17 साल बाद खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान की बांग्लादेश में वापसी, चुनाव से पहले ढाका में बढ़ी हलचल
बांग्लादेश में बढ़ती हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता के बीच बीएनपी नेता तारिक रहमान की वापसी को अहम माना जा रहा है. चुनाव से पहले उनकी वापसी से बीएनपी मजबूत हुई है और लोकतंत्र की बहाली की बहस तेज हुई है.

नई दिल्लीः बांग्लादेश इस समय गंभीर राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है. देश में बढ़ती हिंसा, कट्टरपंथी इस्लामी समूहों की सक्रियता और अस्थिर माहौल के बीच फरवरी 2026 में प्रस्तावित आम चुनावों से पहले एक अहम राजनीतिक घटनाक्रम सामने आया है. पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के पुत्र और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान की देश वापसी को मौजूदा राजनीति का सबसे बड़ा घटनाक्रम माना जा रहा है.
स्वागत की तैयारियों के बीच वापसी
तारिक रहमान गुरुवार को बांग्लादेश लौट रहे हैं. बीएनपी को उनकी वापसी के अवसर पर एक बड़े स्वागत समारोह की अनुमति भी मिल चुकी है. लंबे समय से विदेश में रह रहे तारिक की वापसी ऐसे वक्त हो रही है, जब बीएनपी को आगामी चुनावों में सबसे मजबूत दावेदार माना जा रहा है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर परिस्थितियों में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ, तो बीएनपी की जीत की संभावना काफी प्रबल है.
अंतरिम सरकार पर सवाल
मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार पर बीएनपी लगातार सवाल उठाती रही है. खासतौर पर विदेश नीति को लेकर तारिक रहमान ने खुलकर असहमति जताई है. मई में दिए गए एक बयान में उन्होंने कहा था कि बिना निर्वाचित जनादेश वाली सरकार को दीर्घकालिक और रणनीतिक विदेश नीति के फैसले लेने का अधिकार नहीं होना चाहिए. बीएनपी का मानना है कि अंतरिम सरकार कई मामलों में लापरवाह रही है.
‘बांग्लादेश फर्स्ट’ की नीति
तारिक रहमान ने अपनी विदेश नीति की सोच को स्पष्ट शब्दों में सामने रखा है. उन्होंने कहा कि बांग्लादेश किसी भी बाहरी शक्ति के प्रभाव में नहीं रहेगा. ढाका में एक रैली के दौरान उनका नारा दिल्ली नहीं, पिंडी नहीं, बांग्लादेश पहले काफी चर्चा में रहा. यह नीति शेख हसीना के भारत-केंद्रित संतुलन और यूनुस सरकार के पाकिस्तान की ओर झुकाव, दोनों से अलग मानी जा रही है.
बीएनपी बनाम कट्टरपंथी ताकतें
हालांकि बीएनपी पहले जमात-ए-इस्लामी के साथ गठबंधन में रह चुकी है, लेकिन मौजूदा हालात कहीं ज्यादा जटिल हैं. जमात-ए-इस्लामी को मुख्यधारा में लौटने की अनुमति दी गई है और वह धीरे-धीरे अपनी जमीनी ताकत बढ़ाने में जुटी है. जमात ने किसी भी पारंपरिक गठबंधन से दूरी बनाते हुए चुनावी प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं, जिससे राजनीतिक अस्थिरता और बढ़ने की आशंका है.
चुनावी देरी से बढ़ी चुनौतियां
चुनाव में हो रही देरी बीएनपी के लिए नुकसानदेह मानी जा रही है, क्योंकि उसका चुनावी अभियान पहले ही रफ्तार पकड़ चुका है. वहीं, इस देरी से जमात-ए-इस्लामी और अन्य नए राजनीतिक समूहों को संगठित होने का समय मिल रहा है. ऐसे में मुकाबला और कठिन हो सकता है.
लोकतंत्र की वापसी का दावा
तारिक रहमान खुद को लोकतंत्र और निर्वाचित सरकार की बहाली का समर्थक बताते हैं. हाल ही में एक सभा में उन्होंने कहा कि केवल लोकतंत्र ही देश को मौजूदा संकट से बाहर निकाल सकता है. उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने की अपील की.
लंबा निर्वासन, अब नई जिम्मेदारी
तारिक रहमान 2008 में जेल से रिहा होने के बाद यूनाइटेड किंगडम चले गए थे और तब से वहीं रह रहे थे. लगभग डेढ़ दशक बाद उनकी वापसी बांग्लादेश की राजनीति को नई दिशा दे सकती है. अगर बीएनपी सत्ता में आती है और तारिक रहमान प्रधानमंत्री बनते हैं, तो उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती देश को एकजुट करना और लोकतांत्रिक स्थिरता बहाल करना होगा.


