स्वतंत्रता दिवस समारोह पर लाल किला नहीं पहुंचे राहुल और खड़गे, कांग्रेस ने दिया जवाब, कहा- मर्यादा का हनन ना...
स्वतंत्रता दिवस समारोह में पहली बार लोकसभा और राज्यसभा के नेता विपक्ष शामिल नहीं हुए. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि संवैधानिक पद की गरिमा का अपमान हुआ है क्योंकि विपक्षी नेताओं को पिछले साल अंतिम पंक्ति में बैठाया गया था. वहीं, भाजपा ने इसे राजनीति से प्रेरित बताया. यह मामला परंपरा, संवैधानिक मर्यादा और राजनीतिक संवाद की कमी को उजागर करता है.

Independence Day 2025 : देश के 79वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर ऐतिहासिक लाल किले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ध्वजारोहण किया, लेकिन इस बार कुछ ऐसा हुआ जो आज़ादी के बाद पहली बार देखा गया. समारोह में लोकसभा और राज्यसभा दोनों के नेता विपक्ष मौजूद नहीं थे. वहीं, अब इस बात को लेकर सियासी बहस छिड़ गई है.
संविधानिक गरिमा बनाम सीटों की सियासत
व्यक्ति विशेष का नहीं, बल्कि संवैधानिक मर्यादा
इसके साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह मामला किसी व्यक्ति विशेष का नहीं, बल्कि संवैधानिक मर्यादा का है. राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे दोनों ही महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों पर हैं, और ऐसे में उनके साथ ऐसा व्यवहार उचित नहीं है.
क्या सरकार कर रही है राजनीतिकरण?
कांग्रेस का आरोप है कि प्रधानमंत्री इस मुद्दे का राजनीतिकरण कर रहे हैं. अजय उपाध्याय ने कहा कि दोनों नेताओं ने स्वतंत्रता दिवस अपने स्तर पर मनाया, ध्वज फहराया और यह सुनिश्चित किया कि वे मर्यादा का उल्लंघन न करें. उनका तर्क था कि अगर सरकार की मंशा राजनीतिक लाभ उठाने की नहीं होती, तो ऐसी स्थिति पैदा ही नहीं होती.
BJP ने कांग्रेस के आरोपों को किया खारिज
वहीं, इस पूरे मामले पर भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रवक्ता आरपी सिंह ने कांग्रेस के आरोपों को खारिज करते हुए सवाल किया कि क्या विपक्षी नेताओं ने यह देखा कि इस बार उनके लिए सीट कहां लगाई गई थी? वहीं, बीजेपी के ही दूसरे प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने यह कहा कि विपक्ष के नेता का संवैधानिक पद है, और ऐसे राष्ट्रीय आयोजन में उनकी मौजूदगी उनका कर्तव्य भी है.
परंपरा टूटी या संवाद की कमी?
विशेषज्ञों का मानना है कि इस घटनाक्रम ने राजनीतिक शिष्टाचार और संवैधानिक परंपराओं पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. क्या यह सिर्फ एक सीट का विवाद है, या फिर लोकतंत्र में संवादहीनता की निशानी? यह आने वाला वक्त बताएगा. स्वतंत्रता दिवस जैसे अवसर पर विपक्ष के नेताओं की गैरमौजूदगी सिर्फ एक राजनीतिक विवाद नहीं, बल्कि संवैधानिक मूल्यों की एक बड़ी बहस बनती जा रही है जिसमें परंपराएं, प्रतिष्ठा और राजनीति तीनों की भूमिका सवालों के घेरे में है.


