खालिदा जिया के निधन पर शेख हसीना का भावुक संदेश, दोस्ती से दुश्मनी तक बांग्लादेश की दो बेगमों की कहानी
बांग्लादेश की राजनीति की एक अहम धुरी मानी जाने वाली पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के निधन से देश शोक में डूबा है. उनके निधन पर शेख हसीना ने शोक जताते हुए परिवार वालों के प्रति संवेदना जाहिर की है.

नई दिल्ली: बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री खालिदा जिया के निधन से पूरा देश शोक में डूबा हुआ है.देश की राजनीति की एक अहम धुरी मानी जाने वाली पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की मृत्यु के साथ ही बांग्लादेश के राजनीतिक इतिहास का एक निर्णायक अध्याय भी समाप्त हो गया.मोहम्मद यूनुस के साथ-साथ उनकी प्रतिद्वंती रही शेख हसीना ने भी उनके निधन पर दुख जताया और उनके योगदान की सराहना की है.
कई दशकों तक बांग्लादेश की राजनीति जिन दो नामों के इर्द-गिर्द घूमती रही, वे थीं शेख हसीना और खालिदा जिया.कभी एक-दूसरे की सहयोगी रहीं ये दोनों महिलाएं समय के साथ ऐसी प्रतिद्वंद्वी बनीं कि देश की राजनीति दो ध्रुवों में बंट गई.आज, जब खालिदा जिया इस दुनिया में नहीं रहीं, शेख हसीना ने उनके योगदान को याद करते हुए सम्मानजनक शब्दों में श्रद्धांजलि दी है.
खालिदा जिया के निधन पर शेख हसीना ने क्या कहा?
शेख हसीना ने खालिदा जिया के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा "मैं बीएनपी अध्यक्ष और बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री बेगम खालिदा जिया के निधन पर अपनी गहरी संवेदनाएं व्यक्त करती हूं. बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में और लोकतंत्र की स्थापना के संघर्ष में उनकी भूमिका के लिए देश के प्रति उनका योगदान महत्वपूर्ण रहा है और हमेशा याद रखा जाएगा. उनका निधन बांग्लादेश के राजनीतिक जीवन और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के नेतृत्व के लिए एक अपूरणीय क्षति है.
शेख हसीना ने आगे कहा "मैं बेगम खालिदा जिया की आत्मा की शांति और मगफिरत के लिए प्रार्थना करती हूं. मैं उनके पुत्र तारिक रहमान और शोकाकुल परिवार के सदस्यों के प्रति अपनी हार्दिक संवेदनाएं व्यक्त करती हूं. साथ ही, पूरे बीएनपी परिवार के प्रति भी अपनी सहानुभूति प्रकट करती हूं. मैं आशा करती हूं कि अल्लाह उन्हें इस कठिन समय को सहन करने के लिए धैर्य, शक्ति और संबल प्रदान करें."
कभी साथ लड़ीं लड़ाई फिर बनीं कट्टर प्रतिद्वंद्वी
आज भले ही शेख हसीना और खालिदा जिया को एक-दूसरे का सबसे बड़ा राजनीतिक विरोधी माना जाता हो, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब दोनों कंधे से कंधा मिलाकर सड़कों पर उतरी थीं.यह दौर था सैन्य शासक मोहम्मद इरशाद के खिलाफ लोकतंत्र की लड़ाई का. उस समय दोनों बेगमें एक ही मंच से तानाशाही के खिलाफ आवाज उठा रही थीं.
इरशाद के पतन के बाद सत्ता का संघर्ष शुरू हुआ और यहीं से दोस्ती धीरे-धीरे दुश्मनी में बदल गई.सत्ता की होड़ ने दोनों नेताओं को आमने-सामने खड़ा कर दिया और बांग्लादेश की राजनीति दो खेमों में बंट गई.
सत्ता की लड़ाई ने रिश्तों को निगल लिया
1991 में खालिदा जिया के प्रधानमंत्री बनने के बाद आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हुआ.अवामी लीग ने उन पर राजनीतिक प्रतिशोध का आरोप लगाया, जबकि सत्ता परिवर्तन के बाद बीएनपी ने शेख हसीना पर वही आरोप लगाए.संसद से लेकर सड़कों और अदालतों तक टकराव दिखने लगा.राजनीति नीतियों से हटकर व्यक्तिगत दुश्मनी का रूप लेने लगी.
निजी त्रासदियों से राजनीति तक का सफर
दोनों बेगमों की राजनीति की जड़ में गहरी व्यक्तिगत त्रासदियां रहीं. शेख हसीना ने 1975 में अपने पिता शेख मुजीबुर रहमान को खोया, जिन्हें बांग्लादेश का राष्ट्रपिता कहा जाता है.वहीं, खालिदा जिया ने अपने पति जिया उर रहमान को एक सैन्य विद्रोह में खो दिया.इन घटनाओं ने दोनों महिलाओं को राजनीति में मजबूती से खड़ा किया.
समय बदला, लेकिन प्रतिशोध और संघर्ष का चक्र चलता रहा.खालिदा जिया जेल गईं, बीएनपी कमजोर हुई, जबकि शेख हसीना सत्ता में मजबूत होती चली गईं.अब हालात फिर बदल रहे हैं, हसीना देश से बाहर हैं और उनकी वापसी अनिश्चित है, जबकि बीएनपी एक बार फिर राजनीतिक मजबूती की ओर बढ़ती दिख रही है.


