वक्फ कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की दलील: "वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं"
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वक्फ कानून में किए गए हालिया संशोधनों के जरिए वे समस्याएं सुलझा ली गई हैं, जिन्हें न तो ब्रिटिश शासन और न ही पिछली भारतीय सरकारें समाधान दे सकीं. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून से जुड़े मामलों की सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि *वक्फ* कोई धार्मिक अनिवार्यता नहीं.

केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून से जुड़े मामलों की सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि *वक्फ* कोई धार्मिक अनिवार्यता नहीं, बल्कि एक दान की व्यवस्था है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वक्फ इस्लामी अवधारणा जरूर है, लेकिन यह इस्लाम का आवश्यक अंग नहीं है. उन्होंने इसे अन्य धर्मों में प्रचलित दान की व्यवस्था से जोड़ा और कहा कि ईसाई, हिंदू और सिख धर्मों में भी दान की परंपरा है.
मेहता का तर्क
मेहता ने यह भी तर्क दिया कि वक्फ बोर्ड "धर्मनिरपेक्ष कार्य" करते हैं, जबकि मंदिरों का प्रशासन पूर्णतः धार्मिक होता है. उन्होंने कहा कि यदि मंदिर का प्रबंधन मुस्लिम के अधीन हो सकता है, तो वक्फ का धर्मनिरपेक्ष दायित्व इस आधार पर देखा जाना चाहिए.
‘वक्फ-बाय-यूजर’
केंद्र ने यह भी कहा कि सरकार को ‘वक्फ-बाय-यूजर’ के तहत घोषित संपत्तियों को वापस लेने का अधिकार है. खासकर जब वह जमीन सरकारी हो. सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि यदि किसी सरकारी जमीन को बिना वैध दस्तावेज के वक्फ घोषित किया गया है, तो सरकार उसे कानूनी रूप से वापस ले सकती है. मेहता ने बताया कि हालिया वक्फ संशोधन कानूनों ने दशकों पुरानी समस्याओं को सुलझाने की कोशिश की है, जिनसे ब्रिटिश और बाद की सरकारें नहीं निपट पाईं. उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में 96 लाख प्रतिक्रियाएं मिलीं और संयुक्त संसदीय समिति की 36 बैठकें हुईं.
सुप्रीम कोर्ट का स्पष्टीकरण
सुप्रीम कोर्ट ने भी यह स्पष्ट किया कि संसद द्वारा बनाए गए कानून को संवैधानिक माना जाता है और जब तक कोई स्पष्ट उल्लंघन न दिखे, अदालतें उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं. केंद्र चाहता है कि सुनवाई केवल तीन बिंदुओं तक सीमित हो, ‘यूज़र-बाय-वक्फ’ का सिद्धांत, वक्फ निकायों में गैर-मुस्लिमों की भागीदारी और सरकारी जमीन की वक्फ संपत्ति के रूप में पहचान.


