हम अपने पड़ोसियों को कभी नुकसान नहीं पहुंचाते, लेकिन...पहलगाम हमले के बाद मोहन भागवत की बड़ी टिप्पणी

भागवत ने यह भी कहा कि धर्म सिर्फ कर्मकांड तक सीमित नहीं है. धर्म का वास्तविक अर्थ सत्य, करुणा और सुचिता है. भारत को अब अपने धर्म को ठीक से समझना होगा और अपनी शुद्ध परंपरा को अपनाना होगा. यह वह समय है जब हमें एक साथ आकर अपने समाज में व्याप्त बुराइयों को खत्म करना होगा.

Yaspal Singh
Edited By: Yaspal Singh

स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने शनिवार को एक कार्यक्रम में  सख्त बयान देते हुए कहा कि अहिंसा हमारा स्वभाव है, लेकिन अगर आतंकवादी हम पर हमला करते हैं, तो उन्हें सबक सिखाना हमारा धर्म है. यह सिर्फ युद्ध का मामला नहीं है, बल्कि हमारी संस्कृति की रक्षा का सवाल है. हम अपने पड़ोसियों को कभी परेशान नहीं करते, लेकिन उपद्रव करने वालों को दंडित करना हमारी जिम्मेदारी है." उनका यह बयान पहलगाम आतंकी हमले के कुछ दिन बाद आया है. बता दें कि भीभत्स हमले के बाद देशभर में गुस्से का माहौल है. 

धर्म को ठीक से समझना होगा

भागवत ने यह भी कहा कि धर्म सिर्फ कर्मकांड तक सीमित नहीं है. धर्म का वास्तविक अर्थ सत्य, करुणा और सुचिता है. "भारत को अब अपने धर्म को ठीक से समझना होगा और अपनी शुद्ध परंपरा को अपनाना होगा. यह वह समय है जब हमें एक साथ आकर अपने समाज में व्याप्त बुराइयों को खत्म करना होगा."

भागवत का यह बयान इस बात का संकेत है कि आरएसएस और हिंदू समाज अब अपने मूल सिद्धांतों और परंपराओं को वैश्विक स्तर पर प्रचारित करने के लिए तैयार है. उनका मानना ​​है कि हिंदू घोषणापत्र इस दिशा में एक मजबूत कदम है, जो न केवल भारत के भीतर बल्कि पूरे विश्व में शांति और समृद्धि का नया मार्ग खोलेगा.

क्या यह विचार समाज को बदलेगा?

भागवत के इस बयान ने निश्चित रूप से पूरे देश को झकझोर दिया है. उनका यह कहना कि भारत को अपनी प्राचीन परंपराओं और विमर्श के माध्यम से दुनिया को एक नई राह दिखानी होगी, यह संदेश न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से भी है. क्या यह विचार समाज को बदलेगा? क्या भारत वाकई अपनी प्राचीन परंपराओं की ओर लौटेगा? यह तो आने वाला समय ही बताएगा.

जातिवाद और छुआछूत पर भी की टिप्पणी

भागवत ने जातिवाद और छुआछूत पर भी जोरदार हमला बोला. उन्होंने कहा, "हिंदू धर्म के शास्त्रों में न तो जातिवाद की जगह है और न ही छुआछूत की. ये हमारे समाज के दोष हैं, जो पिछले 1500 सालों में किसी नए शास्त्र के न बनने की वजह से फैल गए हैं." उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि उडुपी के संत समाज ने भी साबित कर दिया है कि वेदों में ऐसी कोई बात नहीं है.

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26 April 2025, 09:27 PM IST

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