लड़ाकू विमान हादसे ने उठाए सवाल, लेकिन पायलटों का समर्पण बना प्रेरणा का प्रतीक
एक फाइटर पायलट को 40,000 किलोग्राम वजनी ताकतवर विमान की पूरी क्षमता का उपयोग करते हुए उसे नियंत्रण में रखना होता है, जो तीव्र रफ्तार और रॉ थ्रस्ट से संचालित होता है. ऐसे माहौल में, जहां हवाई युद्ध का दबाव चरम पर होता है, वहां तन-मन की पूरी ताकत झोंकनी पड़ती है और गलती की कोई गुंजाइश नहीं होती.

हाल ही में भारतीय वायु सेना के एक युवा फाइटर पायलट की दुखद मृत्यु ने न केवल देश को शोक में डुबो दिया, बल्कि एक बार फिर वायुसेना की सुरक्षा व्यवस्था, ट्रेनिंग और ऑपरेशनल तैयारियों पर बहस को हवा दे दी है. कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी घटना की तह तक जाने में जुटी है, लेकिन इस हादसे ने उस कठिन और जोखिम भरे जीवन की झलक दिखा दी है, जिसे फाइटर पायलट जीते हैं.
पायलट को कुछ सेकंड में निर्णय लेने होते हैं
लड़ाकू विमान उड़ाना केवल तकनीकी कौशल नहीं, बल्कि मानसिक और शारीरिक दृढ़ता का भी मामला है. पायलट को लगभग 40,000 किलो वजनी विमान को नियंत्रित करते हुए, महज कुछ सेकंड में निर्णय लेने होते हैं. वो भी सैकड़ों किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से और कभी-कभी ज़मीन से बेहद कम ऊंचाई पर.
एक फाइटर पायलट बनने की राह लंबी और चुनौतियों से भरी होती है. पहले चयन प्रक्रिया में अनुशासन, मानसिक संतुलन और निर्णय क्षमता को परखा जाता है. फिर 6-7 वर्षों की कठोर ट्रेनिंग के बाद ही कोई पायलट ऑपरेशनल भूमिका में आता है. ये जीवन कड़े नियमों से चलता है. स्वास्थ्य, खानपान, शराब से दूरी और फिटनेस के उच्चतम मानक.
विमान, मानकों के अनुरूप मेंटेन
विपरीत आम धारणा के, वायुसेना अपने पायलटों को जर्जर विमानों में नहीं भेजती. हर विमान चाहे पुराना हो या नया उच्चतम मानकों के अनुरूप मेंटेन होता है. टेक-ऑफ से पहले इंजीनियर, एयर ट्रैफिक कंट्रोल, रनवे मेंटेनेंस से लेकर बर्ड कंट्रोल तक की पूरी टीम हर उड़ान को सुरक्षित बनाने में लगी होती है.
तकनीकी विफलता या अप्रत्याशित परिस्थितियां
इसके बावजूद, तकनीकी विफलता या अप्रत्याशित परिस्थितियां कभी भी आ सकती हैं. पायलट इनसे निपटने की ट्रेनिंग सिम्युलेटर पर बार-बार लेते हैं, लेकिन कई बार उन्हें आखिरी उपाय इजेक्ट करने का जोखिम उठाना पड़ता है. दुर्घटना के बाद हर केस की बारीकी से जांच की जाती है. इसके नतीजों से नए सुरक्षा मानक बनते हैं जो भविष्य की रणनीति और प्रशिक्षण को दिशा देते हैं. कई लोग विमानों के नुकसान पर दुख जताते हैं, लेकिन असल क्षति वह बहादुर जीवन होता है जो देश के लिए समर्पित होता है. लड़ाकू पायलट इसलिए नहीं उड़ते कि यह सुरक्षित है, बल्कि इसलिए कि देश को उनकी ज़रूरत है.