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बीजेपी को घेरने वाली कांग्रेस में क्या भरोसा टूटा, सीनियर नेताओं के बयान बता रहे हैं पार्टी की अंदरूनी बेचैनी

कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के हालिया बयान पार्टी के भीतर बेचैनी दिखा रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि क्या नेतृत्व की कमजोरी ने नेताओं को सत्ता की भाषा बोलने पर मजबूर कर दिया है।

Lalit Sharma
Edited By: Lalit Sharma

कांग्रेस के भीतर लंबे समय से यह सवाल उठता रहा है कि पार्टी की स्पष्ट राजनीतिक लाइन क्या है। हाल के दिनों में जब शशि थरूर ने खुले मंच से सत्ता पक्ष की कुछ बातों की सराहना की, तो इसे निजी राय कहकर टाल दिया गया। लेकिन इसके बाद दिग्विजय सिंह जैसे अनुभवी नेता के बयान आए। इससे यह मामला व्यक्तिगत राय से आगे निकल गया। अब यह पार्टी की सामूहिक दिशा से जुड़ा सवाल बन गया है।

क्या यह बीजेपी की तारीफ है?

इन बयानों को सीधे भारतीय जनता पार्टी की तारीफ मान लेना आसान है। लेकिन असली बात इससे ज्यादा गहरी है। यह प्रशंसा नहीं बल्कि तुलना है। जब नेता विपक्ष की उपलब्धियों का जिक्र करते हैं, तो असल में वे अपनी पार्टी की कमी को उजागर करते हैं। यह बताता है कि कांग्रेस के भीतर खुद पर भरोसा कमजोर पड़ रहा है।

क्या नेतृत्व की दिशा साफ है?

मजबूत पार्टी वही होती है, जहां नेता नेतृत्व की लाइन पर बोलते हैं। कांग्रेस में समस्या यह है कि केंद्रीय नेतृत्व की राजनीतिक भाषा साफ नहीं दिखती। ऐसे में वरिष्ठ नेता अपनी समझ से बात रखने लगते हैं। यही वजह है कि बयान बिखरे हुए नजर आते हैं। यह असहमति नहीं बल्कि दिशाहीनता का संकेत है।

क्या यह डर की राजनीति है?

जब पार्टी लगातार चुनाव हारती है, तो उसके भीतर असुरक्षा जन्म लेती है। यह असुरक्षा नेताओं की भाषा में झलकती है। सत्ता की ताकत के सामने खड़े होने के बजाय उसकी भाषा बोलना आसान लगता है। यही डर कांग्रेस के सीनियर नेताओं के बयानों में दिख रहा है। यह डर बीजेपी का नहीं बल्कि अपने भविष्य का है।

क्या कांग्रेस का नैरेटिव कमजोर पड़ गया?

राजनीति में नैरेटिव सबसे बड़ी ताकत होता है। आज कांग्रेस के पास ऐसा मजबूत नैरेटिव नहीं दिखता जो आम कार्यकर्ता को भरोसा दे सके। जब पार्टी अपनी बात मजबूती से नहीं कह पाती, तो उसके नेता भी तुलना करने लगते हैं। यह स्थिति बताती है कि कांग्रेस अपने वैचारिक हथियार कुंद कर चुकी है।

क्या यह मोहभंग है या चेतावनी?

इन बयानों को मोहभंग कहना अधूरा सच होगा। यह दरअसल चेतावनी है। वरिष्ठ नेता इशारों में बता रहे हैं कि पार्टी को अपनी दिशा तय करनी होगी। अगर नेतृत्व स्पष्ट नहीं होगा, तो बयान ऐसे ही आते रहेंगे। यह कांग्रेस के लिए आखिरी मौका है कि वह अपने भीतर भरोसा और स्पष्टता लौटाए।

कांग्रेस अगर सच में विपक्ष की भूमिका निभाना चाहती है, तो उसे पहले अपने नेताओं को भरोसा देना होगा। साफ लाइन, मजबूत मुद्दे और स्पष्ट नेतृत्व ही इस संकट से बाहर निकाल सकते हैं। वरना सत्ता की भाषा बोलते नेता पार्टी की कमजोरी का आईना बनते रहेंगे। यही इस पूरी कहानी का सबसे बड़ा सबक है।

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27 December 2025, 04:08 PM IST

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