परवेज़ मुशर्रफ ने अमेरिका को सौंपी थी पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की चाबी! सीआईए अधिकारी का बड़ा दावा
अमेरिका की खुफिया एजेंसी सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी के पूर्व अधिकारी जॉन किरियाकू ने दावा किया है कि परवेज़ मुशर्रफ ने पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की चाबियां अमेरिका को सौंप दी थीं.

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और सेना प्रमुख जनरल परवेज़ मुशर्रफ को लेकर एक चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है. अमेरिका की खुफिया एजेंसी सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी के पूर्व अधिकारी जॉन किरियाकू ने दावा किया है कि मुशर्रफ ने पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की चाबियां अमेरिका को सौंप दी थीं. जॉन के अनुसार, अमेरिका ने करोड़ों डॉलर खर्च करके पाकिस्तान और मुशर्रफ पर ऐसा नियंत्रण स्थापित कर लिया था, मानो उसने उन्हें खरीद लिया हो.
किरियाकू ने सीआईए में कितने साल सेवा दी?
किरियाकू ने 15 साल तक सीआईए में सेवा दी. उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया कि साल 2002 में भारत और पाकिस्तान युद्ध के बेहद करीब पहुंच गए थे, क्योंकि दिसंबर 2001 में भारतीय संसद पर आतंकी हमला हुआ था. उस समय, पाकिस्तान में मुशर्रफ की सैन्य सरकार थी और देश अंदरूनी भ्रष्टाचार और राजनीतिक अस्थिरता में डूबा हुआ था. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान पूरी तरह भ्रष्टाचार की गिरफ्त में था, जबकि पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो खाड़ी देशों में आलीशान जिंदगी बिता रही थीं और पाकिस्तान की जनता गरीबी और भूख से जूझ रही थी.
जॉन किरियाकू ने साफ शब्दों में कहा कि अमेरिका को हमेशा तानाशाहों के साथ काम करना आसान लगता है. क्योंकि ऐसी परिस्थितियों में उसे जनता या मीडिया की राय की परवाह नहीं करनी पड़ती. उन्होंने कहा कि हमने मुशर्रफ को एक तरह से खरीद लिया था. अमेरिका जो चाहता था, वो कर लेता था. मुशर्रफ कुछ भी नहीं कर पाते थे. हमने पाकिस्तान को मदद के नाम पर कई मिलियन डॉलर दिए.
भारत को नुकसान पहुंचाने पर फोकस
किरियाकू के मुताबिक, मुशर्रफ का सारा ध्यान सेना को खुश रखने पर केंद्रित था. वह सार्वजनिक रूप से अमेरिका के साथ सहयोग दिखाते थे, लेकिन गुप्त रूप से भारत विरोधी आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देते रहे. उन्होंने कहा कि मुशर्रफ के शासनकाल में पाकिस्तान की सेना को अल-कायदा या वैश्विक आतंकवाद की कोई परवाह नहीं थी. उनका असली फोकस हमेशा भारत को नुकसान पहुंचाने पर था.
यह खुलासा उस दौर की जटिल भू-राजनीति को उजागर करता है, जब अमेरिका, पाकिस्तान और भारत के बीच रिश्ते बेहद नाजुक मोड़ पर थे. जॉन किरियाकू के अनुसार, उस समय पाकिस्तान की सरकार अमेरिकी हितों की कठपुतली बन चुकी थी और मुशर्रफ अपने देश की संप्रभुता की कीमत पर अमेरिकी समर्थन बनाए रखना चाहते थे. इस बयान ने न केवल पाकिस्तान की पूर्व सैन्य नीतियों पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि यह भी दर्शाया है कि कैसे अमेरिका ने दक्षिण एशिया की राजनीति में अपनी पकड़ बनाए रखी थी.


