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‘क्या अब खत्म होगा मेरा वनवास?’ खालिदा जिया की मौत पर तसलीमा नसरीन का सवाल

खालिदा जिया के निधन के बाद बांग्लादेश की राजनीति से जुड़ी कई पुरानी परतें खुलने लगी हैं. मशहूर लेखिका तसलीमा नसरीन ने पूर्व प्रधानमंत्री के शासनकाल को याद करते हुए अभिव्यक्ति की आज़ादी, किताबों पर प्रतिबंध और अपने लंबे निर्वासन को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी है.

Yogita Pandey
Edited By: Yogita Pandey

नई दिल्ली: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के निधन के बाद देश-विदेश में प्रतिक्रियाओं का दौर जारी है. इसी बीच बांग्लादेशी मूल की मशहूर लेखिका और मानवाधिकार कार्यकर्ता तसलीमा नसरीन ने उनके शासनकाल को लेकर अपनी पीड़ा और अनुभव सार्वजनिक रूप से साझा किए हैं. तसलीमा की यह प्रतिक्रिया राजनीतिक शोक से इतर अभिव्यक्ति की आज़ादी और निजी संघर्षों की कहानी भी बयां करती है.

तसलीमा नसरीन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा कि खालिदा जिया ने करीब 10 साल तक प्रधानमंत्री के रूप में देश का नेतृत्व किया, लेकिन उसी दौर में उनकी कई किताबों पर प्रतिबंध लगाए गए. उन्होंने उम्मीद जताई कि अब खालिदा जिया के निधन के बाद शायद उनकी पुस्तकों से पाबंदी हटे और उनकी अभिव्यक्ति की आज़ादी बहाल हो.

TASLIMA NASREEN
TASLIMA NASREEN SOCIAL MEDIA

"मेरे खिलाफ मुकदमे दर्ज हुए, जिहादियों का साथ दिया"

तसलीमा नसरीन ने अपने पोस्ट में लिखा कि 1994 में उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए और उस समय की सरकार ने जिहादी तत्वों का साथ दिया. उन्होंने कहा कि “एक महिला, सेकुलर, मानवतावादी और फ्री-थिंकर लेखिका के खिलाफ केस दर्ज किए गए और मेरे खिलाफ अरेस्ट वॉरंट तक जारी करवाया गया.”

उनके अनुसार, इन घटनाओं के चलते उन्हें अपने ही देश से निर्वासित होना पड़ा और खालिदा जिया के शासनकाल में वे कभी भी बांग्लादेश वापस नहीं लौट सकीं.

31 साल का वनवास और अनसुलझे सवाल

तसलीमा ने भावुक शब्दों में सवाल उठाया कि क्या खालिदा जिया की मौत के साथ उनका 31 साल लंबा वनवास खत्म होगा या यह अन्याय आगे भी जारी रहेगा. उन्होंने लिखा कि यह सवाल सिर्फ उनका नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों का भी है—क्या अभिव्यक्ति की आज़ादी पीढ़ी दर पीढ़ी कुचली जाती रहेगी या कभी इसका अंत होगा.

किन-किन किताबों पर लगा था प्रतिबंध

तसलीमा नसरीन ने क्रमवार उन पुस्तकों का ज़िक्र भी किया, जिन पर खालिदा जिया के कार्यकाल में प्रतिबंध लगाया गया. उन्होंने बताया कि उनकी चर्चित किताब ‘लज्जा’ पर 1993 में प्रतिबंध लगा. इसके बाद ‘उत्तल हवा’ पर 2002 में, ‘का’ पर 2003 में और ‘वे काले दिन’ पर 2004 में पाबंदी लगाई गई थी.

“क्या अब बहाल होगी अभिव्यक्ति की आज़ादी?”

तसलीमा ने लिखा कि खालिदा जिया ने अपने जीवनकाल में कभी भी उनकी अभिव्यक्ति की आज़ादी के समर्थन में कदम नहीं उठाया. उन्होंने उम्मीद जताई कि शायद अब उनके निधन के बाद यह स्थिति बदले.

गौरतलब है कि तसलीमा नसरीन लंबे समय से भारत में रह रही हैं और उनका उपन्यास लज्जा भारत में फिल्म के रूप में भी दर्शाया जा चुका है, जिसे व्यापक पहचान मिली थी.

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