केरल: 400 साल पुरानी दुर्गा मंदिर को नया रूप देने के लिए साथ आए हिंदू-मुस्लिम, भाईचारे का दिया मिसाल

केरल: केरल में भाईचारा का एक अद्भुत मिसाल कायम किया है. देश में अक्सर हिंदू मुस्लिम को लेकर विवाद देखने को मिलता है वहीं केरल में इन दोनों समुदाय के बीच भाईचारा देखने को मिला है.  

JBT Desk
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Thiruvananthapuram: केरल के मलप्पुरम जिले से सांप्रदायिक सद्भाव की एक दिल छू जाने वाली कहानी सामने आई है. यह कहानी इस्लाम धर्म के पवित्र महीना रमजान के दौरान की है. जहां देश में हिंदू मुस्लिम में विवाद देखने को मिलता वहीं इस रमजान इन दोनों समुदाय में भाईचारा का अद्भुत रूप देखने को मिला है.

दरअसल, यहां मुथुवेल में हिंदू और मुस्लिम 400 साल पुरानी दुर्गा मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए एक साथ आए है. मुथुवेल में 400 पुराना एक माता दुर्गा की मंदीर हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक के रूप में खड़ा है. 2015 से इस मंदिर के जीर्णोद्धार में सक्रिय रूप से मुसलमान योगदान दे रहे हैं.

हिंदू-मुस्लिम का अद्भुत भाईचारा

केरल के मुस्लिम-बहुल जिले मलप्पुरम के छोटे से गांव मुथुवाल्लूर ने 400 साल पुराने दुर्गा मंदिर के जीर्णोद्धार में हिंदू-मुस्लिम एक साथ आए हैं. कोंडोट्टी के पास मुथुवाल्लूर श्री दुर्गा भगवती मंदिर, समन्वयवाद के एक अनुकरणीय प्रतीक के रूप में खड़ा है. इसके नामकरण का पहला चरण पूरा हो गया है.  मंदिर का कार्य समाप्त होने के मई 2024 में मूर्ति-स्थापना समारोह किया जाएगा.

मुस्लिम बहुल क्षेत्र में है ये मंदिर

बता दें कि यह मंदिर मुख्य रूप से मुस्लिम बहुत इलाके में स्थित है. मंदिर के गुंबद पर तांबे की परत चढ़ाने सहित  में मुस्लिम समुदाय का उदार समर्थन देखने को मिला है. मंदिर के एक ब्रोशन में IUML प्रमुख और मंदिर के मुख्य पुजारी की तस्वीर सामने आई जिसमें अधिकारियों और स्थानीय मुस्लिम नेता नजर आ रहे हैं. यह मंदिर जो राज्य संचालित मालाबार देवास्वोम बोर्ड के अंतर्गत आता है.

400 पुराना है इतिहास

30 मार्च को एक मंदिर समारोह में आईयूएमएल नेता पीके कुन्हालीकुट्टी को संबोधित थंत्री की ओर से पढ़ा गया एक "प्रेम का संदेश" धार्मिक सौहार्द से भरे इसके इतिहास को याद करता है.  संदेश के अनुसार, कोंडोट्टी के लोगों को एक बार शुक्रवार की प्रार्थना के लिए तिरुरंगादी तक एक लंबा रास्ता तय करना पड़ता था, कई बार वे समय पर नहीं पहुंच पाने के कारण चूक जाते थे. तब उन्होंने फैसला किया कि एक मस्जिद बनाना बेहतर होगा और मंदिर के मालिक थलूर मुसाद के परिवार से संपर्क किया. मंदिर के मालिकों ने वर्तमान पझायंगडी मस्जिद के लिए अपनी मर्जी से जमीन सौंप दी जो 18वीं शताब्दी में बनाई गई थी.

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10 April 2024, 01:40 PM IST

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