गोलकुंडा के हीरे: भारत की खोई हुई चमक और शाही विरासत
कभी 'सोने की चिड़िया' कहलाने वाला भारत अपने बेशकीमती गोलकुंडा हीरों के लिए विश्वप्रसिद्ध था. लेकिन समय के साथ विदेशी आक्रांताओं ने ये अनमोल रत्न लूट लिए. अब भी कई हीरे या तो लापता हैं या विदेशी म्यूजियमों में सजे हुए हैं. इन्हीं में से एक, गोलकुंडा ब्लू हीरा, 2025 में जिनेवा में नीलामी के लिए पेश किया जाएगा.

18वीं सदी तक भारत विशेष रूप से हैदराबाद के पास स्थित गोलकुंडा की खदानें दुनिया में हीरों का सबसे प्रमुख स्रोत थीं. ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका में खदानें मिलने से पहले तक दुनिया को सबसे बेशकीमती और चमकदार हीरे यहीं से मिलते थे. इन हीरों की चमक और शुद्धता ने भारत की समृद्धि और कारीगरी को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई.
कोहिनूर
कोहिनूर, जो आज ब्रिटेन के शाही ताज की शोभा बढ़ा रहा है, गोलकुंडा की ही देन है. इतिहास में यह हीरा कई भारतीय और विदेशी राजवंशों की शान रहा है. इसकी अनमोलता न केवल कीमत में है, बल्कि इसमें समाई भारत की ऐतिहासिक विरासत में भी है.
ग्रेट मुगल डायमंड
ग्रेट मुगल डायमंड, लगभग 787 कैरेट का यह हीरा 17वीं सदी में सामने आया था. बाद में यह घिस कर 280 कैरेट का रह गया. यह मुगल दरबार की शोभा हुआ करता था. इसी तरह, आगरा डायमंड और अहमदाबाद डायमंड भी भारतीय इतिहास की शाही निशानियाँ थीं, जिनका वर्तमान ठिकाना आज स्पष्ट नहीं है.
ओरलोव हीरा
रीजेंट हीरा, जो 410 कैरेट का था. अब पेरिस के लूव्र म्यूजियम में 140 कैरेट के रूप में रखा है. यह भारत की बेजोड़ कारीगरी का गवाह है. वहीं, ओरलोव हीरा, जो एक मंदिर से चुराया गया बताया जाता है, अब मॉस्को के क्रेमलिन में सुरक्षित है.
होप डायमंड
होप डायमंड, 45.52 कैरेट का नीला रत्न भी गोलकुंडा की खदानों से निकला था और अब अमेरिका के स्मिथसोनियन म्यूजियम की शोभा बना हुआ है.
इन तमाम हीरों का इतिहास भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का प्रतीक है. ये सिर्फ कीमती पत्थर नहीं, बल्कि भारत के गौरव, उसकी कारीगरी और खोई हुई शान के चमकते प्रतीक हैं.


