‘हम अपना धर्म भूल जाते हैं’, CJI संजीव खन्ना का वक्फ एक्ट पर तीखा जवाब
सुप्रीम कोर्ट में वक्फ एक्ट 2025 की सुनवाई के दौरान वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की भागीदारी पर सवाल उठे. मुख्य न्यायाधीश ने न्यायिक निष्पक्षता और धार्मिक संतुलन पर चिंता जताई. केंद्र ने सफाई दी कि गैर-मुस्लिमों की संख्या सीमित है और इससे बोर्ड की मुस्लिम संरचना प्रभावित नहीं होती.

सुप्रीम कोर्ट में वक्फ एक्ट 2025 को लेकर सुनवाई के पहले दिन ही तीखी बहस देखने को मिली. मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच इस एक्ट की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत के समक्ष जो दलीलें रखीं, उन्होंने बहस को एक नया मोड़ दे दिया.
केंद्र सरकार ने वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की सीमित भागीदारी को सही ठहराया और कहा कि यह किसी भी तरह से बोर्ड की मुस्लिम संरचना को प्रभावित नहीं करता. सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में केवल दो गैर-मुस्लिमों को ही नामांकित किया जा सकता है, जबकि कुल सदस्य संख्या 22 के आसपास होती है, जिसमें बहुसंख्यक सदस्य मुस्लिम ही रहते हैं.
बहस का सबसे विवादास्पद हिस्सा
हालांकि, बहस का सबसे विवादास्पद हिस्सा तब सामने आया जब मेहता ने तर्क दिया कि यदि गैर-मुस्लिमों की बोर्ड में भागीदारी पर सवाल उठाए जाते हैं, तो तर्क के अनुसार गैर-मुस्लिम न्यायाधीशों की बेंच को भी इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लेना चाहिए. इस पर CJI खन्ना ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा, “माफ कीजिए मिस्टर मेहता, जब हम यहां बैठते हैं तो हम अपना धर्म भूल जाते हैं. हम पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष होते हैं. न्यायालय में हमारे लिए कोई पक्ष या धर्म मायने नहीं रखता.”
केंद्र सरकार के उस तर्क पर भी सवाल
CJI खन्ना ने केंद्र सरकार के उस तर्क पर भी सवाल उठाए जिसमें वक्फ बोर्ड जैसे धार्मिक संस्थानों में गैर-मुस्लिमों की भागीदारी को उचित ठहराया गया है. उन्होंने पलटकर पूछा कि क्या हिंदू धार्मिक ट्रस्टों और संस्थानों के प्रबंधन बोर्ड में मुस्लिमों को शामिल किया जा सकता है? यह सवाल सीधे तौर पर संविधान के धर्मनिरपेक्ष चरित्र और धार्मिक संस्थानों के स्वायत्तता अधिकार को छूता है.
CJI ने पलटकर पूछा
जब SG मेहता ने यह कहा कि यह एक “सलाहकार बोर्ड” है, तो CJI ने पलटकर पूछा कि यदि यह सिर्फ सलाहकार है तो उसमें मुस्लिमों की बहुलता क्यों नहीं होनी चाहिए? जवाब में मेहता ने संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट का हवाला दिया और कहा कि दो गैर-मुस्लिमों की अनुमति केवल पदेन सदस्यों तक सीमित है.
सुप्रीम कोर्ट ने साफ संकेत दिया
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ संकेत दिया कि न्यायालय केवल संवैधानिक मूल्यों के आधार पर निर्णय लेगा और उसमें धर्म का कोई स्थान नहीं होगा. मामला अब अगली सुनवाई में और पेचीदा बहस की ओर बढ़ सकता है.


