समझौता करो नहीं तो होगा सत्ता परिवर्तन, पाकिस्तान का अफगानिस्तान को अल्टीमेटम
पाकिस्तान ने अफगान तालिबान को अंतिम अल्टीमेटम दिया, सुरक्षा मांगें स्वीकार करने या विपक्षी गुटों के समर्थन का सामना करने को कहा. असफल वार्ता और टीटीपी को लेकर विवाद के बीच, यह कदम पाकिस्तान की सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करता है.

नई दिल्लीः अपनी अफगानिस्तान नीति में नाटकीय बदलाव करते हुए पाकिस्तान ने अफगान तालिबान को अपना अंतिम संदेश भेजा है. शीर्ष राजनयिक और खुफिया सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तान ने तालिबान से कहा है कि वे सुलह का विकल्प चुनें, उसकी सुरक्षा संबंधी मांगों को स्वीकार करें या काबुल में वैकल्पिक राजनीतिक ताकतों के लिए पाकिस्तान के समर्थन का सामना करें. यह कदम लंबे समय से तालिबान सरकार के साथ चल रही गतिरोधपूर्ण वार्ता के बाद आया है.
तुर्की के माध्यम से अल्टीमेटम
सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तान ने यह संदेश तुर्की के मध्यस्थों के जरिए तालिबान तक पहुंचाया. इस अल्टीमेटम के पीछे की प्रमुख वजह तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) और सीमा पार बढ़ते आतंकवादी हमलों पर तालिबान की अनिच्छा को नियंत्रित करना है. इस्लामाबाद की यह नीतिगत हताशा इस बात को दर्शाती है कि वह अब केवल सीमा सुरक्षा तक सीमित नहीं रहना चाहता, बल्कि अफगानिस्तान में राजनीतिक संतुलन भी बनाना चाहता है.
भारत संपर्क का प्रभाव
पाकिस्तान का यह कदम ऐसे समय में आया है जब अफगान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी की भारत यात्रा ने तालिबान के भारत संपर्क को उजागर किया. अधिकारियों के अनुसार, भारत के साथ तालिबान के नजदीकी संबंध ने पाकिस्तान को काबुल के साथ अपनी दीर्घकालिक रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया. इस्लामाबाद अब तालिबान की नीतियों को सुरक्षा खतरा और भू-राजनीतिक अपमान दोनों के रूप में देख रहा है.
विपक्षी नेताओं से फिर संपर्क
पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के भीतर और बाहर तालिबान विरोधी नेताओं और नेटवर्क से फिर से जुड़ना शुरू कर दिया है. इसमें हामिद करजई, अशरफ गनी, अहमद मसूद, अब्दुल रशीद दोस्तम और उत्तरी गठबंधन के अन्य कमांडर शामिल हैं. पाकिस्तान ने इन नेताओं को अपने देश में सुरक्षित राजनीतिक मंच, परिचालन कार्यालय और सुरक्षित उपस्थिति की पेशकश की है. यह कदम निर्वासित महिला नेताओं, कार्यकर्ताओं और लोकतंत्र समर्थक समूहों के लिए भी है, जो समावेशी और पारदर्शी राजनीतिक प्रक्रिया की वापसी चाहते हैं.
वार्ता में गतिरोध और शर्तें
तीन दौर की बातचीत पहले कतर और बाद में तुर्की की मध्यस्थता के बावजूद किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका. पहले चरण में अस्थायी युद्धविराम पर सहमति बनी थी, लेकिन इस्तांबुल दौर की वार्ता विफल रही. पाकिस्तान की मांगें रही: टीटीपी के खिलाफ सख्त कार्रवाई, कट्टर उग्रवादियों को सौंपना, डूरंड रेखा पर तनाव न बढ़ना, बफर जोन का निर्माण और द्विपक्षीय व्यापार-सहयोग का सामान्यीकरण. तालिबान ने विशेष रूप से टीटीपी सौंपने और बफर जोन प्रस्ताव का विरोध किया. पाकिस्तान इसे अपनी सुरक्षा के लिए अस्वीकार्य मानता है.
रणनीतिक पुनर्संतुलन
तालिबान विरोधी गुटों का समर्थन पाकिस्तान का 2021 के काबुल पतन के बाद सबसे गंभीर पुनर्संतुलन है. अधिकारियों के अनुसार, यह कदम पाकिस्तान की सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए एक आवश्यक रणनीतिक सुधार है. इस नीति से पाकिस्तान न केवल सीमा सुरक्षा को मजबूत कर रहा है, बल्कि अफगानिस्तान में राजनीतिक प्रभाव भी बढ़ाने का प्रयास कर रहा है.


