मजबूत ऊर्जा सुरक्षा साझेदारी की दिशा में एक कदम, अमेरिका ने भारत के शांति विधेयक का किया स्वागत
अमेरिका ने भारत के शांति विधेयक 2025 का स्वागत करते हुए इसे भारत-अमेरिका ऊर्जा सुरक्षा और नागरिक परमाणु सहयोग को मजबूत करने वाला कदम बताया. यह विधेयक निजी भागीदारी, मजबूत नियमन और 2047 तक स्वच्छ परमाणु ऊर्जा लक्ष्य को गति देगा.

नई दिल्लीः संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत द्वारा पारित ‘शांति विधेयक 2025’ का खुले तौर पर स्वागत किया है. अमेरिका ने इसे भारत-अमेरिका के बीच मजबूत ऊर्जा सुरक्षा साझेदारी और शांतिपूर्ण नागरिक परमाणु सहयोग को आगे बढ़ाने वाला कदम बताया है. भारत में अमेरिकी दूतावास ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अमेरिका ऊर्जा क्षेत्र में भारत के साथ संयुक्त नवाचार, अनुसंधान और विकास के लिए उत्सुक है.
भारत-अमेरिका ऊर्जा सहयोग को नई गति
अमेरिकी दूतावास के बयान में कहा गया है कि ‘शांति विधेयक’ दोनों देशों के बीच ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करेगा और नागरिक परमाणु क्षेत्र में सहयोग को नई दिशा देगा. अमेरिका लंबे समय से भारत के साथ स्वच्छ और टिकाऊ ऊर्जा साझेदारी को बढ़ावा देने का पक्षधर रहा है, और यह विधेयक उसी दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है.
क्या है शांति विधेयक 2025?
‘शांति विधेयक 2025’ का पूरा नाम है, भारत के परिवर्तन के लिए परमाणु ऊर्जा के सतत दोहन और विकास विधेयक. यह विधेयक हाल ही में संसद से पारित हुआ है. इसका उद्देश्य भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र के कानूनी और नीतिगत ढांचे को आधुनिक बनाना और भविष्य की जरूरतों के अनुरूप तैयार करना है.
निजी कंपनियों के लिए खुलेगा परमाणु क्षेत्र
अब तक भारत में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का संचालन मुख्य रूप से सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों तक सीमित था, हालांकि कुछ मामलों में संयुक्त उपक्रमों की अनुमति थी. लेकिन शांति विधेयक के लागू होने के बाद निजी कंपनियों के लिए भी इस क्षेत्र में प्रवेश का रास्ता साफ हो जाएगा. विधेयक के तहत लाइसेंस प्राप्त करने के बाद कोई भी पात्र कंपनी या संयुक्त उद्यम परमाणु रिएक्टर या ऊर्जा संयंत्र का निर्माण, स्वामित्व, संचालन और यहां तक कि बंद करने का अधिकार भी हासिल कर सकेगा.
पुराने कानूनों में बड़ा बदलाव
यह विधेयक 1962 के परमाणु ऊर्जा अधिनियम और 2010 के परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम (CLND Act) को निरस्त करने का प्रस्ताव करता है. सरकार का मानना है कि ये पुराने कानून मौजूदा तकनीकी और निवेश जरूरतों के अनुरूप नहीं थे, जिससे निजी निवेश और वैश्विक सहयोग में बाधाएं आ रही थीं.
नियामक व्यवस्था को मिलेगी मजबूती
शांति विधेयक परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (AERB) को वैधानिक दर्जा देता है, जिससे नियामक व्यवस्था और अधिक पारदर्शी व मजबूत होगी. सरकार का दावा है कि इससे सुरक्षा मानकों से कोई समझौता नहीं होगा और सभी गतिविधियां कड़े नियामक नियंत्रण में होंगी.
2047 के लक्ष्य की ओर कदम
भारत सरकार ने 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु ऊर्जा क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा है. शांति विधेयक को इसी दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. परमाणु ऊर्जा को स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण में अहम भूमिका निभाने वाला स्रोत माना जा रहा है, जिससे कार्बन उत्सर्जन कम करने में मदद मिलेगी.
कौन कर सकता है आवेदन?
विधेयक के अनुसार केंद्र सरकार के विभाग, सरकारी कंपनियां, सरकार द्वारा स्थापित या नियंत्रित संस्थाएं, निजी कंपनियां, संयुक्त उपक्रम या केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित अन्य पात्र व्यक्ति लाइसेंस के लिए आवेदन कर सकते हैं.
वैश्विक मंच पर भारत की नई पहचान
अमेरिका की सकारात्मक प्रतिक्रिया से साफ है कि शांति विधेयक न केवल भारत की आंतरिक ऊर्जा नीति में बदलाव लाएगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत को एक भरोसेमंद और आधुनिक परमाणु ऊर्जा साझेदार के रूप में स्थापित करने में भी मदद करेगा.


