भारत की सख्ती से पाकिस्तान बेहाल! सिंधु जल संधि पर रोक का पाक पर पड़ेगा क्या असर?
Indus Waters Treaty: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के ठीक एक दिन बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ 1960 की ऐतिहासिक सिंधु जल संधि को स्थगित कर दिया है. यह कदम पाकिस्तान पर दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिसका सीधा असर उसके जल संसाधनों, कृषि और ऊर्जा उत्पादन पर पड़ सकता है.

Indus Waters Treaty: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के अगले ही दिन भारत सरकार ने पाकिस्तान के साथ 1960 में हुई सिंधु जल संधि को स्थगित करने का बड़ा कदम उठाया है. इस हमले में 26 लोगों की जान गई थी, जिनमें कई पर्यटक भी शामिल थे. भारत ने इसे गंभीर आतंकी कार्रवाई मानते हुए पाकिस्तान के खिलाफ पांच बड़े दंडात्मक कदम उठाए हैं, जिनमें यह जल संधि स्थगन सबसे प्रमुख माना जा रहा है.
भारत द्वारा उठाए गए इस कदम के दूरगामी प्रभाव पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था, कृषि और जल प्रबंधन पर पड़ सकते हैं. सिंधु नदी प्रणाली न केवल पाकिस्तान के पंजाब और सिंध क्षेत्रों की जीवनरेखा है, बल्कि इससे जुड़ी जल संधि दशकों से दोनों देशों के बीच जल बंटवारे का एक स्थिर माध्यम रही है.
सिंधु नदी प्रणाली भारत-पाक के लिए कितनी अहम?
सिंधु नदी प्रणाली में मुख्य नदी सिंधु के अलावा पांच सहायक नदियां रावी, ब्यास, सतलुज (पूर्वी नदियां) और चिनाब, झेलम (पश्चिमी नदियां) शामिल हैं. जबकि काबुल नदी दाहिनी ओर की सहायक नदी है, जो भारत से नहीं बहती. यह प्रणाली दोनों देशों की जल आवश्यकताओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है.
भारत को क्या अधिकार मिलते हैं?
भारत के पूर्व सिंधु जल आयुक्त प्रदीप कुमार सक्सेना के अनुसार, भारत एक ऊपरी प्रवाह वाला देश होने के नाते कई विकल्पों पर काम कर सकता है. उनका कहना है कि, "यदि सरकार चाहे तो यह संधि समाप्त करने की दिशा में पहला कदम हो सकता है." उन्होंने आगे कहा, "हालांकि इस संधि में सीधे तौर पर निरसन का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन वियना संधि कानून के अनुच्छेद 62 के तहत 'परिस्थितियों में मौलिक परिवर्तन' के आधार पर इसे समाप्त किया जा सकता है."
भारत कौन-कौन से कदम उठा सकता है भारत?
भारत ने पहले ही पाकिस्तान को संधि की समीक्षा और संशोधन के लिए औपचारिक नोटिस भेजा था. सक्सेना के अनुसार, "अब भारत किशनगंगा जैसे जलाशयों की 'फ्लशिंग' पर लगी पाबंदियों का पालन करने के लिए बाध्य नहीं है."
जलाशय से सिल्ट हटाने की प्रक्रिया यानी फ्लशिंग भारत के लिए बेहद अहम है, लेकिन इसके बाद जलाशय भरने की प्रक्रिया को अब किसी निश्चित समय तक सीमित नहीं रहना पड़ेगा. यह कार्य अब पाकिस्तान में बुवाई के समय किया जाए, तो उससे काफी नुकसान हो सकता है.
बांध निर्माण पर नहीं लेनी होगी इजाजत
इस संधि में अब तक भारत को पश्चिमी नदियों पर बांध और अन्य संरचनाओं के डिजाइन के लिए पाकिस्तान की आपत्ति का सामना करना पड़ता था. पाकिस्तान ने सलाल, बगलीहार, उरी, चुतक, निमू बाजगो, किशनगंगा, पाकल डुल, मियार, लोअर कलनई और रैटल जैसे प्रोजेक्ट्स पर आपत्ति जताई थी. अब संधि के अस्थगन के बाद भारत को इन आपत्तियों की परवाह नहीं करनी होगी. साथ ही, बांधों की संचालन प्रक्रिया पर भी अब कोई बंदिश नहीं रहेगी.
पाकिस्तान को नहीं मिलेगा बाढ़ का डेटा
सक्सेना के अनुसार, "भारत अब पाकिस्तान को बाढ़ संबंधित आंकड़े साझा करने के लिए बाध्य नहीं है, जो मानसून के समय पाकिस्तान के लिए खतरनाक साबित हो सकता है." भारत अब झेलम जैसी पश्चिमी नदियों पर जल भंडारण और बाढ़ नियंत्रण के उपायों पर स्वतंत्र रूप से काम कर सकता है.
सिंधु बेसिन के दोनों ओर खिंची है सीमा रेखा
भारत और पाकिस्तान की सीमा ठीक सिंधु बेसिन के आर-पार खींची गई है. भारत के हिस्से में वह संरचनाएं आईं, जिनसे पाकिस्तान के पंजाब की सिंचाई व्यवस्था निर्भर थी, जैसे माधोपुर (रावी) और फिरोजपुर (सतलुज). इसी कारण, आजादी के बाद से ही दोनों देशों के बीच जल बंटवारे को लेकर विवाद चलता रहा. अब संधि के स्थगन के बाद पाकिस्तान की सिंचाई और पीने के पानी की व्यवस्था पर बड़ा असर पड़ सकता है.


