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कट्टरपंथी दबाव के आगे झुका हार्वर्ड? खालिस्तानी आतंकवाद पर लिखा आर्टिकल हटाने से हंगामा

हार्वर्ड विश्वविद्यालय, जिसे अकादमिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आज़ादी का गढ़ माना जाता है, अब तीखी आलोचना का सामना कर रहा है. इसका कारण है भारतीय छात्रा ज़िना ढिल्लन द्वारा लिखे गए एक लेख को सेंसर करना, जिसमें खालिस्तानी आतंकवाद और भारत-कनाडा संबंधों पर इसके प्रभाव को उजागर किया गया था.

Deeksha Parmar
Edited By: Deeksha Parmar

हार्वर्ड विश्वविद्यालय जिसे शैक्षणिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रतीक माना जाता है वो अब कड़ी आलोचना का सामना कर रहा है. इसका कारण है खालिस्तानी आतंकवाद और भारत-कनाडा संबंधों पर प्रभाव को लेकर लिखे गए एक लेख को हटाना. यह लेख भारतीय छात्रा ज़िना ढिल्लन ने लिखा था और इसे हार्वर्ड इंटरनेशनल रिव्यू (HIR) में प्रकाशित किया गया था. लेकिन खालिस्तानी समर्थकों के दबाव के चलते इसे वापस ले लिया गया. इस फैसले को एक खतरनाक मिसाल के रूप में देखा जा रहा है.

अब, हार्वर्ड को सेंसरशिप और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सवालों का सामना करना पड़ रहा है. कट्टरपंथी संगठनों के दबाव में इस तरह के कदम से अकादमिक स्वतंत्रता के लिए खतरा पैदा हो गया है.

खालिस्तानी आतंकवाद पर लेख हटाने से हंगामा

15 फरवरी 2025 को हार्वर्ड इंटरनेशनल रिव्यू ने ज़िना ढिल्लन का लेख "ए थॉर्न इन द मेपल: हाउ द खालिस्तान क्वेश्चन इज़ रीशेपिंग इंडिया-कनाडा रिलेशन्स" प्रकाशित किया था. इस लेख में खालिस्तानी आतंकवाद के इतिहास, कनाडा में इसके बढ़ते प्रभाव और भारत-कनाडा संबंधों पर इसके नकारात्मक प्रभाव को विस्तार से बताया गया था. लेकिन 22 फरवरी को यह लेख वेबसाइट से हटा दिया गया. लेख को हटाने के लिए हार्वर्ड के सिख पादरी हरप्रीत सिंह और कई सिख संगठनों ने दबाव बनाया. इसके बाद, HIR के प्रधान संपादकों सिडनी सी. ब्लैक और एलिजाबेथ आर. प्लेस ने इसे "तटस्थता के मानकों पर खरा न उतरने" का कारण बताते हुए अप्रकाशित कर दिया.

लेख हटाने के पीछे क्या कारण?

हार्वर्ड क्रिमसन के अनुसार, संपादकों ने लेख में दो बदलावों की मांग की थी. पहला ये कि भारत सरकार द्वारा सिख आतंकवाद से जुड़ी मौतों पर दिए गए आंकड़े को हटाया जाए क्योंकि इसकी स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं की जा सकती. वहीं दूसरा कनाडा में भारतीय राजनयिकों के उत्पीड़न को लेकर एक वाक्य जोड़ने को कहा गया. लेकिन जिना ढिल्लन ने इन बदलावों से इनकार कर दिया, जिसके बाद लेख को वेबसाइट से हटा दिया गया.

जिना ढिल्लन ने क्या कहा?

हार्वर्ड क्रिमसन के मुताबिक, ज़िना ढिल्लन ने कहा, "मुझे लगता है कि HIR दबाव में आ गई और लेख को हटाने का निर्णय, मेरी राय में, एक जल्दबाजी में लिया गया निर्णय था."ढिल्लन का बायो भी HIR की वेबसाइट से हटा दिया गया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि विवाद गहराता जा रहा है. 

अमेरिका में बढ़ रहा विरोध, याचिका दायर

आपको बता दें कि अमेरिकी-हिंदू कार्यकर्ता वसंत भट्ट ने इस सेंसरशिप के खिलाफ Change.org पर याचिका शुरू की है.
"हार्वर्ड का यह फैसला एक खतरनाक मिसाल है. इससे यह साबित होता है कि विश्वविद्यालयों में क्या कहा जा सकता है और क्या नहीं, यह अब धमकियों के जरिए तय किया जाता है."उन्होंने मांग की है कि, हार्वर्ड को लेख फिर से प्रकाशित करना चाहिए. अकादमिक स्वतंत्रता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहरानी चाहिए और सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए.

हार्वर्ड की हो रही आलोचना

हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन (HAF) ने भी हार्वर्ड के इस फैसले की कड़ी आलोचना की है. "हम स्तब्ध हैं कि हार्वर्ड ने खालिस्तान आंदोलन के दबाव में आकर एक छात्र की आवाज को दबा दिया. यह एक अकादमिक संस्थान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है."
उत्तरी अमेरिका के हिंदुओं के गठबंधन (CoHNA) ने इस कदम को "शर्मनाक" करार दिया.

लेख में क्या लिखा था?

ज़िना ढिल्लन के लेख में कई तथ्यात्मक विवरण थे. इसमें बताया गया था कि कैसे खालिस्तानी आंदोलन पंजाब में कमजोर पड़ा, लेकिन कनाडा में मजबूत हो रहा है. भारतीय उच्चायुक्त संजय वर्मा और ब्रैम्पटन के हिंदू सभा मंदिर पर हुए हालिया हमलों का भी जिक्र किया. 1980-2000 के बीच खालिस्तानी आतंकवादियों द्वारा किए गए हमलों में 11,694 नागरिक और 1,784 सुरक्षाकर्मी मारे गए. (गृह मंत्रालय के आंकड़े) हार्वर्ड के सिख पादरी हरप्रीत सिंह ने इन आंकड़ों को "अपुष्ट डेटा" बताते हुए आलोचना की. वहीं, HIR के संपादकों ने उनके रुख का समर्थन किया.

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02 March 2025, 01:52 PM IST

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