टैरिफ नीति से टेंशन में राष्ट्रपति ट्रंप...अमेरिका में दनादन दिवालिया हुईं कंपनियां, टूटा 15 साल का रिकॉर्ड
अमेरिका में 2025 में कंपनियों के दिवालियापन के मामले 15 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गए हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप टैरिफ (Trump Tariff), महंगाई और उच्च ब्याज दरों ने कंपनियों पर भारी दबाव डाला. विशेष रूप से आयात-आधारित और इंडस्ट्रियल सेक्टर की कंपनियां दिवालियापन के लिए मजबूर हुईं.

नई दिल्ली : अमेरिका में 2025 में कंपनियों के दिवालियापन (US Firms Bankruptcies) के मामले एक दशक और उससे अधिक के उच्चतम स्तर पर पहुँच गए हैं. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने टैरिफ (Trump Tariff) को अमेरिकी रेवेन्यू बढ़ाने और विनिर्माण क्षेत्र को पुनर्जीवित करने वाला बताते आए हैं, लेकिन आंकड़े इससे बिल्कुल विपरीत कहानी बयान कर रहे हैं. S&P ग्लोबल मार्केट इंटेलिजेंस के अनुसार, जनवरी से नवंबर तक 717 कंपनियों ने चैप्टर 7 या चैप्टर 11 के तहत दिवालियापन के लिए आवेदन किया, जो 2024 की तुलना में लगभग 14% अधिक है.
महंगाई और टैरिफ का संयुक्त दबाव
रोजगार पर असर और ट्रंप के दावे
ट्रंप लगातार दावा करते रहे हैं कि उनके टैरिफ अमेरिकी विनिर्माण क्षेत्र को मजबूती देंगे, लेकिन आंकड़े इसके विपरीत हैं. संघीय आंकड़ों के अनुसार, नवंबर में समाप्त हुए एक वर्ष की अवधि में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में 70,000 से अधिक नौकरियां खत्म हुईं. इससे यह स्पष्ट होता है कि टैरिफ का बोझ कंपनियों और आम अमेरिकी नागरिकों दोनों पर पड़ा है.
कोविड के बाद सबसे बड़ी छमाही
कॉर्नरस्टोन रिसर्च के अनुसार, जनवरी से जून 2025 की पहली छमाही में दिवालियापन के मामले कोविड-19 के बाद सबसे अधिक दर्ज किए गए. बड़ी कंपनियों ने कंज्यूमर डिमांड, महंगाई दर और पूंजी जुटाने की कठिनाइयों को कारण बताया. एट होम और फॉरएवर 21 जैसे रिटेल सेक्टर के कई व्यवसाय दिवालियापन के लिए आवेदन करने को मजबूर हुए.
एक्सपर्ट का नजरिया
येल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जेफरी सोननफेल्ड का कहना है कि व्यापार युद्ध और टैरिफ ने आयात-आधारित व्यवसायों पर भारी दबाव डाला है. कंपनियां लागत को ग्राहकों पर डालने से हिचकिचा रही हैं, और कई व्यवसाय इस दबाव को सहन न कर पाने के कारण बंद हो रहे हैं. इसके चलते अमेरिका में आर्थिक अस्थिरता और व्यापारिक तनाव की स्थिति और बढ़ गई है. ट्रंप के टैरिफ नीतियों और महंगाई के संयुक्त प्रभाव ने अमेरिका में व्यवसायों को संकट में डाल दिया है. यह स्पष्ट संकेत है कि आर्थिक सुधार और विनिर्माण क्षेत्र के संरक्षण के नाम पर लागू नीतियों के प्रभाव वास्तविकता से काफी अलग हैं, और व्यापारिक असफलताओं का दौर अभी भी जारी है.


