भारत की चुप्पी, अमेरिका का दबाव और युवाओं की सड़कों पर बगावत ने ओली की सत्ता गिरा दी
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अचानक इस्तीफा देकर पड़ोसी राजनीति को हिला दिया। छात्र आंदोलन, पुलिस हिंसा और विदेशी दबाव ने मिलकर उनकी कुर्सी हिला दी। अब सवाल है कि नेपाल किस दिशा में जाएगा।

International News: नेपाल में पिछले कुछ दिनों से छात्र और युवा सड़कों पर उतर आए थे। संसद के बाहर विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया जिसमें पुलिस ने आंसू गैस और रबर की गोलियां चलाईं। इस झड़प में 19 लोगों की मौत हो गई। इसके बाद माहौल और बिगड़ा और ओली ने इस्तीफा देकर सबको चौंका दिया।
भारत समेत अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने ओली सरकार का साथ नहीं दिया। उल्टा इन देशों ने शांतिपूर्ण आंदोलन का समर्थन किया। इससे ओली सरकार पर दबाव और बढ़ा। कूटनीतिक सूत्र मानते हैं कि जब बड़े देशों से समर्थन नहीं मिला तो इस्तीफा ही बचा रास्ता था।
भारत की आधिकारिक प्रतिक्रिया
भारत ने ओली के इस्तीफे पर कहा कि वह नेपाल की घटनाओं पर करीब से नजर रख रहा है। भारत ने हिंसा में मारे गए लोगों के परिवारों के प्रति दुख जताया और घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की। साथ ही भारत ने नेपाल में रह रहे भारतीय नागरिकों को सतर्क रहने की सलाह दी।
पश्चिमी देशों का संयुक्त बयान
अमेरिका, ब्रिटेन, जापान और अन्य देशों ने हिंसा की निंदा की। उन्होंने साफ कहा कि शांतिपूर्ण विरोध करना लोगों का हक है। इन देशों ने नेपाल सरकार से संयम बरतने और किसी भी तरह की उकसावे वाली कार्रवाई से बचने की अपील की। इससे ओली सरकार की अंतरराष्ट्रीय छवि और कमजोर हो गई।
चीन प्रेम और भारत विरोधी छवि
ओली तीन बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने लेकिन भारत से रिश्ते मजबूत नहीं कर पाए। उन्होंने हमेशा चीन के साथ समझौते किए। खासकर 2015-16 में उन्होंने चीन के साथ ट्रांजिट समझौता किया जिससे भारत का पारंपरिक असर घटा। उनकी यही छवि भारत विरोधी और चीन समर्थक बन गई।
सीमा विवाद और नया नक्शा
2020 में ओली सरकार ने एक नया नक्शा जारी किया जिसमें लिपुलेख और कालापानी जैसे भारतीय इलाके नेपाल का हिस्सा दिखाए। भारत ने इसे सिरे से खारिज कर दिया। इस कदम ने दोनों देशों के रिश्ते और बिगाड़ दिए। इसके बाद राजनीतिक अस्थिरता बढ़ी और अब उनकी सरकार का गिरना तय हो गया।
नेपाल की राजनीति का अगला दौर
ओली के इस्तीफे से नेपाल की राजनीति नए मोड़ पर पहुंच गई है। अब सवाल है कि अगली सरकार भारत से रिश्ते सुधार पाएगी या चीन के करीब जाएगी। छात्र आंदोलन ने यह भी दिखा दिया है कि नई पीढ़ी बदलाव चाहती है। आने वाले समय में नेपाल का रास्ता युवाओं की आवाज तय करेगी।


