अटल-आडवाणी से मोदी-शाह तक… भारतीय राजनीति की अमिट दोस्ती, Friendship Day पर जानिए पॉलिटिकल रिश्तों की अनकही कहानी
भारतीय राजनीति में जहां समीकरण पल-पल बदलते हैं. वहीं कुछ रिश्ते ऐसे भी होते हैं जो समय और सियासत दोनों की कसौटी पर खरे उतरते हैं. इस फ्रेंडशिप डे के अवसर पर हम ऐसे ही कुछ राजनीतिक मित्रताओं को याद कर रहे हैं, जिन्होंने न सिर्फ सत्ता की दिशा बदली बल्कि यह साबित किया कि विश्वास और वफादारी राजनीति में भी अमूल्य होते हैं.

Political Friendship: दोस्ती सिर्फ निजी रिश्तों तक ही सीमित नहीं होती. राजनीति की जटिल गलियों में भी ऐसे रिश्ते देखने को मिलते हैं, जो समय की कसौटी पर खरे उतरते हैं. भारतीय राजनीति में कई ऐसे दोस्ताना रिश्ते हैं, जिन्होंने न केवल दलों को दिशा दी बल्कि देश की राजनीति को भी प्रभावित किया.
चाहे वो अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी हों या नरेंद्र मोदी और अमित शाह, इन नेताओं की दोस्ती ने यह साबित किया है कि भरोसे, समर्पण और साझा दृष्टिकोण से राजनीति को नई ऊंचाई दी जा सकती है. इस फ्रेंडशिप डे के मौके पर आइए आज कुछ ऐसे ही कुछ राजनीतिक मित्रताओं को याद करते हैं...
अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी
भारतीय राजनीति में जब भी दोस्ती और सहयोग की बात होती है तो अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी का नाम पहले आता है. इन दोनों नेताओं ने मिलकर भारतीय जनता पार्टी को उस ऊंचाई तक पहुंचाया, जहां से वह आज राष्ट्रीय राजनीति में निर्णायक भूमिका निभा रही है.
वाजपेयी की वाकपटुता और जननेता की छवि, वहीं आडवाणी की संगठनात्मक समझ और रणनीतिक कौशल ने भाजपा को न केवल खड़ा किया, बल्कि मजबूती भी दी. दोनों के संबंध आदर्श मित्रता के उदाहरण हैं जहां मतभेद भी थे, पर मनभेद कभी नहीं हुआ. राजनीति में उथल-पुथल के समय भी उन्होंने एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ा.
नरेंद्र मोदी और अमित शाह
वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य की सबसे शक्तिशाली और सफल जोड़ी के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को देखा जाता है. गुजरात की गलियों से लेकर दिल्ली की सत्ता तक इनकी दोस्ती ने भाजपा को दो बार लोकसभा चुनावों में ऐतिहासिक जीत दिलाई.
मोदी के जनसंपर्क कौशल और शाह की रणनीतिक क्षमता ने मिलकर नीतिगत निर्णयों से लेकर संगठन निर्माण तक हर मोर्चे पर सफलता हासिल की. आरएसएस में बनी दोस्ती ने समय के साथ राजनीतिक साझेदारी का रूप ले लिया, जो अब भारतीय राजनीति की सबसे प्रभावशाली दोस्ती मानी जाती है.
बालासाहेब ठाकरे और शरद पवार
शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे और एनसीपी प्रमुख शरद पवार के संबंध एक जटिल मगर स्थायी दोस्ती का उदाहरण हैं. भले ही विचारधारा में गहरा अंतर था जहां ठाकरे हिन्दुत्व की राजनीति के पुरोधा थे, वहीं पवार क्षेत्रीय और व्यावहारिक राजनीति के समर्थक.
1960 के दशक में शुरू हुआ यह संबंध समय के साथ मजबूत होता गया. 1990 के दशक में जब ठाकरे भाजपा के साथ खड़े हुए और पवार कांग्रेस से जुड़ गए, तब भी व्यक्तिगत रिश्ते में कोई कटुता नहीं आई. ठाकरे के निधन पर पवार की श्रद्धांजलि ने यह साफ कर दिया कि राजनीति में वैचारिक विरोध के बावजूद निजी रिश्ते कायम रखे जा सकते हैं.
सुप्रिया सुले और अनुप्रिया पटेल
राजनीति की नई पीढ़ी में भी दोस्ती की चमक बरकरार है. इसका बेहतरीन उदाहरण हैं सुप्रिया सुले और अनुप्रिया पटेल. दोनों ने अपने-अपने क्षेत्र में प्रभावशाली भूमिका निभाई है और एनडीए के तहत मिलकर काम किया है.
सुप्रिया जहां शरद पवार की बेटी और महाराष्ट्र की सशक्त नेता हैं, वहीं अनुप्रिया उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखती हैं और अपने पिता महेंद्र पटेल की विरासत को आगे बढ़ा रही हैं. दोनों नेताओं की दोस्ती महिला नेतृत्व को सशक्त करती है और यह दिखाती है कि भरोसा और समर्थन राजनीति में एक नई दिशा दे सकता है.
निशिकांत दुबे और असदुद्दीन ओवैसी
राजनीतिक वैचारिकता के ध्रुवों पर खड़े दो नेता बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की दोस्ती शायद सबसे अनोखी है. जहां दुबे मुस्लिम आरक्षण का विरोध करते हैं, वहीं ओवैसी मुस्लिम अधिकारों के प्रखर प्रवक्ता हैं.
इसके बावजूद, दोनों नेताओं ने आपसी सम्मान और मित्रता बनाए रखी है. दुबे ने ANI को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, "हमारी विचारधारा अलग है, लेकिन हम दोस्त हैं. ये दोस्ती रेलवे ट्रैक जैसी है, साथ चलती है पर मिलती नहीं."
दोनों ने विदेश यात्राओं समेत कई कार्यक्रमों में साथ काम किया है. यह दोस्ती इस बात का प्रमाण है कि व्यक्तिगत संबंध राजनीतिक वैमनस्य से ऊपर होते हैं.


