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राहुल गांधी के सावरकर मानहानि मुकदमे के दौरान ड्रामा, खाली सीडी ने पुणे की अदालत को चौंकाया

पुणे की एमपी-एमएलए अदालत में राहुल गांधी मानहानि मामले में पेश की गई मुख्य साक्ष्य सीडी खाली निकलने से सुनवाई में नया मोड़ आ गया. ऑनलाइन वीडियो को साक्ष्य मानने पर विवाद हुआ और अब मामला आगे की कार्यवाही के लिए अगली तारीख तक टल गया.

Yaspal Singh
Edited By: Yaspal Singh

पुणेः लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के खिलाफ चल रहे मानहानि के मामले में गुरुवार को पुणे की एमपी-एमएलए विशेष अदालत में एक अप्रत्याशित मोड़ सामने आया. अदालत में मुख्य साक्ष्य के रूप में पेश की गई वह सीलबंद सीडी चलाने पर पूरी तरह खाली पाई गई. इस विकास के बाद सुनवाई की प्रक्रिया और पूर्व में जारी किए गए सम्मन पर भी सवाल उठने लगे हैं.

राहुल गांधी यह मामला इसलिए झेल रहे हैं क्योंकि उन पर आरोप है कि उन्होंने लंदन में दिए गए एक भाषण में हिंदू विचारक विनायक दामोदर सावरकर के प्रति आपत्तिजनक टिप्पणी की थी. यह शिकायत सावरकर के पोते सत्यकी सावरकर ने दायर की थी.

सीडी पहले अदालत में चल चुकी थी

सुनवाई की अध्यक्षता मजिस्ट्रेट अमोल शिंदे कर रहे थे. सत्यकी सावरकर की मुख्य परीक्षा के दौरान कोर्ट में वह सीलबंद सीडी खोली गई, जिसे संज्ञान लेते समय अदालत में चलाया गया था. शिकायतकर्ता पक्ष ने दावा किया था कि इसी सीडी में मौजूद वीडियो देखकर अदालत ने राहुल गांधी को तलब किया था.

लेकिन गुरुवार को जब इस सीडी को खुली अदालत में चलाया गया, तो यह देखकर सब हैरान रह गए कि उसमें कोई भी डेटा नहीं था. शिकायतकर्ता की ओर से वकील संग्राम कोल्हटकर ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि यह वही सीडी है जिसे अदालत ने पहले देखा था. ऐसे में उसका खाली पाया जाना गंभीर सवाल खड़ा करता है.

ऑनलाइन वीडियो को साक्ष्य के रूप में पेश करने पर विवाद

खाली सीडी सामने आने के बाद कोल्हटकर ने अदालत से अनुरोध किया कि वह यूट्यूब पर उपलब्ध राहुल गांधी के उस भाषण को सीधे देख ले. लेकिन बचाव पक्ष के वकील मिलिंद दत्तात्रेय पवार ने इसका कड़ा विरोध किया. उन्होंने तर्क दिया कि इंटरनेट पर उपलब्ध किसी भी सामग्री को बिना आवश्यक प्रमाणपत्र के कोर्ट में स्वीकार नहीं किया जा सकता.

मजिस्ट्रेट अमोल शिंदे ने बचाव पक्ष की आपत्ति स्वीकार करते हुए कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65बी के तहत किसी भी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को साक्ष्य के रूप में मान्यता तभी मिल सकती है जब उसके साथ उचित प्रमाणपत्र संलग्न हो. उन्होंने स्पष्ट कहा, “यूआरएल धारा 65बी के तहत प्रमाणित नहीं है, इसलिए इसे साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता.”

अदालत ने मना किया

इसके बाद कोल्हटकर ने दो और सीडी अदालत में पेश कीं और आग्रह किया कि उन्हें खुली अदालत में चलाकर देखा जाए. किन्तु बचाव पक्ष ने दोबारा आपत्ति जताई और मजिस्ट्रेट ने वह मांग भी अस्वीकार कर दी. कोल्हटकर ने अब मांग की है कि पहले पेश की गई खाली सीडी को लेकर न्यायालयिक जांच कराई जाए और अस्वीकृत आवेदनों को चुनौती देने के लिए सुनवाई स्थगित की जाए. बचाव पक्ष इस स्थगन के खिलाफ था, लेकिन अंततः अदालत ने सुनवाई अगले दिन तक के लिए स्थगित कर दी.

अब अगली सुनवाई पर टिकी निगाहें

खाली सीडी मिलने से मुकदमे की दिशा बदल सकती है. यह प्रश्न भी उठ रहा है कि यदि सीडी पहले अदालत में चलाई गई थी तो अब उसमें डेटा क्यों नहीं है. अब शुक्रवार की सुनवाई में तय होगा कि आगे की प्रक्रिया क्या होगी, और क्या जांच की मांग पर अदालत कोई नया निर्देश देगी.

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29 November 2025, 07:36 AM IST

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