कोरोना का डेल्टा वैरिएंट दे रहा है साइलेंट हार्ट अटैक और थायराइड जैसी नई समस्याएं, IIT इंदौर की रिपोर्ट ने जताई चिंता
IIT इंदौर की नई रिसर्च में पता चला है कि कोरोना वायरस के डेल्टा वैरिएंट से सिर्फ सांस की बीमारी नहीं बल्कि साइलेंट हार्ट अटैक और थायराइड जैसी गंभीर समस्याएं भी हो रही हैं. पूरी रिपोर्ट में जानिए वैज्ञानिकों ने क्या-क्या खास बातें बताई हैं और कैसे इससे बचा जा सकता है.

Covid-19: कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था, लेकिन अभी भी इसके नए नए खतरे सामने आ रहे हैं. जैसे-जैसे वायरस के वैरिएंट्स बदलते गए, वैसे-वैसे इसके शरीर पर असर के नए नए पहलू भी खुलते गए.
हाल ही में IIT इंदौर और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के सहयोग से हुए एक अहम शोध ने यह बताया है कि कोरोना वायरस के डेल्टा वैरिएंट से साइलेंट हार्ट अटैक और थायराइड जैसी गंभीर बीमारियां भी हो सकती हैं. इस शोध से हमें कोविड के लम्बे समय तक चलने वाले प्रभावों को समझने और बेहतर इलाज खोजने में मदद मिलेगी.
शोध का पूरा हाल
IIT इंदौर के वैज्ञानिकों ने कोविड के अलग-अलग वैरिएंट — जैसे वाइल्ड टाइप, अल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा — का प्रभाव शरीर पर कैसे पड़ता है, इसका गहन अध्ययन किया. इस काम के लिए देश भर में कोविड की पहली और दूसरी लहर के 3,134 मरीजों का डाटा इकट्ठा किया गया और मशीन लर्निंग के जरिए उनके खून में पाए जाने वाले कई महत्वपूर्ण मापदंडों का विश्लेषण किया गया. इनमें सी-रिएक्टिव प्रोटीन, डी-डाइमर, फेरिटिन, व्हाइट ब्लड सेल काउंट, लिम्फोसाइट्स, यूरिया, क्रिएटिन और लैक्टेट शामिल थे.
शोध के प्रमुख डॉ. हेमचंद्र झा और डॉ. निर्मल कुमार मोहकुद के नेतृत्व में यह पता चला कि डेल्टा वैरिएंट शरीर के हार्मोनल और मेटाबोलिक सिस्टम को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है. खासतौर पर कैटेकोलामाइन और थायराइड हार्मोन के उत्पादन में गड़बड़ी से साइलेंट हार्ट अटैक जैसी खतरनाक स्थितियां पैदा होती हैं.
फेफड़ों और कोशिकाओं पर भी अध्ययन
शोध टीम ने मरीजों के फेफड़े और कोलन (आंत्र) की कोशिकाओं का भी अध्ययन किया, जो स्पाइक प्रोटीन के संपर्क में आई थीं. इस अध्ययन से पता चला कि डेल्टा वैरिएंट ने शरीर के रासायनिक संतुलन में गहरा व्यवधान डाला है, जिससे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो रही हैं.
शोध की खास बातें और भविष्य के लिए उम्मीदें
यह शोध जर्नल ऑफ प्रोटिओम रिसर्च में प्रकाशित हुआ है और इसे मल्टी-ओमिक्स और रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी जैसी नई तकनीकों की मदद से पूरा किया गया. IIT इंदौर के निदेशक प्रोफेसर सुहास एस. जोशी ने कहा कि यह शोध कोविड-19 के दीर्घकालिक प्रभावों को समझने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और इससे बेहतर इलाज के रास्ते खुलेंगे.
डॉ. हेमचंद्र झा ने बताया कि इस शोध से यह समझने में मदद मिलेगी कि कोविड के विभिन्न वैरिएंट शरीर को कैसे प्रभावित करते हैं और कैसे हम लंबी अवधि तक रहने वाले कोविड के लक्षणों को बेहतर तरीके से संभाल सकते हैं.
कोविड का डेल्टा वैरिएंट सिर्फ सांस से जुड़ी बीमारी नहीं है, बल्कि यह हमारे दिल, हार्मोन और मेटाबोलिज्म को भी प्रभावित करता है. इस बात का खुलासा IIT इंदौर के इस नए शोध ने किया है. इसलिए कोरोना के बाद भी सावधानी और सही इलाज की जरूरत है ताकि हम इसके दुष्प्रभावों से बच सकें और स्वस्थ जीवन जी सकें.


