बढ़ता तापमान, पिघलते ग्लेशियर... पश्चिमी हिमालय में गहराया जलसंकट, बर्फबारी और बारिश घटने से बड़ा संकट
पश्चिमी हिमालय इन दिनों एक अनोखी मुसीबत से गुजर रहा है. भीषण सूखे जैसी स्थिति, सर्दियों के मौसम में जहां चारों तरफ बर्फ की चादर बिछी रहनी चाहिए, वहां अब पहाड़ नंगे और सूखे नजर आ रहे हैं. पूरे सीजन में सिर्फ एक बार, वो भी 6 अक्टूबर को, थोड़ी बहुत बारिश और हिमपात हुआ है. इसके बाद तो मानो प्रकृति ने पानी का टोंटी ही बंद कर दिया हो.

नई दिल्ली: हिमालय के पहाड़ों पर तापमान में लगातार बढ़ोतरी और बर्फबारी में कमी के कारण प्राकृतिक संकट गहराता जा रहा है. मौसम की असमान्य परिस्थितियों ने न केवल पहाड़ों को संवेदनशील बना दिया है बल्कि कृषि, बागवानी और पर्यटन क्षेत्रों पर भी बुरा असर डाला है. विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार घटती बर्फबारी और बारिश के कारण हिमालयी ग्लेशियरों का पुनर्भरण नहीं हो पा रहा है, जिससे जल स्रोतों और नदियों पर संकट उत्पन्न हो रहा है.
कई मौसम एजेंसियों ने चेतावनी दी है कि यह मौसम चक्र पिछले वर्षों से बिल्कुल अलग है और दिसंबर के अंत तक राहत की संभावना कम है. इससे पहले, पश्चिमी विक्षोभ अक्टूबर मध्य से सक्रिय होना शुरू होते थे, जो नवंबर और दिसंबर में भारी बर्फबारी कराते थे, लेकिन इस बार मौसम बेहद शुष्क रहा है.
बर्फबारी में कमी और पहाड़ों की संवेदनशीलता
पिछले कुछ सालों में हिमालय में बर्फ लंबे समय तक नहीं टिक पा रही है. लगातार बारिश और बर्फबारी में कमी के कारण स्नो कवर जमा नहीं हो पा रहा, जिससे सतह तेजी से पिघल रही है और पहाड़ और भी संवेदनशील बन रहे हैं.
मौसम एजेंसियों के मुताबिक, 20 और 21 दिसंबर के आसपास एक सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ आने की संभावना है, लेकिन इसका प्रभाव जम्मू-कश्मीर और लद्दाख तक सीमित रह सकता है. हिमाचल प्रदेश में केवल कुछ इलाकों में हल्की बारिश या बर्फबारी हो सकती है, जबकि उत्तराखंड पूरी तरह सूखा रह सकता है.
ग्लेशियर और नदियों पर प्रभाव
ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं और नई बर्फबारी न होने से उनका पुनर्भरण नहीं हो पा रहा है. इससे हिमालयी नदियों में पानी का बहाव कम हो रहा है और मैदानी इलाकों में भी जल संकट पैदा हो सकता है. यह लंबे समय तक चलने वाला शुष्क मौसम जल स्रोतों पर गंभीर असर डाल सकता है.
कृषि और पर्यटन पर असर
बर्फबारी और बारिश में कमी का सबसे बड़ा प्रभाव कृषि और बागवानी पर पड़ा है. सेब की खेती पर विशेष संकट है और आने वाले सीजन की पैदावार प्रभावित होने की संभावना है. इसके अलावा पर्यटन क्षेत्र भी असामान्य मौसम से प्रभावित हुआ है. हिल स्टेशन और स्कीइंग रिसॉर्ट्स में बर्फ की कमी के कारण पर्यटक कम हो गए हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ा है.
भविष्य की चेतावनी
मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि हिमालयी ग्लेशियरों और नदियों के लगातार पिघलने से केवल पहाड़ों में ही नहीं बल्कि मैदानी क्षेत्रों में भी गंभीर संकट आने की संभावना है. इसलिए जल संरक्षण और पर्यावरणीय उपायों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है.


