भारत-चीन वार्ता पर जयशंकर बोले- कोई तीसरा देश तय नहीं करेगा संबंधों की दिशा
एस. जयशंकर ने वांग यी से कहा कि भारत-चीन संबंधों में किसी तीसरे देश की भूमिका नहीं है और सीमा पर स्थिरता ज़रूरी है. उन्होंने चीन से भरोसेमंद आपूर्ति श्रृंखला बनाए रखने पर ज़ोर दिया.

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने 14 जुलाई को चीनी विदेश मंत्री वांग यी से बातचीत के दौरान स्पष्ट रूप से कहा कि पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर 2020 के चीनी अतिक्रमण के बाद भारत और चीन के बीच जो द्विपक्षीय संबंध विकसित हो रहे हैं, उनमें किसी तीसरे देश विशेष रूप से पाकिस्तान की कोई भूमिका नहीं है. न ही भारत उनके हितों को ध्यान में रख रहा है.
सीमाओं की स्थिरता भारत-चीन संबंधों की नींव
दोनों नेताओं की यह बैठक इस हफ्ते हुई, जहां जयशंकर ने 2024 में हुए एक समझौते के बाद देपसांग और डेमचोक में भारतीय सेना की गश्त बहाल होने पर संतोष जताया. उन्होंने कहा कि सीमाओं की स्थिरता भारत-चीन संबंधों की नींव है और अब दोनों सेनाओं को तनाव कम करने की दिशा में ठोस प्रयास करने चाहिए. वर्तमान में दोनों देशों की सेनाएं पूर्वी लद्दाख की 1,597 किमी लंबी एलएसी के दोनों ओर भारी हथियारों और 50,000 से अधिक सैनिकों के साथ तैनात हैं.
जयशंकर ने यह भी कहा कि चीन को विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखलाओं को बरकरार रखना चाहिए और भारत पर निर्यात प्रतिबंध नहीं लगाने चाहिए. हाल में चीन ने कुछ प्रमुख खनिजों जैसे कि ऑटोमोबाइल चुम्बकों और उर्वरकों में प्रयुक्त पोटेशियम-नाइट्रोजन पर प्रतिबंध लगाया है, जो चिंता का विषय है.
बैठक में जयशंकर ने यह भी दोहराया कि भारत-चीन संबंधों को तीसरे देशों से प्रभावित नहीं होने देना चाहिए. यह बात खासतौर पर इसलिए अहम है क्योंकि चीन पाकिस्तान को उसकी 81% सैन्य जरूरतों की आपूर्ति करता है.
जयशंकर ने आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख अपनाया
13 जुलाई को एससीओ की बैठक में जयशंकर ने आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख अपनाया. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव 16050 का हवाला देते हुए बताया कि पाकिस्तान में आतंकी शिविरों पर भारत की कार्रवाई वैश्विक नियमों के अनुरूप थी. यह प्रस्ताव आतंकवाद को वैश्विक शांति के लिए गंभीर खतरा मानता है और सभी देशों से दोषियों को सज़ा दिलाने की मांग करता है.


