'भाषा धर्म नहीं है' सुप्रीम कोर्ट ने उर्दू साइनबोर्ड के इस्तेमाल को ठहराया सही
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को महाराष्ट्र के एक नगरपालिका कार्यालय में उर्दू भाषा के साइनबोर्ड के इस्तेमाल को सही ठहराया. अदालत ने कहा कि भाषा किसी धर्म की नहीं होती, बल्कि यह एक समुदाय, क्षेत्र और लोगों की पहचान होती है.

Supreme Court Urdu signboard: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को महाराष्ट्र के एक नगरपालिका परिषद कार्यालय में उर्दू भाषा के साइनबोर्ड के इस्तेमाल को लेकर अहम फैसला सुनाया. अदालत ने स्पष्ट किया कि "भाषा किसी धर्म की नहीं, बल्कि एक समुदाय, क्षेत्र और लोगों की होती है." साथ ही यह भी कहा कि उर्दू "गंगा-जमुनी तहज़ीब का बेहतरीन नमूना" है.
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस निर्णय को बरकरार रखा, जिसमें महाराष्ट्र स्थानीय प्राधिकरण (राजभाषा) अधिनियम, 2022 के तहत उर्दू भाषा के प्रयोग पर कोई कानूनी रोक नहीं पाई गई थी.
पूर्व पार्षद ने दी थी चुनौती
यह याचिका एक पूर्व पार्षद द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने अकोला जिले के पाटुर नगर परिषद कार्यालय में उर्दू भाषा के साइनबोर्ड के इस्तेमाल का विरोध किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "आइए हमारी अवधारणाएं स्पष्ट हों. भाषा धर्म नहीं होती. भाषा धर्म का प्रतिनिधित्व भी नहीं करती. भाषा किसी समुदाय, क्षेत्र और लोगों की होती है, न कि किसी धर्म की. भाषा विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम है, जो विभिन्न दृष्टिकोणों और विश्वासों वाले लोगों को करीब लाती है और यह उनके विभाजन का कारण नहीं बननी चाहिए."
गंगा-जमुनी तहज़ीब का प्रतीक है उर्दू
शीर्ष अदालत ने आगे कहा कि भाषा को किसी समुदाय की सांस्कृतिक और सभ्यतागत प्रगति के प्रतीक के रूप में देखा जाना चाहिए. पीठ ने कहा, "उर्दू का मामला भी ऐसा ही है, जो गंगा-जमुनी तहज़ीब या हिंदुस्तानी तहज़ीब का बेहतरीन उदाहरण है, जो उत्तर और मध्य भारत के मैदानों की मिश्रित सांस्कृतिक भावना है. परंतु भाषा के सीखने का माध्यम बनने से पहले उसका प्राथमिक उद्देश्य संप्रेषण ही था."
भाषा के प्रति पूर्वाग्रह और भ्रांतियां गलत
अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि उर्दू जैसी भाषाओं के प्रति सामाजिक प्रतिरोध अक्सर गलतफहमियों और पूर्वाग्रहों में निहित होता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "हमारी भाषाओं के प्रति भ्रांतियां, शायद पूर्वाग्रह भी, साहस और सच्चाई से उस यथार्थ के विरुद्ध परखी जानी चाहिए, जो हमारे राष्ट्र की विविधता है. हमारी ताकत हमारी कमजोरी नहीं बन सकती."
स्थानीय लोगों की समझ को नकारना उचित नहीं
शीर्ष अदालत का यह भी कहना था कि यदि किसी क्षेत्र के निवासी उर्दू से परिचित हैं, तो आधिकारिक बोर्डों पर इसके उपयोग का विरोध करने का कोई ठोस कारण नहीं है. अदालत ने कहा, "यदि नगर परिषद के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में रहने वाले लोग या कोई समूह उर्दू से परिचित हैं, तो आधिकारिक भाषा यानी मराठी के अतिरिक्त उर्दू के प्रयोग में, कम से कम नगर परिषद के साइनबोर्ड पर, कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए." सुप्रीम कोर्ट ने सांस्कृतिक समावेश की अपील करते हुए कहा, "आइए उर्दू और हर भाषा से दोस्ती करें."