लू नहीं, बेमौसम ठंडक से परेशान किसान; मानसून बना चिंता का कारण
इस साल गर्मी में लू नहीं चली और तापमान सामान्य से 3-7 डिग्री कम रहा. इससे कृषि को नुकसान हुआ और शरीर पर भी असर पड़ा. अधिक आद्रता के कारण डिहाइड्रेशन, त्वचा व फेफड़ों की दिक्कतें और गले में खराश जैसी समस्याएं बढ़ीं, जिससे संक्रमण का खतरा भी बढ़ गया.

भारत में इस साल गर्मी का मौसम बेहद असामान्य रहा. मई-जून की वह लू, जो हर साल उत्तर भारत को झुलसाती थी, इस बार गायब रही. मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस बदलाव की वजह पश्चिमी विक्षोभ और जल्दी आया मानसून है. मई में हर तीन दिन पर बारिश और आंधी ने पारे को 43 डिग्री तक नहीं पहुंचने दिया. परिणामस्वरूप, लू का मौसम बीते सालों की तरह देखने को नहीं मिला, जो कृषि के लिए एक गंभीर संकट बनता जा रहा है.
लू की अनुपस्थिति और लगातार बारिश ने मई-जून की 'जायद फसल' जैसे तरबूज, खरबूज़ा और ककड़ी को बर्बाद कर दिया. आम की फसल तो आंधी में झड़ ही गई. खेतों की जमीन अच्छी तरह तप नहीं सकी, जिससे खरीफ फसलों की तैयारी अधूरी रह गई. किसान चिंतित हैं कि यदि जून में संतुलित बारिश न हुई और तापमान 35-36 डिग्री न रहा तो धान की रोपाई भी प्रभावित होगी.
जलवायु परिवर्तन का स्पष्ट संकेत
इस बार मानसून तय तिथि से आठ दिन पहले 22 मई को केरल पहुंच गया. लेकिन यह जल्दी आना भी एक चेतावनी है. वैज्ञानिक मानते हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग और हिमालयी ग्लेशियरों का पिघलना, दोनों इस असंतुलन के पीछे हैं. पिछले वर्षों में केदारनाथ और चमोली जैसी आपदाएं इसी वजह से आईं. हिमालय की पहाड़ियों को काटने और सड़कों के चौड़ीकरण ने जोखिम और बढ़ा दिए हैं.
मानसून और ग्लेशियरों का गहरा संबंध
हिमालय दक्षिण-पश्चिम मानसून को लौटने में अहम भूमिका निभाता है. अगर ग्लेशियर न रहे तो मानसूनी हवाएं वापसी में वर्षा नहीं करेंगी. इससे न केवल भारत, बल्कि पाकिस्तान जैसे देशों की कृषि पर भी संकट छा सकता है. गंगा-यमुना का उपजाऊ मैदान सूख सकता है और सिंधु घाटी की समृद्ध परंपरा खतरे में पड़ सकती है.
ग्लोबल इफ़ेक्ट और प्राकृतिक गुस्सा
पश्चिम एशिया और मध्य एशिया में लगातार युद्धों ने व्यापारिक हवाओं (ट्रेड विंड्स) को प्रभावित किया है. अल नीनो और ला नीना जैसे समुद्री प्रभाव अब भारत के मानसून पर भारी पड़ने लगे हैं. प्रकृति जब नाराज होती है तो कभी सूखा देती है, कभी बाढ़. यह असंतुलन अब मानव सभ्यता के लिए गंभीर चेतावनी बन चुका है.


