भारत की रूस से सस्ती तेल खरीद पर अमेरिका नाराज, मार्को रुबियो ने जताई चिंता
भारत और अमेरिका के बीच सामरिक संबंधों की गहराई भले ही दिनोंदिन बढ़ रही हो, लेकिन कुछ पुराने मुद्दे ऐसे हैं जो दोनों देशों के रिश्तों में समय-समय पर दरार डालते हैं. हाल ही में अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने भारत द्वारा रूस से सस्ते कच्चे तेल की खरीद को लेकर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि यह अमेरिका के लिए "असहज बिंदु" है.

भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी लगातार गहराती जा रही है, लेकिन कुछ मुद्दे ऐसे हैं जो दोनों देशों के रिश्तों में बार-बार खटास पैदा करते हैं. अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि भारत का रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदना वाशिंगटन के लिए एक बड़ा "असहज बिंदु" है, हालांकि यह अकेला कारण नहीं है जिससे दोनों देशों के बीच तनाव बना हुआ है.
रुबियो का यह बयान ऐसे समय में आया है जब अमेरिका लंबे समय से भारत पर दबाव बना रहा है कि वह रूस से तेल खरीद कम करे और अमेरिकी कृषि और डेयरी उत्पादों के लिए अपने बाजार को खोले. हालांकि, भारत इस पर अपनी मजबूत आपत्तियां जताता रहा है, खासकर किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की सुरक्षा को लेकर.
रूसी तेल से "रूसी युद्ध प्रयासों को मिल रही मदद
अमेरिकी रेडियो चैनल फॉक्स से बातचीत में मार्को रुबियो ने कहा कि भारत की ऊर्जा जरूरतें बहुत बड़ी हैं, और वह अपने आर्थिक विकास के लिए तेल, कोयला और गैस जैसी चीज़ों की खरीद करता है. रूस से तेल इसलिए खरीदा जाता है क्योंकि उस पर प्रतिबंध लगे हैं और वह वैश्विक कीमतों से भी सस्ता मिलता है. उन्होंने कहा कि भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने से यूक्रेन के खिलाफ चल रहे युद्ध में मास्को को अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक समर्थन मिल रहा है. दुर्भाग्य से, यह रूस के युद्ध प्रयासों को बनाए रखने में मदद कर रहा है। इसलिए यह भारत और अमेरिका के रिश्तों में एक असहज बिंदु जरूर है, हालांकि अकेला नहीं. हमारे कई अन्य क्षेत्रों में सहयोग भी हैं.
व्यापार समझौते की राह में रोड़ा बनी कृषि और डेयरी
भारत और अमेरिका के बीच व्यापक व्यापार समझौते की संभावनाएं लंबे समय से अटकी हुई हैं, और इसकी सबसे बड़ी वजह भारतीय कृषि और डेयरी क्षेत्र का अमेरिकी उत्पादों के लिए "बंद" होना है. अमेरिका चाहता है कि भारत अपने बाजार को जीएम (Genetically Modified) फसलों, डेयरी उत्पादों और अन्य कृषि वस्तुओं जैसे मक्का, सोयाबीन, सेब, बादाम और एथेनॉल के लिए खोले। लेकिन भारत का तर्क है कि इन सस्ते और सब्सिडी युक्त उत्पादों से देश के छोटे किसानों की आजीविका खतरे में पड़ सकती है.
सरकारी सूत्रों के अनुसार, भारत में अभी डेयरी, चावल, गेहूं और जीएम फसलों पर शुल्क कम करना संभव नहीं है। इससे 700 मिलियन ग्रामीण आबादी, जिनमें 80 मिलियन छोटे डेयरी किसान शामिल हैं, पर गंभीर असर पड़ सकता है.
अमेरिका की अन्य मांगें भी बनीं बाधा
कृषि और डेयरी के अलावा अमेरिका कई और क्षेत्रों में भारत से रियायतें चाहता है. इनमें ऑटोमोबाइल, दवाइयां, मेडिकल डिवाइसेज, शराब, और डेटा स्टोरेज से जुड़े नियम शामिल हैं. अमेरिका भारत से नॉन-टैरिफ बाधाओं को कम करने, कस्टम्स प्रक्रिया को सरल बनाने और डिजिटल ट्रेड व पेटेंट कानूनों में लचीलापन लाने की मांग कर रहा है. हालांकि भारत का रुख स्पष्ट है राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं किया जा सकता, खासकर जब बात किसानों और देश की खाद्य सुरक्षा की हो.


