ISS पर 6 दिन पूरे कर चुके अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला, जल्द भारत के छात्रों से करेंगे सीधा संवाद
अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने ISS पर अपने मिशन के छठे दिन अंतरिक्ष में जैविक, तकनीकी और शारीरिक अनुसंधानों की एक श्रृंखला को सफलतापूर्वक अंजाम दिया.

अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर अपने मिशन 'एक्सिओम-4' के तहत छठा दिन पूरा कर लिया है. इस ऐतिहासिक मिशन के दौरान वो कई महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रयोगों में व्यस्त हैं, जिनका उद्देश्य ना केवल अंतरिक्ष में जीवन को बेहतर बनाना है, बल्कि धरती पर भी चिकित्सा और तकनीक के क्षेत्र में नई संभावनाएं तलाशना है.
4 जुलाई को शुभांशु शुक्ला भारत के छात्रों से सीधे संवाद करेंगे और उन्हें बताएंगे कि अंतरिक्ष में रहना और काम करना कैसा अनुभव है. ये संवाद युवा वैज्ञानिकों और छात्रों को प्रेरित करेगा और अंतरिक्ष विज्ञान के प्रति उनकी जिज्ञासा को और बढ़ाएगा.
जैविक प्रयोगों में व्यस्त शुभांशु
अपने छठे दिन, शुभांशु ने 'स्पेस माइक्रो अल्गी स्टडी' के साथ दिन की शुरुआत की. ये अध्ययन ये समझने की कोशिश करता है कि माइक्रोग्रैविटी यानी सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में शैवाल (Algae) का विकास और उसका जेनेटिक व्यवहार कैसे बदलता है. ये शोध भविष्य में लंबी अंतरिक्ष यात्राओं के लिए खाद्य, ईंधन और ऑक्सीजन के स्थायी स्रोत प्रदान करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकता है.
इसके अलावा, उन्होंने ‘मायोजेनेसिस स्टडी’ के लिए माइक्रोस्कोपी के माध्यम से मांसपेशी कोशिकाओं के विकास की जांच की. इस प्रयोग से अंतरिक्ष में और पृथ्वी पर मांसपेशी क्षरण को रोकने के लिए नई थेरेपीज विकसित की जा सकती हैं.
जीवन की दृढ़ता को समझने की कोशिश
शुभांशु ने ‘वॉयेजर टार्डीग्रेड्स’ नाम की एक अन्य प्रयोग का भी डॉक्यूमेंटेशन किया. ये अध्ययन सूक्ष्मजीव टार्डीग्रेड्स की अंतरिक्ष में जीवित रहने और प्रजनन करने की क्षमता पर केंद्रित है. इसके परिणाम सेलुलर रेजिलिएंस यानी कोशिका की मजबूती से जुड़े आणविक तंत्र को समझने में मदद कर सकते हैं, जिसका उपयोग पृथ्वी पर कई बीमारियों के इलाज में किया जा सकता है.
भविष्य के लिए अंतरिक्ष पोशाकों की तैयारी
शुभांशु और उनके दल ने ‘सूट फैब्रिक स्टडी’ में भाग लिया, जो अंतरिक्ष में कपड़ों और शरीर के बीच गर्मी के स्थानांतरण की प्रक्रिया को समझने का प्रयास है. ये अध्ययन भविष्य के अंतरिक्ष पोशाकों को प्रभावशाली और आरामदायक बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है. इसके अलावा, ये तकनीक पृथ्वी पर स्पोर्ट्सवियर और मेडिकल गारमेंट्स को भी और बेहतर बना सकती है.
अंतरिक्ष में कैसे बदलती है इंसान की आवाज?
Ax-4 क्रू ने 'वॉइस इन स्पेस स्टडी' में भी भाग लिया, जिसमें देखा गया कि अंतरिक्ष में आवाज कैसे बदलती है. माइक्रोग्रैविटी की स्थिति में मानव आवाज के स्वर, कंपन और उच्चारण में सूक्ष्म परिवर्तन हो सकते हैं. इस अध्ययन के लिए इलेक्ट्रोग्लॉटोग्राफ सेंसर और स्क्रिप्टेड वोकल टास्क का उपयोग किया गया. इसका उद्देश्य AI एल्गोरिद्म को प्रशिक्षित करना है, ताकि वह इन सूक्ष्म बदलावों को पहचान सके और भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों की सेहत की निगरानी और वॉयस बेस्ड AI सिस्टम को बेहतर बना सके.
शुभांशु और उनकी टीम ने 'सेरेब्रल हीमोडायनामिक्स स्टडी' के तीसरे चरण को पूरा किया. इसमें अल्ट्रासाउंड तकनीक से मस्तिष्क में रक्त प्रवाह को ट्रैक किया गया. ये अध्ययन अंतरिक्ष में कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम के अनुकूलन को समझने में मदद करेगा और पृथ्वी पर दिल और मस्तिष्क संबंधी बीमारियों के निदान के लिए नई तकनीकों का मार्ग प्रशस्त करेगा.
4 जुलाई को छात्रों से जुड़ेंगे शुभांशु
शुभांशु शुक्ला 4 जुलाई को भारत के छात्रों से लाइव जुड़ेंगे, जहां वे अंतरिक्ष में जीवन, अनुसंधान और अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा करेंगे. यह संवाद ना केवल प्रेरणादायक होगा, बल्कि देश के भविष्य के वैज्ञानिकों को नई दिशा देने का कार्य करेगा.


