फ संपत्तियों का रिकॉर्ड तुरंत तैयार कर पाना संभव नहीं है और इसके लिए अधिक समय की जरूरत है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को स्वीकार नहीं किया और कहा कि कानून व्यवस्था पहले से स्पष्ट है और अदालत इसके किसी प्रावधान को दोबारा नहीं लिख सकती.

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की दलील को माना
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि वक्फ अधिनियम मुतवल्लियों और अन्य संबंधित व्यक्तियों को ट्राइब्यूनल के सामने जाकर व्यक्तिगत परिस्थितियों के आधार पर राहत मांगने की सुविधा देता है. अदालत ने उनकी इस दलील पर सहमति जताते हुए कहा कि कानून में मौजूद इस वैकल्पिक उपाय को अपनाया जाना चाहिए, न कि अदालत में समय सीमा बढ़ाने की मांग की जाए. इस आधार पर कोर्ट ने कहा कि डिजिटल रिकॉर्डिंग प्रक्रिया से भागने का विकल्प नहीं हो सकता.

समय पर संपत्ति अपलोड न करने पर सजा का प्रावधान
वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 के प्रावधानों के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति, संस्था या मुतवल्ली 5 दिसंबर तक वक्फ संपत्तियों का विवरण पोर्टल पर दर्ज नहीं करता है, तो उसके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है. इसमें छह महीने तक की जेल और अधिकतम 20 हजार रुपये तक का जुर्माना शामिल है. इतना ही नहीं, जो संपत्तियाँ निर्धारित प्रक्रिया के तहत पोर्टल पर दर्ज नहीं होंगी, उनका वक्फ दर्जा भी स्वतः समाप्त माना जाएगा. ऐसी संपत्तियों को आगे केवल वक्फ ट्राइब्यूनल के आदेश से ही दोबारा पंजीकृत किया जा सकेगा.

पहले भी अधिनियम पर रोक लगाने से इंकार कर चुका है कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले 15 सितंबर के अंतरिम आदेश में भी इस संशोधन अधिनियम को पूरी तरह रोकने से मना कर दिया था, हालांकि कुछ प्रावधानों पर रोक लगाई गई थी. कोर्ट ने लगातार यह स्पष्ट किया है कि वक्फ प्रबंधन में पारदर्शिता अनिवार्य है और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर रिकॉर्डिंग इसी दिशा में उठाया गया सुधारात्मक कदम है.

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01 December 2025, 02:37 PM IST

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