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बिहार मतदाता सूची संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को क्या कहा, इन 3 बातों का है जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में संभावित चुनावों से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पर समय को लेकर चुनाव आयोग से गंभीर सवाल किए. कोर्ट ने मताधिकार, पारदर्शिता और नागरिक अधिकारों पर चिंता जताई. याचिकाओं में कई विपक्षी नेता शामिल हैं. आयोग को प्रक्रिया के तर्क और निष्पक्षता पर अगली सुनवाई में जवाब देना होगा.

Yaspal Singh
Edited By: Yaspal Singh

बिहार में इस वर्ष संभावित विधानसभा चुनावों से पहले चुनाव आयोग द्वारा शुरू किए गए विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. इस प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाएं कई विपक्षी नेताओं द्वारा दायर की गई हैं, जिनमें तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा, राजद के मनोज कुमार झा, कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) की सुप्रिया सुले शामिल हैं.

पीठ ने उठाए समय को लेकर सवाल

न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और जॉयमाल्या बागची की दो सदस्यीय पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है. उन्होंने चुनाव आयोग की मंशा और उसके अधिकारों पर कोई सीधा सवाल नहीं उठाया, लेकिन इस प्रक्रिया के समय निर्धारण को लेकर गंभीर सवाल किए. पीठ ने कहा कि चुनाव के इतने निकट इस तरह की प्रक्रिया से मतदाताओं को उनके अधिकार से वंचित किया जा सकता है.

वोटिंग अधिकार लोकतंत्र की जड़ – सुप्रीम कोर्ट

सुनवाई के दौरान न्यायालय ने स्पष्ट किया कि याचिकाएं केवल चुनाव आयोग की शक्तियों को ही नहीं, बल्कि प्रक्रिया की पारदर्शिता और समय-सीमा को भी चुनौती देती हैं. कोर्ट ने कहा, "यह मामला लोकतंत्र की नींव – वोट देने के अधिकार – से जुड़ा है. आपको तीन मुद्दों पर जवाब देना होगा: प्रक्रिया, समय और न्यायसंगतता."

चुनाव आयोग की दलील 

चुनाव आयोग ने कहा कि कंप्यूटरीकरण के बाद यह पहली बार है जब इस तरह का संशोधन किया जा रहा है और इसकी तिथि व्यावहारिक रूप से तय की गई है. अदालत ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा, “इसमें एक तर्क है जिसे नकारा नहीं जा सकता. आप इससे असहमति रख सकते हैं, लेकिन यह कहना गलत होगा कि इसका कोई आधार नहीं है.”

मताधिकार से वंचना की आशंका

पीठ ने आशंका जताई कि यदि 2025 की मतदाता सूची में शामिल किसी व्यक्ति को इस प्रक्रिया के तहत हटाया गया, तो उसे अपील करने और दोबारा पंजीकरण कराने तक का अवसर नहीं मिल पाएगा और वह आगामी चुनाव में मतदान से वंचित रह सकता है. अदालत ने दोहराया कि गैर-नागरिकों को हटाने का उद्देश्य उचित है, लेकिन इसके लिए समय और प्रक्रिया का संतुलन आवश्यक है.

अनुच्छेद 14 यहां कैसे?

पीठ ने याचिकाकर्ताओं से यह भी कहा कि प्रक्रिया को जरूरत से ज़्यादा जटिल न बनाएं. न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा, “यह एक व्यावहारिक पहल है. वे (ईसीआई) सत्यापन पहले ही करना चाहते हैं. आप मुख्य मुद्दे पर टिकिए. अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) को हर बात में न लाएं.”

अगली सुनवाई में ईसीआई को देना होगा ठोस जवाब

अब अदालत की नजर चुनाव आयोग के उन जवाबों पर है जो यह स्पष्ट करेंगे कि प्रक्रिया पारदर्शी है, समयबद्ध है और किसी भी भारतीय नागरिक को मताधिकार से वंचित नहीं करती. सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल कोई अंतिम निर्णय नहीं दिया है, लेकिन अगली सुनवाई में आयोग से विस्तार से स्पष्टीकरण मांगा जाएगा.

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10 July 2025, 03:21 PM IST

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