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हर साल दहेज की भेंट चढ़ती हैं इतनी बेटियां, NCRB की रिपोर्ट में चौंकाने वाले हैं आंकड़े

ग्रेटर नोएडा में विवाहिता निक्की की जलकर मौत ने दहेज प्रथा और महिला सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. NCRB रिपोर्ट बताती है कि हर तीन दिन में 54 महिलाएं दहेज प्रताड़ना या हत्या की शिकार होती हैं.

NCRB Data: उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा से एक ऐसा मामला सामने आया जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है. यहां निक्की नाम की एक विवाहिता की मौत ने एक बार फिर से दहेज प्रथा और महिलाओं की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. सीसीटीवी फुटेज में देखा गया कि निक्की आग की लपटों में घिरी हुई सीढ़ियों से नीचे उतरने की कोशिश कर रही थी और अपनी जान बचाने के लिए खुद संघर्ष कर रही थी.

NCRB की रिपोर्ट में चौंकाने वाले आंकड़े

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े इस समस्या की गंभीरता को दर्शाते हैं. 2022 में दहेज हत्या के कुल 6,450 मामले दर्ज किए गए थे. इनमें से लगभग 80% मामले बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और हरियाणा से सामने आए. इसका मतलब है कि औसतन हर तीन दिन में करीब 54 महिलाएं दहेज प्रताड़ना या हत्या की शिकार होती हैं. ये आंकड़े सिर्फ संख्या नहीं, बल्कि समाज के लिए एक दर्दनाक वास्तविकता हैं.

दहेज के खिलाफ बने कानून

भारत में दहेज के खिलाफ कई सख्त कानून मौजूद हैं, जिनमें शामिल हैं:-

  • दहेज निषेध अधिनियम 1961

  • भारतीय दंड संहिता की धारा 304B (दहेज हत्या)

  • IPC की धारा 498A (क्रूरता के खिलाफ प्रावधान)

  • घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005

इसके बावजूद न्याय प्रक्रिया में देरी, सुनवाई की धीमी गति और सामाजिक जागरूकता की कमी इसे खत्म करने में बड़ी बाधा बनी हुई है.

दहेज प्रथा की जड़ें और कानून का इतिहास

दहेज प्रथा की शुरुआत बेटियों को आर्थिक सहयोग देने के लिए की गई थी, लेकिन समय के साथ ये लालच और शोषण का साधन बन गई. 1961 में दहेज प्रतिषेध अधिनियम लागू किया गया, जो दहेज लेना-देना अपराध घोषित करता है. 1983 में IPC की धारा 498A और CrPC की धारा 198A जोड़ी गईं, ताकि पति या ससुराल पक्ष द्वारा की गई क्रूरता पर कार्रवाई हो सके. IPC की धारा 304B के अनुसार, अगर शादी के 7 साल के भीतर महिला की मृत्यु दहेज विवाद से जुड़ी पाई जाती है, तो उसे दहेज हत्या माना जाएगा. साक्ष्य अधिनियम की धारा 113B स्पष्ट करती है कि ऐसे मामलों में पति या ससुराल पक्ष पर दोष की presumption होगी.

महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने कई प्रावधान जोड़े हैं, लेकिन जब तक समाज में जागरूकता और मानसिकता में बदलाव नहीं होगा, तब तक दहेज हत्या जैसे मामले रुकना मुश्किल है. ये समय है जब कानून के साथ-साथ समाज को भी एकजुट होकर इस कुप्रथा को समाप्त करने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे.

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26 August 2025, 02:03 PM IST

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