शादी या फिर जिस्म की भूख मिटाने का साधन? क्या है मुस्लिम धर्म की सबसे बड़ी कुप्रथा 'निकाह मुताह' का सच
मुस्लिम धर्म में कई प्रथाएं ऐसी है जो महिलाओं के लिए अभिशाप है. इस्लाम धर्म में मुताह निकाह, निकाह मिस्यार, हलाला और बहुविवाह ये सभी कुप्रथा है जो मुस्लिम महिलाओं का अपमान करने जैसा है. आज हम आपको एक ऐसी कुप्रथा के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें अय्याशी और शारीरिक सुख के लिए कॉन्ट्रैक्ट के तौर पर शादी की जाती है.
मुस्लिम धर्म, जिसे इस्लाम भी कहा जाता है यह एक एकेश्वरवादी धर्म है जो अल्लाह की उपासना और पैगंबर मुहम्मद को अंतिम संदेशवाहक मानता है. इस्लाम का मूल संदेश शांति, करुणा, और इंसानियत है. इसका मुख्य ग्रंथ कुरान है, जिसे अल्लाह के शब्दों के रूप में देखा जाता है. हालांकि, इस धर्म में कई ऐसी प्रथाएं हैं जिसमें महिलाओं के आत्मसम्मान का हनन होता. ये ऐसी प्रथाएं जो महिलाओं का अपमान करती है. आज हम आपको मुस्लिम धर्म के निकाह मुताह प्रथा के बारे में बताने जा रहे हैं तो चलिए जानते हैं.
निकाह मुताह एक ऐसा विषय है, जो महिलाओं के लिए कई तरह की समस्याएं पैदा करता है. यह एक प्राचीन इस्लामी प्रथा है, जिसमें विवाह केवल एक कॉन्ट्रैक्ट के रूप में होता है. इस प्रथा की आलोचना की जाती है और इसे महिलाओं के लिए अभिशाप माना जाता है. तो चलिए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं.
क्या है निकाह मुताह?
मुताह, अरबी शब्द है जिसका मतलब होता है आनंद या मज़ा है. यह प्रथा सिर्फ़ शिया मुसलमानों के बीच ही की जाती है. जिसमें शादी की अवधि और महर पहले से तय की जाती है. इस प्रथा में, शादी की अवधि पूरी होने पर या किसी एक पक्ष की मौत होने पर शादी रद्द हो जाती है. इस निकाह को कॉन्ट्रैक्ट मैरिज कहा जा सकता है. हालांकि, इस निकाह के दौरान दोनों पक्षों को यह स्पष्ट करना होता है कि यह निकाह अस्थायी है और वे इसकी शर्तों से सहमत हैं. इस निकाह में शारीरिक संबंध बनाना वैध माना जाता है. निकाह के समय ही यह बताया जाता है कि शादी कितने समय तक चलेगी. इसके बाद विवाह की अवधि समाप्त होने पर संबंध भी समाप्त हो जाता है. इसे कई लोग इस्लामी नियमों का पालन करते हुए "विवाह के नाम पर अवैध संबंध" कह कर आलोचना करते हैं.
कॉन्ट्रैक्ट पर होती है शादी
निकाह मुताह का अर्थ है अस्थायी विवाह, जो एक पुरुष और एक महिला को सीमित समय के लिए विवाह में बांधता है. ऐसा कहा जाता है कि यह प्रथा पहले लंबी यात्रा करने वाले पुरुषों द्वारा अपनी पत्नी को कुछ समय के लिए साथ रखने के लिए बनाई गई थी. इस प्रथा को मुख्य रूप से शिया मुसलमानों के बीच स्वीकार किया जाता है, जबकि सुन्नी मुसलमान इसका पालन नहीं करते. निकाह मुताह की आलोचना इस बात के लिए होती है कि यह महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करता है. कई लोग इसे वेश्यावृत्ति से भी जोड़ते हैं, क्योंकि इसे एक निश्चित समय के लिए संबंध बनाने का एक तरीका माना जाता है. रिपोर्ट्स के अनुसार, युवा शिया मुसलमान इसे एक साथी को जानने का एक तरीका मानते हैं, लेकिन इससे महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं होता.
निकाह मुताह के नियम और शर्तें
इस्लाम धर्म के मुताबिक निकाह मुताह प्रथा में कुछ नियम और शर्तें होती है जिसका पालन करना जरूरी है.
दोनों पक्षों की उम्र 15 वर्ष से अधिक होनी चाहिए.
दोनों पक्षों की सहमति अनिवार्य है.
निकाहनामे में विवाह की अवधि और दहेज का उल्लेख होना चाहिए.
विवाह के अंत में, महिला को एकांत में रहने की आवश्यकता होती है, जिसे इद्दत कहते हैं.
यह अवधि चार महीने और दस दिन होती है, जिसमें महिला को किसी अन्य पुरुष के साथ संबंध बनाने से रोका जाता है.
मुताह निकाह के लिए क्यों जरूरी है इद्दत की रस्म
निकाह मुताह की सबसे बड़ी समस्या यह है कि विवाह की अवधि समाप्त होने के बाद महिला का जीवन सामान्य नहीं होता है. उसे इद्दत की रस्म निभानी होती है, जिसके कारण वह समाज से अलग हो जाती है. यह स्थिति महिलाओं को कमजोर बनाती है और उनके अधिकारों का उल्लंघन करती है. इस्लाम में इद्दत या इद्दाह की रस्म तब निभाई जाती है जब किसी महिला का तलाक या उसके पति की मृत्यु हो जाती है. इसके बाद मुस्लिम महिलाओं को इस रस्म का पालन करना पड़ता है. इद्दाह की रस्म निभाने के बाद मुस्लिम महिला किसी अन्य पुरुष से शादी नहीं कर सकती है.