Kolkata Rape Case: 'सबूतों के ढेर पर भी फांसी से बचा संजय रॉय, जज ने कहा- ‘यह रेयरेस्ट ऑफ रेयर नहीं’"
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज रेप और मर्डर केस में दोषी संजय रॉय को फांसी की जगह उम्रकैद की सजा क्यों मिली? सीबीआई ने 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' कहकर फांसी की मांग की थी, लेकिन जज ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों और आरोपी की स्थिति का हवाला देते हुए सजा को कम कर दिया. आखिर ऐसा क्या हुआ कि इतने पुख्ता सबूतों के बावजूद उसे मौत की सजा नहीं दी गई? जानें इस चर्चित मामले की पूरी कहानी.

RG Kar Case: कोलकाता के चर्चित आरजी कर मेडिकल कॉलेज रेप और मर्डर केस ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. सीबीआई ने इसे 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' मामला बताया और दोषी संजय रॉय के लिए फांसी की सजा की मांग की. लेकिन सियालदाह कोर्ट के जज अनिर्बान दास ने उसे उम्रकैद की सजा सुनाई. यह फैसला सभी के लिए चौंकाने वाला था. आखिर ऐसा क्या हुआ कि इतने पुख्ता सबूतों के बावजूद दोषी को फांसी नहीं दी गई?
जज का अहम फैसला: क्यों नहीं दी गई फांसी?
जज अनिर्बान दास ने कहा कि यह मामला 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' की श्रेणी में नहीं आता. उन्होंने कोर्ट में साफ किया कि उन्होंने अपना काम किया है, और अगर सीबीआई को सजा कम लगती है, तो वे हाई कोर्ट में अपील कर सकते हैं. उनका मानना था कि इस केस में मौत की सजा देना जरूरी नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का दिया गया हवाला
संजय रॉय के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के कई पुराने फैसलों का हवाला दिया. उन्होंने दलील दी कि हर आरोपी को सुधरने का मौका मिलना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट भी पहले यह कह चुका है कि यदि सबूतों में थोड़ा भी संदेह हो, तो आरोपी को मौत की सजा देने के बजाय उसे दूसरा मौका दिया जाना चाहिए.
मानसिक और पारिवारिक स्थिति का असर
संजय रॉय के वकील सेनजुति चक्रवर्ती ने दिल्ली नेशनल यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च का जिक्र किया. उन्होंने बताया कि किसी भी दोषी को सजा देने से पहले उसकी मानसिक और पारिवारिक स्थिति का ध्यान रखना चाहिए. इस रिसर्च में सजा-ए-मौत को गलत ठहराया गया है. कोर्ट ने इन पहलुओं पर भी विचार किया.
मजबूत सबूतों के बावजूद मिली उम्रकैद
मामले की जांच में सीबीआई ने कई ठोस सबूत पेश किए.
सीसीटीवी फुटेज और मोबाइल लोकेशन: 8 और 9 अगस्त की रात संजय रॉय को सेमिनार हॉल में जाते और 29 मिनट बाद बाहर आते देखा गया.
ब्लूटूथ कनेक्शन: घटनास्थल पर मिले ब्लूटूथ की MAC ID, संजय के फोन की हिस्ट्री से मेल खाई.
डीएनए रिपोर्ट: पीड़िता के शरीर पर संजय का सलाइवा और खून के निशान पाए गए.
फॉरेंसिक जांच: 3D मैपिंग से साफ हुआ कि घटना के वक्त वहां कोई और मौजूद नहीं था.
चिकित्सीय जांच: यह साबित हुआ कि संजय यौन रूप से नपुंसक नहीं था.
फैसले के बाद क्या होगा?
इस फैसले के बाद वकीलों ने कहा कि जज को यकीन था कि यह मामला 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' की श्रेणी में नहीं आता. हालांकि, सीबीआई हाई कोर्ट में अपील कर सकती है.
क्या फांसी होनी चाहिए थी?
यह सवाल हर किसी के मन में उठता है. जब सबूत इतने पुख्ता थे, तो संजय को मौत की सजा क्यों नहीं मिली? क्या यह फैसला न्याय के साथ समझौता है, या एक आरोपी को सुधरने का मौका देना जरूरी था? यह मामला कानून, नैतिकता और इंसाफ के बीच का जटिल सवाल खड़ा करता है. अब देखना यह होगा कि इस पर हाई कोर्ट का क्या रुख होता है.


