एक ने किया रेप, दो देखते रहे… फिर भी तीनों पर गैंगरेप का केस क्यों? जानिए कानून क्या कहता है
लॉ कॉलेज की पीड़िता ने आरोप लगाया कि साउथ कलकत्ता लॉ कॉलेज के एक पूर्व छात्र ने 2 मौजूदा छात्रों के साथ मिलकर 25 जून को उसके संग सामूहिक बलात्कार किया. कारण बस इतना था कि उसने शादी का प्रस्ताव ठुकरा दिया था. केवल एक व्यक्ति ने महिला संग शारीरिक बलात्कार किया. वहीं, अन्य लोगों ने अपराध को सुविधाजनक बनाने और सक्षम बनाने में अपनी भूमिका निभाई.

कोलकाता में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं. पिछले वर्ष आर.जी. कर अस्पताल में हुए जघन्य बलात्कार कांड की भयावहता अभी भूली नहीं गई थी कि शहर में एक और सनसनीखेज मामला सामने आया है. इस बार साउथ कलकत्ता लॉ कॉलेज की एक छात्रा के साथ उसके ही कॉलेज से जुड़े तीन युवकों ने मिलकर दुष्कर्म किया. यह घटना 25 जून की है और आरोप है कि इस घिनौने अपराध की वजह केवल इतनी थी कि पीड़िता ने एक आरोपी का विवाह प्रस्ताव ठुकरा दिया था.
क्या है पूरा मामला?
24 वर्षीय कानून की छात्रा ने पुलिस में दर्ज शिकायत में बताया कि कॉलेज के एक पूर्व छात्र और दो वर्तमान छात्रों ने मिलकर उसके साथ सुनियोजित तरीके से दुष्कर्म किया. यह वारदात कॉलेज परिसर में हुई, जब लड़की को जबरन एक सुनसान कमरे में ले जाया गया. वहां एक युवक ने उसके कपड़े उतारे और बलात्कार किया, जबकि अन्य दो युवक बाहर खड़े होकर वीडियो बनाते रहे. जब लड़की ने विरोध किया, तो उसे धमकी दी गई कि यदि उसने कुछ कहा या शिकायत की तो उसका आपत्तिजनक वीडियो वायरल कर दिया जाएगा.
पीड़िता ने कहा कि तीनों ने मिलकर उसे डराया-धमकाया, शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया और मानसिक रूप से अपमानित किया. भले ही शारीरिक बलात्कार एक युवक ने किया, मगर बाकी दोनों की भूमिका सहयोग देने और वीडियो बनाकर उसे ब्लैकमेल करने की रही.
क्या कहते हैं कानून?
इस मामले में तीनों आरोपियों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 127(2), 70(1) और 3(5) के तहत मामला दर्ज किया गया है. ये धाराएं बंधक बनाने, सामूहिक बलात्कार और साझा आपराधिक इरादे से संबंधित हैं.
1. धारा 127(2) : यदि कोई व्यक्ति किसी को गलत तरीके से रोककर उसकी स्वतंत्रता को बाधित करता है, तो यह अपराध माना जाता है. इसमें एक साल तक की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.
2. धारा 70(1) : यह सामूहिक बलात्कार को परिभाषित करती है, जिसमें एक से अधिक व्यक्ति यदि किसी महिला के साथ एक जैसी मंशा से बलात्कार करते हैं, तो सभी आरोपी एक ही अपराध के जिम्मेदार माने जाते हैं.
3. धारा 3(5) : यह स्पष्ट करती है कि जब कोई अपराध एक सामान्य इरादे के तहत एक से अधिक लोगों द्वारा किया जाता है, तो हर व्यक्ति उस अपराध के लिए उतना ही दोषी होता है जितना वह जिसने कृत्य को अंजाम दिया हो.
इस प्रावधान के अनुसार, भले ही केवल एक आरोपी ने बलात्कार किया, लेकिन यदि बाकियों ने उसमें सक्रिय सहयोग दिया, धमकी दी या वीडियो बनाकर डराया, तो वे भी सामूहिक बलात्कार के अपराध में बराबर के दोषी माने जाएंगे.
अदालती दृष्टिकोण क्या कहता है?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने समय-समय पर सामूहिक बलात्कार और संयुक्त आपराधिक दायित्व को लेकर कई अहम निर्णय दिए हैं. अशोक कुमार बनाम हरियाणा राज्य (2003) के मामले में कोर्ट ने कहा था कि यदि एक आरोपी ने भी बलात्कार किया है और बाकियों का उद्देश्य वही था, तो सभी को दोषी ठहराया जा सकता है. इस सिद्धांत में साझा मंशा या कॉमन इंटेंशन को विशेष महत्व दिया गया है.
इसी तरह भूपिंदर शर्मा बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य (2003) में भी न्यायालय ने यह दोहराया कि अभियोजन पक्ष को यह साबित करने की ज़रूरत नहीं है कि हर आरोपी ने बलात्कार किया. यदि यह साबित हो जाए कि वे सभी एक ही उद्देश्य से घटना में शामिल थे, तो उन्हें एक जैसे अपराध का भागीदार माना जाएगा.
प्रदीप कुमार बनाम यूनियन एडमिनिस्ट्रेशन, चंडीगढ़ (2006) के फैसले में भी यह स्पष्ट किया गया कि यदि किसी समूह ने आपराधिक कृत्य को साझा मंशा से अंजाम दिया हो, तो हर सदस्य उस कृत्य के लिए समान रूप से जिम्मेदार होता है, चाहे उसने प्रत्यक्ष रूप से क्या किया हो.
क्या सजा हो सकती है?
भारतीय न्याय संहिता की धारा 70 के तहत, सामूहिक बलात्कार के लिए न्यूनतम 20 वर्षों की कठोर कारावास की सजा है, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है. साथ ही, आर्थिक जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
क्यों है यह मामला महत्वपूर्ण?
यह मामला इसलिए भी चिंताजनक है क्योंकि यह न केवल महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि किस तरह कॉलेज जैसी सुरक्षित मानी जाने वाली जगहें भी अपराधियों के लिए मंच बनती जा रही हैं. यह घटना बताती है कि महिलाओं को ना कहना अब भी कुछ पुरुषों के अहं को गवारा नहीं है और वे अपराध करने से भी नहीं चूकते.
इसके अलावा, यह मामला कानूनी तौर पर साझा इरादे की धारणा को उजागर करता है, जिसमें एक व्यक्ति के कृत्य के लिए पूरा समूह दोषी ठहराया जा सकता है. अदालतों ने ऐसे मामलों में स्पष्ट कर दिया है कि केवल बलात्कार करना ही नहीं, बल्कि उसे संभव बनाना, बढ़ावा देना, वीडियो बनाना या धमकाना भी बराबर का अपराध है.


