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जंग की आड़ में विरासत पर वार, विष्णु प्रतिमा टूटते ही भारत ने साफ कर दी सभ्यता की लाल रेखा

थाईलैंड और कंबोडिया की सीमा पर भगवान विष्णु की प्रतिमा टूटने की घटना ने भारत को बोलने पर मजबूर किया है. यह मामला जमीन का नहीं, बल्कि आस्था और विरासत का बन गया है.

थाईलैंड और कंबोडिया के बीच तनाव कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस बार मामला अलग है। सीमा के पास खड़ी भगवान विष्णु की प्रतिमा को नुकसान पहुंचाया गया। यह घटना सिर्फ सैन्य टकराव नहीं मानी जा रही। भारत ने इसे सभ्यता और आस्था से जुड़ा सवाल बताया। नई दिल्ली का कहना है कि युद्ध की हालत में भी धार्मिक प्रतीकों को नहीं छुआ जाना चाहिए। यह सोच बताती है कि भारत इस मुद्दे को कितनी गंभीरता से देख रहा है। यह विवाद अब जमीन से ऊपर उठ चुका है। अब बात विश्वास और विरासत की हो रही है।

भारत ने कड़ा रुख क्यों अपनाया

भारत सरकार ने साफ कहा कि ऐसी घटनाएं करोड़ों लोगों की भावनाओं को चोट पहुंचाती हैं। विदेश मंत्रालय का मानना है कि धार्मिक प्रतीक किसी एक देश के नहीं होते। वे पूरे क्षेत्र की साझा पहचान होते हैं। भारत ने यह भी कहा कि सीमाओं को लेकर मतभेद हो सकते हैं। लेकिन उन मतभेदों में आस्था को नुकसान नहीं पहुंचाया जाना चाहिए। भारत का रुख संतुलित लेकिन सख्त रहा। किसी देश का नाम लेकर आरोप नहीं लगाए गए। संदेश साफ था कि सभ्यता को नुकसान स्वीकार नहीं।

 विदेश मंत्रालय ने क्या कहा

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता Randhir Jaiswal ने इस मुद्दे पर बयान दिया। उन्होंने कहा कि हिंदू और बौद्ध परंपराएं इस पूरे क्षेत्र की साझा विरासत हैं। इन प्रतीकों को तोड़ना केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक क्षति भी है। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसी घटनाएं हालात को और बिगाड़ती हैं। भारत ने दोनों देशों से संयम बरतने की अपील की। बातचीत और कूटनीति को ही रास्ता बताया गया। बयान में शब्द संयमित थे, लेकिन संदेश बेहद स्पष्ट था।

 क्या युद्ध का तरीका बदल गया है

आज की लड़ाइयां सिर्फ हथियारों से नहीं लड़ी जा रहीं। अब इतिहास और पहचान भी निशाने पर हैं। मंदिर, मूर्तियां और स्मारक अब टकराव का हिस्सा बन रहे हैं। यह घटना उसी बदलते स्वरूप की ओर इशारा करती है। भारत का मानना है कि अगर विरासत सुरक्षित नहीं रही, तो शांति की कोई भी कोशिश अधूरी रहेगी। यही वजह है कि भारत ने सांस्कृतिक स्थलों की सुरक्षा पर जोर दिया। यह सोच बताती है कि आधुनिक कूटनीति सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं।

 पुराने विवाद क्यों फिर उभरते हैं

थाईलैंड और कंबोडिया की सीमा औपनिवेशिक दौर में तय हुई थी। उसी समय की खींची रेखाएं आज भी विवाद की वजह हैं। सीमा के पास कई प्राचीन स्थल मौजूद हैं। जब भी तनाव बढ़ता है, यही स्थल सबसे पहले प्रभावित होते हैं। यह घटना बताती है कि पुराने फैसले आज भी कितने भारी पड़ते हैं। अतीत की गलतियां वर्तमान में हिंसा बनकर लौटती हैं। यही कारण है कि विरासत पर चोट पीढ़ियों तक असर डालती है।

 भारत की भूमिका क्या रही

भारत ने इस पूरे मामले में खुद को किसी पक्ष का समर्थक नहीं बताया। भारत ने खुद को सभ्यता का पहरेदार माना। उसका कहना है कि एशिया की शांति उसकी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ी है। अगर वही जड़ें कमजोर होंगी, तो स्थिरता संभव नहीं। भारत ने यही सोच सामने रखी। यह रुख दिखाता है कि भारत सिर्फ तात्कालिक राजनीति नहीं देख रहा। वह लंबे समय की शांति की बात कर रहा है। यही उसकी कूटनीतिक पहचान है।

इस घटना से क्या सबक मिलता

यह घटना सिर्फ एक प्रतिमा के टूटने की खबर नहीं है। यह चेतावनी है कि युद्ध की कीमत क्या हो सकती है। जब स्मृतियां मिटती हैं, तो भरोसा भी टूटता है। भारत ने इसी भरोसे को बचाने की बात कही है। सवाल यह है कि क्या दुनिया इसे सुनेगी। क्या आने वाले समय में विरासत को बचाने के नियम सख्त होंगे। यह जवाब अभी सामने नहीं है। लेकिन भारत ने सवाल मजबूती से रख दिया है।

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25 December 2025, 10:59 AM IST

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