खालिदा जिया के जनाजे में शामिल होंगे विदेश मंत्री एस जयशंकर, कल जाएंगे बांग्लादेश
भारत-बांग्लादेश संबंधों में तनाव के बीच विदेश मंत्री एस. जयशंकर खालिदा जिया के अंतिम संस्कार में शामिल होंगे. इसे ढाका से रिश्ते सुधारने की कोशिश माना जा रहा है, जबकि बदलते राजनीतिक हालात और तारिक रहमान के बयान नई दिशा के संकेत दे रहे हैं.

नई दिल्लीः भारत और बांग्लादेश के रिश्तों में जारी तनाव के बीच एक अहम कूटनीतिक संकेत सामने आया है. विदेश मंत्री एस. जयशंकर 31 दिसंबर को बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की अध्यक्ष खालिदा जिया के राजकीय अंतिम संस्कार में शामिल होंगे. जयशंकर की यह यात्रा ऐसे समय हो रही है, जब ढाका और नई दिल्ली के संबंध पिछले कुछ महीनों में काफी चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं.
खालिदा जिया का निधन ऐसे राजनीतिक माहौल में हुआ है, जब उनके बेटे और बीएनपी के वास्तविक नेता तारिक रहमान 17 वर्षों के निर्वासन के बाद चुनावी बांग्लादेश लौटे हैं. इससे देश की राजनीति में बड़े बदलाव के संकेत मिल रहे हैं.
रिश्तों में सुधार की कोशिश के रूप में देखा जा रहा कदम
जयशंकर का अंतिम संस्कार में शामिल होना केवल औपचारिक शिष्टाचार नहीं माना जा रहा, बल्कि इसे नई दिल्ली की ओर से ढाका के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. पिछले वर्ष छात्र आंदोलन के बाद शेख हसीना सरकार के सत्ता से बाहर होने के बाद भारत-बांग्लादेश संबंधों में ठंडापन आ गया था.
भारत के लिए बांग्लादेश दक्षिण एशिया में एक अहम रणनीतिक साझेदार रहा है, लेकिन राजनीतिक बदलावों और नई सत्ता संरचना के बाद दोनों देशों के बीच भरोसे की कमी महसूस की जा रही है.
खालिदा जिया का राजनीतिक दौर
खालिदा जिया ने बांग्लादेश में दो बार प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया. पहली बार 1991 से 1996 तक और दूसरी बार 2001 से 2006 के बीच. उनके नेतृत्व को अक्सर अवामी लीग और भारत के करीबी रिश्तों के संतुलन के रूप में देखा जाता था.
अपने कार्यकाल के दौरान खालिदा जिया ने चीन के साथ संबंधों को मजबूत किया, जो नई दिल्ली के लिए हमेशा चिंता का विषय रहा. खासतौर पर उनके दूसरे कार्यकाल में बांग्लादेश का झुकाव बीजिंग की ओर बढ़ा और चीन देश का प्रमुख सैन्य उपकरण आपूर्तिकर्ता बन गया.
भारत की बढ़ती चिंताएं
वर्तमान में मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार द्वारा भारत से दूरी बनाए रखने के चलते नई दिल्ली की चिंताएं और बढ़ गई हैं. भारत को आशंका है कि बांग्लादेश कहीं पाकिस्तान और चीन के बेहद करीब न चला जाए, जिससे क्षेत्रीय संतुलन प्रभावित हो सकता है.
इस बीच, आगामी चुनावों में अहम भूमिका निभाने वाले तारिक रहमान के हालिया बयान भारत के लिए कुछ हद तक सकारात्मक संकेत देते हैं.
तारिक रहमान के बयान
तारिक रहमान ने अंतरिम सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा था कि बिना जनादेश वाली सरकार को दीर्घकालिक विदेश नीति के फैसले लेने का अधिकार नहीं होना चाहिए. बाद में ढाका में एक रैली के दौरान उन्होंने बांग्लादेश की स्वतंत्र विदेश नीति की बात कही. उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि न दिल्ली, न पिंडी बांग्लादेश सर्वोपरि है. इस बयान को भारत और पाकिस्तान, दोनों से समान दूरी बनाए रखने के संकेत के रूप में देखा गया.
कट्टरपंथी ताकतों से दूरी
तारिक रहमान ने भारत-विरोधी मानी जाने वाली जमात-ए-इस्लामी जैसी कट्टरपंथी पार्टियों की भी कड़ी आलोचना की है. उन्होंने 1971 के युद्ध के दौरान पाकिस्तान का समर्थन करने को लेकर जमात की भूमिका पर सवाल उठाए. यह रुख भारत के लिए एक सकारात्मक राजनीतिक संकेत माना जा रहा है.


