विज्ञान और धर्म पर मोहन भागवत का बयान, 'दोनों की मंजिल सत्य की खोज'
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने आंध्र प्रदेश में आयोजित भारतीय विज्ञान सम्मेलन के दौरान भारत के विकास, विज्ञान और धर्म को लेकर अपने विचार साझा किए.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने आंध्र प्रदेश में आयोजित भारतीय विज्ञान सम्मेलन के दौरान भारत के विकास, विज्ञान और धर्म को लेकर अपने विचार साझा किए. उन्होंने कहा कि भारत का आगे बढ़ना तय है, लेकिन यह प्रगति केवल आर्थिक या भौतिक स्तर तक सीमित नहीं होनी चाहिए.
मोहन भागवत ने क्या कहा?
भारत को दुनिया को कुछ नया देने की भूमिका निभानी है और उसका विकास ऐसा होना चाहिए, जिसमें मानवता और सुख की भावना भी शामिल हो. मोहन भागवत ने कहा कि आज जब हम तथाकथित विकसित देशों की ओर देखते हैं, तो वहां भौतिक उन्नति तो दिखाई देती है, लेकिन उसके साथ कई तरह के विनाशकारी परिणाम भी सामने आए हैं. कई देश अब यह महसूस कर रहे हैं कि उन्होंने भौतिक तरक्की तो कर ली, लेकिन कहीं न कहीं वे अपने मूल उद्देश्य से भटक गए. उन्होंने स्पष्ट किया कि विकास का अंतिम लक्ष्य मनुष्य को सुख देना होता है. केवल संसाधनों की वृद्धि या तकनीकी प्रगति से जीवन सार्थक नहीं बनता, जब तक उससे मानव कल्याण और संतुलन सुनिश्चित न हो.
भागवत ने मनुष्य की जिज्ञासा का उदाहरण देते हुए कहा कि हम विज्ञान के माध्यम से यह जानने की कोशिश करते हैं कि सूर्य हमसे कितनी दूरी पर है. यदि यह जानकारी न भी हो, तो इससे हमारे दैनिक जीवन पर सीधा असर नहीं पड़ता, फिर भी मानव स्वभाव सत्य की खोज करना चाहता है. यही जिज्ञासा विज्ञान और अध्यात्म दोनों की मूल प्रेरणा है.
अपने संबोधन में उन्होंने विज्ञान और धर्म के संबंध पर भी विस्तार से बात की. उन्होंने कहा कि विज्ञान और धर्म के बीच किसी प्रकार का संघर्ष नहीं है. दोनों अलग-अलग मार्ग अपनाते हैं, लेकिन उनका उद्देश्य एक ही होता है- सत्य की तलाश. उन्होंने यह भी कहा कि धर्म को अक्सर मजहब के रूप में समझ लिया जाता है, जबकि वास्तव में धर्म सृष्टि के संचालन का विज्ञान है. यह वह प्राकृतिक नियम है, जिसके अंतर्गत पूरा ब्रह्मांड कार्य करता है, चाहे कोई उसे माने या न माने.
धर्म में संतुलन जरूरी
मोहन भागवत के अनुसार, धर्म में संतुलन बना रहना अत्यंत आवश्यक है. जब इस संतुलन में गड़बड़ी आती है, तभी विनाश की परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं. उन्होंने यह भी कहा कि इतिहास में विज्ञान ने लंबे समय तक यह मानकर धर्म से दूरी बनाए रखी कि वैज्ञानिक अनुसंधान में धर्म का कोई स्थान नहीं है, लेकिन यह सोच अधूरी और गलत है.
संघ प्रमुख ने जोर देकर कहा कि विज्ञान और अध्यात्म के बीच वास्तविक अंतर केवल उनकी कार्यप्रणाली का है, न कि लक्ष्य का. विज्ञान प्रयोग और विश्लेषण के जरिए सत्य तक पहुंचता है, जबकि अध्यात्म अनुभव और आत्मबोध के माध्यम से उसी सत्य की खोज करता है. उन्होंने कहा कि विज्ञान और धर्म के बीच कोई टकराव नहीं है, बल्कि दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं और मानवता को सही दिशा देने में समान रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.


