अगर भारत गए तो... कनाडा में 30 खालिस्तानी समर्थक शरण के लिए पहुंचे कोर्ट, अपील खारिज
कनाडा की संघीय अदालतों ने इस साल खालिस्तान समर्थक गतिविधियों से जुड़े 30 से ज्यादा भारतीय नागरिकों की शरण व निष्कासन संबंधी अपीलें खारिज कर दी हैं, जबकि केवल 4 मामलों में राहत मिली है.

कनाडा की संघीय अदालतों ने इस साल खालिस्तान समर्थक गतिविधियों से जुड़े कम से कम 30 लोगों की अपीलें खारिज कर दी हैं. ये मामले उन शरणार्थी आवेदनों और निष्कासन आदेशों से जुड़े थे जिनमें दलील दी गई थी कि भारत लौटने पर उन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़ सकता है. अदालत के रिकॉर्ड के अनुसार, इनमें से अधिकांश आवेदक या तो Sikhs for Justice (SFJ) संगठन से जुड़े थे या 'खालिस्तान रेफरेंडम' में वोटर आईडी रखने का हवाला दे रहे थे.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 2025 में अब तक सामने आए मामलों में सिर्फ 4 अपीलों को संघीय अदालत से राहत मिली है. बाकी सभी को अदालत ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि केवल खालिस्तान समर्थक गतिविधियों में जुड़ाव का दावा करना पर्याप्त नहीं है.
ताजा मामला: परदीप सिंह बनाम पब्लिक सेफ्टी मंत्री
6 सितंबर को टोरंटो की संघीय अदालत ने Pardeep Singh vs Minister of Public Safety and Emergency Preparedness मामले में अपील को खारिज कर दिया. परदीप सिंह भारत के नागरिक हैं, जो फरवरी 2023 में वर्क परमिट पर कनाडा पहुंचे थे. नवंबर 2024 में उनका वर्क परमिट समाप्त हो गया, जिसके बाद उन्होंने शरणार्थी दावा दायर किया. अदालत ने उनके सोशल मीडिया पोस्ट और परिजनों के हलफनामे को भी पर्याप्त साक्ष्य नहीं माना.
कनवलजीत कौर की अपील भी खारिज
27 अगस्त को ब्रिटिश कोलंबिया की संघीय अदालत ने कनवलजीत कौर की अपील पर सुनवाई की. जज Guy Regimbald ने उनके दावे को अटकलें बताते हुए कहा कि केवल 'खालिस्तान रेफरेंडम' का वोटिंग कार्ड होना ये साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि वे भारतीय एजेंसियों की नजर में हाई-प्रोफाइल हैं. कनवलजीत कौर फरवरी 2018 में कनाडा आई थीं और सितंबर 2019 में शरण का दावा किया था. शुरुआत में उन्होंने अपने 'उत्पीड़क पति' से बचने की दलील दी थी, जिसे बाद में बदलकर खालिस्तान समर्थक गतिविधियों से उत्पीड़न का डर बताया.
अमनदीप सिंह और पत्नी का दावा भी अस्वीकार
25 अगस्त को मॉन्ट्रियल की संघीय अदालत ने 38 वर्षीय अमनदीप सिंह और 32 वर्षीय कंवलदीप कौर की अपील भी खारिज कर दी. दोनों ने दावा किया था कि कनाडा में आने के बाद वे खालिस्तान समर्थक बने और अगर भारत लौटे तो राजनीतिक गतिविधियों के कारण उत्पीड़न झेलना पड़ेगा. अदालत ने पाया कि उन्होंने पहले अपने आवेदन में यह कारण नहीं बताया था, बल्कि बाद में संशोधन कर 'खालिस्तान रेफरेंडम' में भागीदारी और विरोध प्रदर्शन की तस्वीरें पेश कीं. जज Benoit M Duchesne ने Refugee Appeal Division और Refugee Protection Division के पिछले फैसलों को 'reasonable' ठहराया.


