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पैरेंट्स को ब्याज सहित चुकानी होगी पूरी फीस...दिल्ली में स्कूल फीस विवाद पर अदालत का सख्त रुख

दिल्ली की साकेत जिला अदालत ने निजी स्कूल फीस विवाद में अहम फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि रद्द हो चुके शिक्षा निदेशालय के आदेश के आधार पर फीस रोकना गलत है.

Utsav Singh
Edited By: Utsav Singh

नई दिल्ली : दिल्ली में निजी स्कूलों की फीस को लेकर चल रहे विवादों के बीच एक अहम अदालती फैसला सामने आया है. साकेत जिला अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि रद्द हो चुके सरकारी आदेश का हवाला देकर स्कूल फीस का भुगतान रोका नहीं जा सकता. अदालत ने यह फैसला ब्लूबेल्स स्कूल इंटरनेशनल से जुड़े एक मामले में सुनाया, जिसमें एक अभिभावक ने लंबे समय तक फीस जमा नहीं की थी. अदालत ने निजी स्कूल के पक्ष में निर्णय देते हुए अभिभावक को बकाया फीस के साथ ब्याज और मुकदमे का खर्च चुकाने का आदेश दिया है.

शिक्षा निदेशालय के आदेश का गलत हवाला

मामले की सुनवाई साकेत जिला स्थित सिविल जज अजीत नारायण की अदालत में हुई. अदालत ने कहा कि जिस शिक्षा निदेशालय के आदेश के आधार पर अभिभावक फीस भुगतान से बचने की कोशिश कर रहे थे, वह आदेश पहले ही रद्द किया जा चुका है. ऐसे में उसके नाम पर फीस रोकना पूरी तरह अनुचित है. अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि जब कोई आदेश कानूनी रूप से अस्तित्व में नहीं है, तो उसका सहारा लेकर किसी कानूनी दायित्व से बचा नहीं जा सकता.

ब्लूबेल्स स्कूल इंटरनेशनल का पक्ष
ब्लूबेल्स स्कूल इंटरनेशनल ने छात्र के पिता के खिलाफ करीब 1.49 लाख रुपये की बकाया फीस वसूलने के लिए दीवानी मुकदमा दायर किया था. स्कूल का कहना था कि छात्र को दाखिला देते समय अभिभावक को यह पूरी जानकारी थी कि स्कूल शुल्क आधारित है और फीस का भुगतान करना कानूनी जिम्मेदारी है. शुरुआती अवधि तक फीस नियमित रूप से दी गई, लेकिन बाद में अभिभावक ने एक अगस्त 2018 के शिक्षा निदेशालय के आदेश और उससे जुड़े हाई कोर्ट के एक पुराने मामले का हवाला देकर भुगतान बंद कर दिया.

हाई कोर्ट का फैसला 
स्कूल की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता अतुल जैन ने अदालत को बताया कि जिस आदेश के आधार पर फीस रोकी गई थी, उसे दिल्ली हाई कोर्ट ने सात फरवरी 2024 को रद्द कर दिया था और उस फैसले पर कोई रोक भी नहीं है. इसके बावजूद अभिभावक ने बकाया फीस जमा नहीं की. स्कूल प्रबंधन ने कई बार पत्र लिखे, फोन कॉल किए और मौखिक रूप से भी फीस जमा करने का अनुरोध किया, लेकिन हर बार टालमटोल की गई. अंततः स्कूल को 31 मई 2024 को कानूनी नोटिस भेजना पड़ा, जिसका भी कोई जवाब नहीं दिया गया.

अभिभावक को समन तामील कराए
कोर्ट रिकॉर्ड के अनुसार, 18 नवंबर 2024 को अभिभावक को समन तामील कराए गए थे, लेकिन वह न तो अदालत में पेश हुए और न ही कोई लिखित बयान दाखिल किया. इस लापरवाही को गंभीर मानते हुए अदालत ने तीन फरवरी 2025 को उनका बचाव अधिकार समाप्त कर दिया और मामले में एकतरफा सुनवाई शुरू की. स्कूल द्वारा पेश किए गए दस्तावेजों, छात्र के एडमिशन फॉर्म और फीस रिकॉर्ड को अदालत ने सही पाया.

ब्याज दर में राहत लेकिन भुगतान अनिवार्य
अदालत ने अभिभावक को 1,49,647 रुपये की बकाया फीस स्कूल को चुकाने का आदेश दिया. हालांकि, स्कूल द्वारा मांगे गए 18 प्रतिशत ब्याज को अदालत ने अधिक मानते हुए इसे घटाकर सालाना नौ प्रतिशत कर दिया. इसके साथ ही अभिभावक को मुकदमे का खर्च भी स्कूल को देने का निर्देश दिया गया.

अभिभावकों के लिए अहम संदेश
यह फैसला उन अभिभावकों के लिए एक अहम संदेश है जो पुराने या रद्द हो चुके आदेशों का हवाला देकर स्कूल फीस भुगतान से बचने की कोशिश करते हैं. अदालत ने साफ कर दिया है कि कानूनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए ऐसे तर्क स्वीकार नहीं किए जाएंगे और फीस विवादों में कानून का पालन करना अनिवार्य है.

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18 December 2025, 10:26 PM IST

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